मीडिया हाउस न्यूज एजेन्सी 20ता.लखनऊ-प्रदेश के पिछड़ा वर्ग कल्याण एवं दिव्यांगजन सशक्तीकरण मंत्री अनिल राजभर, व्यावसायिक शिक्षा एवं कौशल विकास राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) कपिल देव अग्रवाल तथा महिला कल्याण एवं बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्रीमती स्वाती सिंह ने प्रदेशवासियों को वासन्तिक नवरात्रि एवं भगवान श्रीराम के पावन जन्मदिन रामनवमी की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं दी हैं। मंत्रीगण ने अपने बधाई संदेश में कहा है कि उन्होंने कहा कि भगवान श्रीराम का जन्मदिन हम सभी एक नई प्रेरणा और मार्गदर्शन प्रदान करता है।सभी लोग वर्तमान समय की कोविड 19 के संक्रमण को देखते हुए राम नवमी के अवसर पर कोविड 19 प्रोटोकॉल का पालन अवश्य करे।
यूपी बोर्ड की 10वीं व 12वीं की परीक्षाएं 20 मई तक स्थगित।
महाविद्यालयों व विश्वविद्यालयों की परीक्षाएं भी 15 मई तक स्थगित।
परीक्षाओं को लेकर अगला निर्णय मई के प्रथम सप्ताह में।
प्रदेश के 10 जिलों में रात 8 बजे से लेकर सुबह 6 बजे तक कोरोना कफ्र्यू।
500 से अधिक एक्टिव केस वाले जिलों में भी लग सकता है कोरोना कफ्र्यू।
राजधानी लखनऊ में निजी क्षेत्र में 281 बेड बढाए गए।
किंग जॉर्ज मेडिकल विश्वविद्यालय लखनऊ व बलरामपुर अस्पताल को डेडीकेटेड केाविड अस्पताल में परिवर्तित किया गया है : सभी निर्धारित बेड पर भर्ती हो सकेंगे कोरोना मरीज।
मीडिया हाउस न्यूज एजेंसी 15ता.लखनऊ-उपमुख्यमंत्री डा दिनेश शर्मा ने बताया कि कोरोना संक्रमण की परिस्थितियों को देखते हुए यूपी बोर्ड की 10वीं व 12वी की परीक्षाएं 20 मई तक स्थगित कर दी गई हैं। उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अनुमति के बाद यह निर्णय लिया गया है। 8 मई से आरंभ होने वाली इन परीक्षाओं में करीब 56 लाख परीक्षार्थी शामिल होने वाले थे। परीक्षाओं को लेकर अगला निर्णय मई के प्रथम सप्ताह में लिया जाएगा। इस क्रम में महाविद्यालयों व विश्वविद्यालयों की परीक्षाएं भी 15 मई तक स्थगित कर दी गई हैं। सभी परीक्षाए अभी केवल स्थगित की गई हैं। उन्होंने कहा कि अभी केवल अॅानलाइन कक्षाएं ही संचालित की जाएंगी। शैक्षिक व अन्य स्टाफ की उपस्थिति राज्य सरकार की कोरोना गाईडलाइन के अनुरूप ही होगी। जिले में परिस्थिति के अत्याधिक विपरीत होने पर जिला प्रशासन से मंत्रणा कर कुलपति व जिला विद्यालय निरीक्षक द्वारा निर्णय लिया जा सकेगा। डा शर्मा ने बताया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में यूपी सरकार कोरोना संक्रमण को कम करने के लिए युद्धस्तर पर काम कर रही है। मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में आज हुई वर्चुअल बैठक में 2000 से अधिक एक्टिव केस वाले 10 जनपदों में रात्रि 08 बजे से प्रात: 07 बजे तक कोरोना कफ्र्यू लागू करने का निर्णय लिया गया है। आज रात से लखनऊ , प्रयागराज , वाराणसी , कानपुर नगर , गौतमबुद्ध नगर , मेरठ , गोरखपुर झांसी बरेली बलिया में रात्रि 08 बजे से प्रात: 07 बजे तक कफ्र्यू लगाया जाएगा। जिन जिलों मे 500 से अधिक कोरोना के सक्रिय केस हैं