मीडिया हाउस 28ता.- हमारे देश में पत्रिकारिता को लोकतंत्र का चौथे स्तंभ का दर्जा प्राप्त है लेकिन अफसोस इस बात का है कि आजकल इस लाइन में कुछ गलत लोगों के आने से ज्यादातर लोगों का भरोसा मीडिया से उठता जा रहा है और ? लेकिन खुशी इस बात की है कि यदि आज भी लोग सबसे ज्यादा भरोसा करते है तो वह मीडिया पर ही करते हैं जिसका मुख्य कारण पत्रकार की गरिमा को अभी तक बनाये रखने वाले व अपने कार्य को बखूबी अंजाम देने वाले ईमानदार ,कर्तव्यनिष्ठ, तेजतर्रार, पत्रकार बन्धु है जो बिना किसी लोभलालच के निश्वार्थ भाव से पत्रिकारिता को एक मिशन मानते हुए जनहित में कार्य कर रहे हैं यदि बात करें एक वास्तविक पत्रकार के कार्यों की तो मेरी नजर में पत्रकार समाज को आइना दिखाने का कार्य करता है जो जनता की दबी कुचली आवाज व समस्याओं से शासन प्रशासन तक पहुंचाने व शासन की आवाज व उनकी कार्यप्रणाली को जनता तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाने वाले के लिए भी विख्यात है यदि पत्रकार अपना कार्य करना बंद कर दें तो लोगों को किसी भी घटना की जानकारी प्राप्त नहीं हो सकती ? तभी तो को समाज का सजग प्रहरी व कलम के सिपाही आदि के नाम से भी नवाजा जाता है –
*एक सजग पत्रकार की दिनचर्या*
एक पत्रकार जब सुबह उठता है तो वह सबसे जल्दी से अपने समस्त कार्यों से निवृत इसलिए हो जाता है कि पता नहीं कब कहाँ किसकी कवरेज करने जाना पड़ जाये जैसे ही उठाए किसी घटना के बारे में जानकारी प्राप्त होती है वह तुरन्त घटना स्थल की ओर दौड़ता है ताकि घटना की जानकारी लेकर आप तक पहुंचा सके -चाहे उसने खाना खाया हो या नहीँ -चाहे उसके कितने भी जरूरी कार्य छूट जायें लेकिन घटना की विस्तृत जानकारी नहीं छोड़ना चाहता पूरे दिन भागदौड़ कर और कवरेज की हुई खबरों को न्यूज़ चैनल या न्यूज़ पेपर के हैड ऑफिस इस आशय से भेजने के बाद कि जल्द से जल्द आप लोगों तक पहुंच सके -शाम को जब वह फ्री होकर अपने परिवार के लिये सब्जी आदि घरेलू सामिग्री लेने बाजार जाता है ताकि घरेलू कार्य भी पूरे कर सके लेकिन अफसोस तो तब होता है जब उसे रास्ते में ही किसी घटना के बारे में जानकारी मिलती है तो वह सभी घरेलू कार्य छोड़कर घटना की जानकारी लेने घटना स्थल की ओर दौड़ पड़ता है और जब पूरे घटनाचक्र की कवरेज कर देर रात्रि घर पहुँचता है तो मालुम हुआ कि बिना घरेलू कार्य किये बिना घटना की जानकारी प्राप्त करने में इतना समय हो गया कि इंतजार में उसका परिवार भूखा ही सो गया तो वह भी बिना खाना खाये ही भूखा ही सो गया –
*मेरी नजर में यह होती थी वास्तविक पत्रकार की वास्तविकता*
लेकिन आजकल के इस दौर में दलालों के प्रवेश करने के कारण सभी पत्रकार बन्धुओं को फीकी नजरों से देखा जाता है
आज के इस दौर में ज्यादातर न्यूज़ चैनलों व न्यूज़ पेपरों के प्रधान संपादक रुपये लेकर अनुभव हीन, अनपढ़ लोगों को पत्रकारों का दर्जा दे रहे हैं जिसमें उनके न्यूज़ चैनलों व न्यूज़ पेपरों की छवि तो खराब हो ही रही है वास्तविक पत्रकार पर भी इससे अछूता नहीं रहा जिसका सीधा फायदा अधिकारी लोग ले रहे हैं यह बिषय अत्यंत ही चिन्तन का विषय है जिस पर अति शीघ्र गहन मंथन कर समाज में दलाली कर रहे दलालों पर अंकुश लग सके और पत्रिकारिता की गरिमा बरकरार रह सके।
*रामखिलाड़ी शर्मा जर्नलिस्ट*लेखक