अजय श्रीवास्तव (लेखक) मीडिया हाउस- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पश्चिम बंगाल के एक चुनावी जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि कांग्रेस अफस्पा कानून को हटाकर सेना को कमजोर करना चाहती है।उन्होंने कहा कि अफस्फा सैनिकों के लिए सुरक्षा कवच है। इससे वह निर्भय होकर देश की सुरक्षा के लिए कोई भी कदम उठा सकते हैं, लेकिन कांग्रेस स्वार्थवश इसे छीन लेना चाहती है।
गौरतलब है कि पिछले हीं साल(2018) नरेंद्र मोदी सरकार ने पूर्वोत्तर राज्य मेघालय से पूरी तरह अफस्फा कानून हटा लिया था और अरूणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों से भी अफस्फा को हटाया गया था। अरूणाचल प्रदेश के 16 के बजाय 8 पुलिस स्टेशनों में हीं यह कानून लागू है।केन्द्र सरकार ने प्रतिबंधित क्षेत्र में विदेशी नागरिकों की यात्रा को लेकर भी बडा कदम उठाया है।उग्रवादियों के लिए पुनर्वास नीति के तहत मदद राशि एक लाख से बढाकर चार लाख रूपये कर दी गई है।केन्द्र सरकार के गृह मंत्रालय ने कहा कि यह नीति 1 अप्रैल 2018 से लागू होगी। नरेंद्र मोदी एक तरफ अफस्फा कानून को लागू करने की वकालत करते हैं दूसरी तरफ मेघालय को इस कानून से पूरी तरह मुक्त कर देते हैं।वही स्थिति अरूणाचल प्रदेश की भी है।दरअसल शसक्त विपक्ष के अभाव में नरेंद्र मोदी अपनी हर झूठ को सच साबित करने में सफल रहें हैं। अफस्फा कानून पर बहुत चर्चा है, अब ये जानना जरूरी है कि विवादित अफस्फा कानून है क्या?सन् 1958 को भारतीय संसद ने इस विवादित कानून को पास किया था।अफस्फा मतलब आम्र्ड फोर्स स्पेशल पावर एक्ट,यह एक फौजी कानून है जिसे डिस्टर्ब एरिया में राज्य सरकार की सहमति से लागू किया जाता है।इस कानून के तहत सुरक्षाबलों और सेना को कुछ विशेष अधिकार मिलता है जो विशेष परिस्थितियों में प्रयोग में लाया जाता है। अफस्फा को 01 सितंबर 1958 को असम,त्रिपुरा, मेघालय, अरूणाचल प्रदेश, मिजोरम और नागालैंड सहित भारत के उत्तर पूर्व में लागू किया गया था।साल 1990 में इस कानून को जम्मू कश्मीर में लागू किया गया जो आज भी जारी है। अब ये प्रश्न उठता है कि डिस्टर्ब एरिया या अशांत क्षेत्र किसे माना जाए?केन्द्र सरकार ने कानून के तहत इसे परिभाषित किया कि विभिन्न धार्मिक, नस्लीय,भाषा, क्षेत्रीय समूहों, जातियों, समुदायों के बीच मतभेद या विवादों के कारण राज्य या केंद्र सरकार एक क्षेत्र को डिस्टर्ब घोषित करती है। राज्य या केंद्र सरकार के पास किसी भी भारतीय क्षेत्र को डिस्टर्ब घोषित करने का अधिकार है।अधिनियम की धारा3 के तहत राज्य सरकार की राय का होना जरूरी है कि क्या एक क्षेत्र डिस्टर्ब है या नहीं।अधिनियम 1976 के अनुसार एक बार अशांत क्षेत्र घोषित होने के बाद कम से कम तीन महीने तक वहाँ पर स्पेशल फोर्स की तैनाती रहती है। इस कानून के तहत सुरक्षाबलों या फौज को बहुत से महत्वपूर्ण अधिकार मिल जाते हैं जो त्वरित कार्यवाही में बडे काम आते हैं।सुरक्षाबलों की चेतावनी के बाद भी कोई व्यक्ति कानून तोड़ता है,अशांति फैलाता है तो सशस्त्र बल के विशेष अधिकारी द्वारा आरोपी की मृत्यु हो जाने तक अपने बल का प्रयोग किया जा सकता है।अफसर किसी आश्रय स्थल या ढांचे को तबाह कर सकता आ जहाँ से हथियार बंद हमले का अंदेशा हो।सशस्त्र बल किसी भी असंदिग्ध व्यक्ति को बिना किसी वारंट के गिरफ्तार कर सकता है।किसी भी घर की तलाशी बिना वारंट के की जा सकती है।किसी भी वाहन को बिना किसी अनुमति के रोका जा सकता है।सेना के अधिकारियों को उनके वैध कार्यो के लिए कानूनी प्रतिरक्षा दी जाती है। पिछले कुछ वर्षों में अफस्फा के लागू होने के कारण बहुत सारी आलोचनाएं हुईं हैं।सवाल इस पर उठते हैं कि इस अधिनियम के तहत कोई भी अधिकारी बिना किसी कारण को जाने गोलीबारी कर सकता है, इसलिए यह अधिनियम बेरहम लगता है।बहुत से दुरूपयोग के मामले कोर्ट में लंबित हैं।
31 मार्च 2012 को संयुक्त राष्ट्र ने भारत से कहा था कि भारतीय लोकतंत्र में अफस्फा का कोई स्थान नहीं है, इसलिए इसको रद्द कर दिया जाए। एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ये कहते हैं कि कांग्रेस अफस्फा कानून को हटाकर सेना को कमजोर कर रही है तो दूसरी तरफ यही सरकार ने 2018 में मेघालय और अरूणाचल प्रदेश से इस कानून को हटा लिया है।चुनाव के समय किसी भी कानून के साथ राजनीति गलत है जो भाजपा कर रही है। यह लेखक के अपने विचार है।