वहां पर जिलाधिकारी रात्रि 9 बजे से सुबह 6 बजे तक रात्रि कफ्र्यू लगाने का निर्णय ले सकते हैं। इसके साथ ही कन्टेनमेन्ट जोन की व्यवस्था को सख्ती से लागू किया जाएगा। सेनेटाइजेशन व फागिंग की व्यवस्था तेज की जाएगी। उन्होंने बताया कि आज राजधानी लखनऊ में निजी क्षेत्र के अस्पतालों में 281 बेड बढा दिए गए हैं। बलरामपुर अस्पताल व किंग जॉर्ज मेडिकल विश्वविद्यालय को डेडीकेटेड कोविड अस्पताल में परिवर्तित कर दिया गया है। अभी तक बलरामपुर अस्पताल में उपलब्ध 700 बेड में से 215 बेड कोविड के मरीजों के लिए उपलब्ध थे , पर अब सभी 700 बेड कोविड मरीजों के लिए उपलब्ध होंगे। इसी प्रकार राजधानी में केजीएम यू मेडिकल कालेज में अभी तक लगभग 500 बेड ही कोरोना मरीजों के लिए उपलब्ध थे पर वहां उपलब्ध सभी बेड कोविड के मरीजों के लिए उपलब्ध होंगे। चिकित्सकों के रहने की व्यवस्था छात्रावासों व होटलों में जाएगी। उन्होंने बताया कि केन्द्रीय रक्षा मंत्री जी ने मुख्यमंत्री से वार्ता कर रक्षा मंत्रालय के डीआडीओ संस्थान की ओर से चिकित्सा उपकरण उपलब्ध कराने का प्रस्ताव दिया है। उपमुख्यमंत्री ने कहा कि मुख्यमंत्री जी के नेतृत्व में जनता को राहत दिलाने के हरसंभव प्रयास किए जा रहे हैं। इस बात को सुनिश्चित किया जा रहा है कि कहीं पर भी आक्सीजन की कमी नहीं होने पाए। रेमिडीसीवर इंजेक्शन, एम्बुलेंस की पर्याप्त मात्रा में उपलब्धता सुनिश्चित की जा रही है।
मीडिया हाउस न्यूज एजेन्सी 14 ता.लखनऊ-जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए सबसे महत्वाकांक्षी सरकारी योजनाओं में से एक, यूरोपीय संघ की ग्रीन डील साल 2050 तक यूरोपीय देशों के इस समूह की अर्थव्यवस्था को नेट ज़ीरो उत्सर्जन तक पहुँचाने के उद्देश्य से बनी नीतियों का एक सेट है। यह अपनी तरह की एक अनूठी और पहली पहल है। लेकिन किसी भी ऐसे महत्वकांक्षी लक्ष्य की ओर पहली बार बढ़ना आसान नहीं। आसान इसलिए नहीं क्योंकि सब कुछ नया और पहली बार होगा।
इसका सबसे शुरूआती असर होगा कि यूरोपीय संघ के देशों में उत्सर्जन-कम करने वाले नियमों के अधीन उत्पादित सामान बाकी उत्पादकों के मुकाबले महंगा होगा। अब इससे यूरोपीय संघ के देश अपने वैश्विक प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ कम प्रतिस्पर्धी बन जायेंगे।अब इस समस्या से निपटने के लिए यूरोपीय संघ के नीति निर्माता कार्बन-सघन वस्तुओं के आयात को दंडित करने का एक तरीका तैयार कर रहे हैं। इसका नाम है कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (CBAM) और इसे लेकर हर तरफ चर्चाओं का बाज़ार गरम है। जहाँ एक तरफ़ यूरोपीय संघ अपनी कार्बन डील की रणनीति के अभिन्न अंग के रूप में इस कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (CBAM) को देखता है, क्योंकि इसकी मदद से वो पेरिस जलवायु समझौते के लक्ष्यों के तहत 2050 तक कार्बन तटस्थता प्राप्त करना चाहता है, वहीँ एक नज़रिया यह भी है कि यह नियम एक तरह का संरक्षणवाद है जिससे व्यापार के लिए सभी को बराबर मौका नहीं मिलेगा।
इसी क्रम में, यूरोपीय आयोग के CBAM को लेकर संसदीय प्रस्ताव के आने के कुछ महीने पहले कुछ अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञ इस मुद्दे पर अपनी राय प्रकट करने एक साथ, एक वर्चुअल बैठक के ज़रिये सामने आये।
इंस्टीट्यूट जैक्स डेलर्स की महानिदेशक और उपाध्यक्ष, जिनेविव पोन्स, ने चर्चा को दिशा देते हुए कहा, “यूरोपीय संघ ने अपने लिए एक कठिन और महत्वाकांक्षी जलवायु लक्ष्य निर्धारित किया है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए और वैश्विक तापमान की बढ़त को सीमित करने के लिए CABM बेहद आवश्यक है।” लेकिन इसकी जटिलता को सुलझाने के लिए उन्होंने “कूटनीति, संवाद और तरीके” का ज़िक्र किया। उन्होंने संरक्षणवाद के मुद्दे का जवाब देते हुए कहा कि “हमें निष्पक्ष रहना होगा और सभी देशों के साथ सम्मानपूर्वक डील करना होगा। साथ ही, हमें CABM से प्राप्त राजस्व का प्रयोग भी सही तरीके से करना होगा।”
चर्चा को आगे बढाते हुए, विश्व व्यापार संगठन के पूर्व महानिदेशक और व्यापार के लिए पूर्व यूरोपीय आयुक्त, पास्कल लैमी ने कहा, “स्वीकार्य होने के लिए CABM को विश्व व्यापार संगठन (WTO) के अनुकूल होना चाहिए। भेदभाव ण करना डब्ल्यूटीओ का सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत है और CBAM को इसके अनुरूप होना चाहिए जिससे सभी व्यापारिक दलों का सम्मान मिले। घरेलू उत्पादन और विदेशी उत्पादन के बीच कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए क्योंकि ऐसा न होने से सबको बराबर मौका नहीं मिलेगा। CABM जैसी प्रणाली का जांचा परखा होना बेहद ज़रूरी है क्योंकि ऐसा करने से भेदभाव होने का संदेह हट जायेगा। CBAM का अंततः उद्देश्य है पर्यावरण की रक्षा करना और इस उद्देश्य का सम्मान सब को करना चाहिए।”
वहीँ ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (सीईईवी) के संस्थापक-सीईओ अरुणाभ घोष ने जलवायु महत्वाकांक्षा, विश्वास, और सहयोग पर जोर दिया। CABAM को लेकर अपनी आशंकाएं रखते हुए अरुणाभ ने कहा, “फ़िलहाल नेट ज़ीरो होने की सतत राह पर चलने के लिए करने को बहुत कुछ बाकी है। और किसी मानक कार्यप्रणाली के बिना इस नयी व्यवस्था को लागू करना गंभीर चुनौतियां पैदा करेगा।” इसका एक और महत्वपूर्ण पक्ष रखते हुए उन्होंने कहा, “हमें ये भी सोचना है कि इससे जुड़े विवादों का हल कैसे होगा।” अपनी बात खत्म करते हुए उन्होंने कहा, “इस सब के बीच प्राइवेट सेक्टर के बीच संवाद होना बेहद ज़रूरी है क्योंकि सिर्फ सरकारों के संवाद से कुछ नहीं होगा।”
लेकिन इस पालिसी की टाइमिंग को एक हाथ सही ठहराते हुए, हॉफमैन सेंटर फॉर सस्टेनेबल रिसोर्स इकोनॉमी की बेर्निस ली ने इसकी समीक्षा करते हुए कहा कि, “इस प्रणाली के कार्यान्वयन की लागत पर विचार करने की आवश्यकता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि हम जलवायु नीतियों की अखंडता की रक्षा करना चाहते हैं और इसके लिए व्यापार और निवेश को जलवायु परिवर्तन नीतियों के अनुकूल होना होगा। CBAM सिर्फ एक शुरुआत है।”
मीडिया हाउस न्यूज एजेंसी 6ता.शाहजहाँपुर-गाडगे हुंकार मासिक पत्रिका के सम्पादक पंकज कन्नौजिया एडवोकेट ने पत्रकार अनुराग उर्फ राजू व अजीत मिश्रा पर तथाकथित सपा नेता द्वारा दर्ज कराए गए हत्या के फर्जी मुकदमे की सीबीआई जांच की मांग उठाते हुए मुख्यमंत्री को सम्बोधित ज्ञापन जिलाधिकारी को सौंपा।आज गाडगे हुंकार मासिक पत्रिका के सम्पादक पंकज कन्नौजिया के नेतृत्व में दर्जनों पदाधिकारी कलेक्ट्रेट पहुंचे और उन्होंने जलालाबाद के पत्रकार राजू मिश्रा व अजीत मिश्रा को सपा नेता द्वारा हत्या के मुकदमे में षड्यंत्र रचकर कूटरचित तरीके से फंसाकर जेल भिजवाने के मामले में सीबीआई जांच की मांग को लेकर जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपते हुए पंकज कन्नौजिया ने कहा कि सपा नेता विजेंद्र यादव के बेटे की मौत अत्यधिक शराब पीने से हुई है।जिसकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी कुछ नहीं आया है,जबकि बिसरा प्रिजर्व करने के बाद विसरा रिपोर्ट अथाइल अल्कोहल से मौत होना पाया गया लेकिन सपा नेता ने पुलिस व प्रशासन से सांठगांठ करके राजू मिश्रा व उनके साथी अजीत मिश्रा पर हत्या का मुकदमा दर्ज कराकर उन्हें जेल भिजवा दिया है।जिससे पत्रकारों व समाज में काफी रोष ब्याप्त है,उन्होंने कहा कि सपा नेता दलाल टाइप का व्यक्ति है जिसकी करतूतों को राजू मिश्रा ने समाचार पत्रों में प्रकाशित किया था जिससे वह राजू से रंजिश मानने लगा है। उन्होंने मांग करते हुए कहा कि इस कांड की सीबीआई जांच करा ली जाए जिससे दूध का दूध और पानी का पानी हो जाए। उन्होंने कहा उपरोक्त पूरे प्रकरण में निर्दोष पत्रकारों को फंसाए जाने से जनपद के पत्रकारों सहित समाज के विभिन्न वर्गों में रोष व्याप्त है।अगर जल्द से जल्द इस कांड की जांच नहीं कराई गई तो जिले के पत्रकारों सहित विभिन्न वर्गों के लोग आन्दोलन करने पर बाध्य होंगे,जिसकी संपूर्ण नैतिक जिम्मेदारी शासन व प्रशासन की होगी।
मीडिया हाउस न्यूज एजेन्सी 3ता.लखनऊ-जहाँ पूरी दुनिया में पिछले साल लगे लॉक डाउन और मंदी के चलते बिजली की मांग घट गयी थी, वहीँ चीन में न सिर्फ बिजली की मांग बढ़ी, बल्कि कोयले से बनी बिजली के उत्पादन में भी चीन में बढ़त दर्ज की गयी। और फ़िलहाल चीन अब दुनिया के कुल कोयला आधारित बिजली उत्पादन के आधे से भी ज़्यादा, 53 फ़ीसद, के लिए ज़िम्मेदार है।
इन तथ्यों का ख़ुलासा एनर्जी थिंक टैंक एम्बर ने अपनी ताज़ा रिसर्च रिपोर्ट के ज़रिये किया। रिपोर्ट की मानें तो चीन ही G20 का अकेला देश था जिसने महामारी वर्ष के दौरान कोयला उत्पादन में बड़ा इजाफा देखा । वहीँ 2020 में पूरी दुनिया में कोयला उत्पादन में रिकॉर्ड गिरावट दर्ज की गई, जिसमें भारत और उसके अलावा अन्य देश भी शामिल हैं जो कोयला ऊर्जा शक्ति के रूप में जाने जाते थे ।
दुनिया भर में महामारी की वजह से 2020 में बिजली की मांग में काफी गिरावट आई, और पन बिजली तथा सौर ऊर्जा को बढ़ने का मौका मिला था।
कोयले से बनने वाली बिजली में रिकॉर्ड गिरावट दर्ज की गई । पवन और सौर ऊर्जा में 2020 में विकास की दर 15% (+314TWh) रही, जो कि ब्रिटेन के पूरे साल के बिजली उत्पादन कि बराबरी कि जाये तो ये उससे से भी ज़्यादा की रही । इस वजह से कोयले ऊर्जा की मांग में 4% (-346 TWh) की रिकॉर्ड गिरावट भी देखने को मिली।
लेकिन चीन उल्टी दिशा में आगे बढ़ा है। ये एकमात्र G20 देश रहा जिसने 2020 में दोनों में, बिजली की मांग और कोयला बिजली में बड़ी वृद्धि देखी । बावजूद इसके कि चीन में पवन और सौर (+98TWh) बिजली में प्रभावशाली 16% की वृद्धि दर्ज की गई लेकिन फिर भी चीन में कोयला बिजली उत्पादन में भी 1.7% (+77 TWh) की बढ़ोतरी हुई और बिजली की कुल मांग में 4% (+297 TWh) की वृद्धि हुई ।
“कुछ विकास के बावजूद चीन अभी भी अपनी कोयला उत्पादन में बढ़ोतरी को रोकने के लिए संघर्ष करता दिख रहा है,” ऐसा कहना है एम्बर के सीनियर एनालिस्ट डॉ मुई यांग का “बिजली की तेजी से बढ़ती मांग की वजह से कोयला बिजली उत्पादन में भी बढ़ोतरी हो रही है जिससे एम्मिशन भी बढ़ा है । अगर चीन सही तरीके से विकास की राह पर आगे बढ़ेगा तो वह कोयले से बनने वाली बिजली की बढ़ोतरी पर भी काबू पा सकेगा, विशेष रूप से बेकार और बेअसर पड़ी कोयला इकाइयों को खत्म करके, जिससे इस देश को अपनी जलवायु को ठीक करने के ज़्यादा से ज़्यादा अवसर प्राप्त होंगे । ”
चीन के बाद चार सबसे बड़े कोयला बिजली वाले देशों ने 2020 में कोयला बिजली में गिरावट दर्ज की : भारत (-5%), संयुक्त राज्य अमेरिका (-20%), जापान (-1%) और दक्षिण कोरिया (-13%)।
भारत की कोयला बिजली में लगातार दूसरे वर्ष 2020 में (-5%) की गिरावट आई, और सौर ऊर्जा में अच्छी खासी बढ़ोतरी (+ 27%) देखने को मिली और covid -19 के प्रभाव के कारण बिजली की मांग में (-2%) की गिरावट दर्ज की गई ।
“भारत ने अपने कदम स्वच्छ बिजली उत्पादन की ओर बड़ा दिए है”, एम्बर के सीनियर एनालिस्ट, आदित्य लल्ला ने कहा “भारत को अब अगले दस सालों में पवन तथा सौर बिजली उत्पादन को बढ़ाने की जरूरत है जिससे कोयले के इस्तेमाल में कमी और बढ़ती बिजली की मांग को भी पूरा किया जा सकेगा । भारत के पास ये सुनहरा अवसर है जिससे ये सुनिश्चित होगा कि कोयले कम होती मांग में कभी इजाफा नहीं होगा।
साल 2015 में जब पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे तब की तुलना में दुनिया भर में महामारी की वजह से 2020 में कोयले में रिकॉर्ड गिरावट के बावजूद, बिजली क्षेत्र का एमिशन अब भी लगभग 2% अधिक रहा । 2020 में कोयला दुनिया का एकमात्र सबसे बड़ा बिजली का साधन रहा । ग्लोबली कोयले का उत्पादन 2020 में 2015 की तुलना में केवल 0.8% कम रहा जबकि गैस उत्पादन 11% अधिक रहा । बावजूद इसके कि 2015 के बाद से पवन बिजली और सौर ऊर्जा का उत्पादन दुगना हुआ फिर भी बढ़ती मांग के कारण फॉसिल फ्यूल्स के इस्तेमाल को कम या खत्म नहीं किया जा सका।
2015 के बाद से दुनिया भर में बिजली की मांग 11% बढ़ी । इस अवधि के दौरान, चीन की बिजली की मांग में 1880 TWh (+ 33%) वृद्धि हुई, जो भारत की 2020 की पूरे साल की बिजली की मांग से भी अधिक है । एशिया में, जहां बिजली की मांग काफी तेजी से बढ़ी, लेकिन स्वच्छ बिजली केवल बढ़ती बिजली की मांग के कुछ हिस्से को पूरा करने तक ही सीमित रही; 2015 से 2020 तक चीन में (54%) और भारत में (57%) दोनों में लगभग आधा। जहां एक तरफ कोयले के इस्तेमाल और उत्पादन में कमी देखी गई जिसमे यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे राज्य शामिल हैं, वहीँ दूसरी तरफ एमिशन में मामूली सी कमी देखने को मिली जिसका कारण फॉसिल फ्यूल्स का इस्तेमाल होना रहा ।
“विकास अभी तक आस पास नज़र नहीं आ रहा,” एम्बर के ग्लोबल लीड डेव जोन्स ने कहा: “महामारी के दौरान कोयले की रिकॉर्ड गिरावट के बावजूद इसमें जितनी कमी होने की ज़रुरत थी उतनी नहीं हुई है । कोयला बिजली का इस्तेमाल 80% तक कम करने की जरूरत है अगर हम 2030 तक 1.5 डिग्री से अधिक के ग्लोबल वार्मिंग के खतरनाक स्तर पर नहीं पहुंचना चाहते । हमको दुनिया भर में कोयले की जगह स्वच्छ बिजली के इस्तेमाल को बढ़ावा देकर सभी अर्थव्यवस्थाओं बदलने की जरूरत है । विश्व के नेताओं को अब इस चुनौती की विशालता को समझकर जागना होगा । ”
एम्बर के ग्लोबल इलेक्ट्रिसिटी रिव्यू के बारे में एक झलक
इस वार्षिक रिपोर्ट में 2020 में दुनिया भर में हो रहे स्वच्छ बिजली परिवर्तन के मद्देनजर दुनिया के हर देश के बिजली के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है ताकि पहला सही और विशुद्ध विवरण किया जा सके । यह 2000 से देश का ईंधन डेटा साल दर साल एकत्र करता आया है । दुनिया की 90% बिजली उत्पादन करने वाले 68 देशों का साल 2020 का पूरा डाटा और उसी के हिसाब से दुनिया भर में बदलाव के लिए एक अनुमान को आधार बनाया गया है । इसके अलावा सभी देशों का 2019 तक का पूरा डेटा है । G20 देशों, जिसमें विश्व बिजली उत्पादन का 84% हिस्सा शामिल है, प्रत्येक का अलग अलग गहराई से विश्लेषण किया गया है।
मीडिया हाउस न्यूज एजेन्सी 3ता.लखनऊ-मौजूदा वार्मिंग प्रवृत्ति जारी रहने पर जलवायु परिवर्तन से आर्थिक नुकसान 2025 तक प्रति वर्ष $ 1.7 ट्रिलियन तक पहुंच जाएगा, और 2075 तक लगभग 30 ट्रिलियन डॉलर प्रति वर्ष (अनुमानित GDPका 5%) तक पहुंच जाएगा।
जलवायु कार्रवाई को रोकने या टालने के इरादे से राजनेता अक्सर तर्क देते हैं कि इसमें बहुत अधिक लागत आएगी। कभी-कभी वे उन आर्थिक मॉडलों का उल्लेख करते हैं जो 1990 के दशक से जलवायु बेहतर करने के लिए उठाये कदमों के सापेक्ष वार्मिंग के विभिन्न स्तरों के “लागत बनाम लाभ” को निर्धारित करने के लिए विकसित किए गए हैं।
हजारों अर्थशास्त्रियों ने आधुनिक जीवन के आधारभूत जलवायु परिवर्तन और आर्थिक प्रणालियों के बीच पारस्परिक विचार-विमर्श का अध्ययन करने में वर्षों या दशकों का समय बिताया है। इन विशेषज्ञों के विचार यह स्पष्ट करने में मदद कर सकते हैं कि जलवायु परिवर्तन हमारे समाज और अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित कर सकता है, और कैसे नीति निर्माताओं को ग्रीनहाउस गैस एमिशन में कमी के प्रयासों का सामना करना चाहिए।
बीते मंगलवार को आये नए शोध में बताया गया है कि दुनिया भर के अर्थशास्त्री हर साल अरबों-खरबों डॉलर का नुकसान पैदा करने वाले जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए “तत्काल और कठोर” कार्रवाई को आवश्यक मानते हैं और जलवायु निष्क्रियता की लागत को नेट एमिशन को खत्म करने की लागत से अधिक मानते हैं। अर्थशास्त्री ये भी मानते हैं कि 2050 तक एमिशन को नेट ज़ीरो तक लाने के लाभ उसमें लगी लागत से कहीं ज़्यादा हैं। अर्थशास्त्रियों के अनुसार जलवायु परिवर्तन के नुक्सान बताने वाले लोकप्रिय आर्थिक मॉडलों ने वास्तव में जलवायु परिवर्तन की लागत को कम करके दिखाया है।
यह सर्वेक्षण NYU इंस्टीट्यूट फॉर पॉलिसी इंटीग्रिटी द्वारा आयोजित किया गया था और इसमें जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञता रखने वाले 738 अर्थशास्त्रियों के जवाब थे। ध्यान रहे, यह अर्थशास्त्रियों पर केन्द्रित अब तक का सबसे बड़ा आयोजित जलवायु सर्वेक्षण है।
इस सर्वेक्षण में बहुत सारे दिलचस्प निष्कर्ष हैं, जिसमें प्रमुख हैं:
·74% अर्थशास्त्रियों ने दृढ़ता से सहमति व्यक्त की कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए “तत्काल और कठोर कार्रवाई आवश्यक है” – जब सर्वेक्षण आखिरी बार 2015 में किया गया था, उससे 50% अधिक।
·यह व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है कि जलवायु परिवर्तन देशों के बीच आय समानता को बढ़ाएगा, और सर्वेक्षण उत्तरदाताओं का 89% इस बात से सहमत है। 70% उत्तरदाताओं ने यह भी सोचा कि दुनिया के गर्म होते होते देशों के भीतर असमानता बढ़ जाएगी।
·दो-तिहाई ने कहा कि मध्य शताब्दी तक नेट ज़ीरो एमिशन तक पहुंचने के लाभ उसकी लागत से ज़्यादा हैं।
·पिछले पांच वर्षों में जलवायु परिवर्तन के बारे में चिंता में वृद्धि की लगभग 80% ने आत्म-सूचना दी।
· उत्तरदाताओं के मुताबिक, मौजूदा वार्मिंग प्रवृत्ति जारी रहने पर जलवायु परिवर्तन से आर्थिक नुकसान 2025 तक प्रति वर्ष $ 1.7 ट्रिलियन तक पहुंच जाएगा, और 2075 तक लगभग 30 ट्रिलियन डॉलर प्रति वर्ष (अनुमानित GDPका 5%) तक पहुंच जाएगा।
. ये निष्कर्ष DICE (डाइस) जैसे आर्थिक मॉडल्स, जिन्होंने नीति निर्माताओं को भारी रूप से प्रभावित किया है, के बिलकुल विपरीत हैं। DICE का अनुमान है कि 3.5°C पर “इष्टतम” तापमान 2100 में (जहाँ लाभ और लागत संतुलित है) होगा।
न्युयोर्क युनिवेर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर और “क्लाइमेट शॉक” के सह-लेखक, गरनॉट वैग्नर , कहते हैं, “इस सर्वेक्षण से पता चलता है कि अर्थशास्त्रियों के बीच यह सहमति कितनी व्यापक है कि महत्वाकांक्षी जलवायु कार्रवाई आवश्यक है। CO2 एमिशन में कटौती करने की लागत ज़रूर है, लेकिन कुछ नहीं करने की लागत इससे काफी अधिक है।”
जलवायु परिवर्तन के लिए अवलोकन की गई चरम मौसम की घटनााएं ज़िम्मेदार हैं। हाल के चरम मौसम की घटनाओं (जैसे ऑस्ट्रेलिया और पश्चिमी संयुक्त राज्य अमेरिका में वाइल्डफायर, यूरोप में हीटवेव और ऐतिहासिक रूप से बड़ी संख्या में तूफान) से होने वाले उच्च स्तर के नुकसान ने अर्थशास्त्रियों के विचारों को आकार देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं। अर्थशास्त्रियों ने भी ऐसी घटनाओं पर गौर फ़रमाया होगा। चरम मौसम की घटनाओं से जलवायु परिवर्तन के बारे में आम जनता की चिंता का स्तर भी बढ़ जाता है (सिस्को एट अल।, 2017)।
लगभग एक चौथाई उत्तरदाताओं ने 1.5°C ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों पर IPCC (आईपीसीसी) की विशेष रिपोर्ट के प्रभाव पर प्रकाश डाला।
उत्तरदाताओं ने जलवायु प्रभावों के बारे में अधिक स्तरों की चिंता व्यक्त की; प्रमुख जलवायु-सम्बंधित GDP के नुकसान और दीर्घकालिक आर्थिक विकास में कमी का अनुमान लगाया; और जलवायु प्रभावों की भविष्यवाणी की; सर्वेक्षण में शामिल अर्थशास्त्रियों ने कई ज़ीरो-एमिशन प्रौद्योगिकियों की व्यवहार्यता और सामर्थ्य के बारे में भी आशावाद व्यक्त किया। और वे व्यापक रूप से सहमत थे कि मध्य-शताब्दी तक नेट-ज़ीरो एमिशन तक पहुंचने के लिए आक्रामक लक्ष्य लागत-लाभ उचित थे।
फ्रैंन मूर, UC Davis में असिस्टेंट प्रोफेसर और पर्यावरण अर्थशास्त्र और पर्यावरण अर्थशास्त्र और जलवायु विज्ञान के प्रतिच्छेदन में एक विशेषज्ञ, कहते हैं, “यह स्पष्ट है कि अधिकांश अर्थशास्त्रियों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन से नुकसान बड़े होंगे और इसका जोखिम बहुत बड़ा है। जलवायु परिवर्तन के अर्थशास्त्र और विज्ञान से बढ़ते सबूत जारी ग्रीनहाउस गैस एमिशन के बड़े जोखिमों की ओर इशारा करते हैं। यह सर्वेक्षण दर्शाता है कि पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए एमिशन में महत्वाकांक्षी कमी लाने के लिए एक आर्थिक तर्क और मामला बनता है।”
मीडिया हाउस न्यूज एजेन्सी 3ता.लखनऊ–तमाम कयासों को शांत करते हुए भारत के ऊर्जा एवं रिन्यूएबिल एनर्जी मंत्री राज कुमार सिंह ने न सिर्फ साफ़ कर दिया है कि भारत फ़िलहाल नेट ज़ीरो एमिशन के लिए कोई वायदा नहीं करेगा, बल्कि भारत के ऊर्जा मंत्री ने चीन और उस जैसे बड़े उत्सर्जकों पर शब्दों का तीखा हमला भी कर डाला है।
यह घटनाक्रम हुआ अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा संस्था, IEA, द्वारा आयोजित वर्चुअल नेट जीरो सम्मेलन में जहाँ ऊर्जा मंत्री ने नेट ज़ीरो के लक्ष्यों को फ़िलहाल असम्भव बताते हुए अमीर देशों से अपने उत्सर्जन में कटौती के लिए आगे आने को कहा। ऊर्जा मंत्री के बयान ऐसे समय पर आये जब भारत पर ग्लासगो में नवम्बर में होने वाली COP26 सम्मेलन से पहले बड़े पैमाने पर कूटनीतिक दबाव बन रहा था नेट ज़ीरो लक्ष्य घोषित करने का। लेकिन सिंह ने अंततः सरकार का पक्ष दुनिया के आगे रख ही दिया इस शिखर सम्मेलन में। दरअसल वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए एक साथ काम करने के इरादे से 31 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) और संयुक्त राष्ट्र की 26वीं क्लाइमेट चेंज कांफेरेंस (COP26) के नेट शून्य शिखर सम्मेलन का आयोजन हुआ जिसमें में 40 से अधिक देशों के शीर्ष अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा और जलवायु नेताओं ने भाग लिया।
सिंह ने नेट ज़ीरो का समर्थन करने वाले चीन के ऊर्जा मंत्री झांग जियानहुआ, अमेरिका के जलवायु दूत जॉन केरी और ईयू के फ्रैंस टिममेन के साथ इस सम्मलेन में पैनल चर्चा के दौरान बिना किसी का नाम लिए कहा, “ऐसे भी देश हैं जिनका प्रति व्यक्ति उत्सर्जन विश्व औसत का चार गुना, पांच गुना, छह गुना, यहाँ तक की 12 गुना है।” उन्होंने आगे चीन पर तीखा हमला करते हुए कहा, “ये तो हम सुनते आ रहे हैं कि हम उत्सर्जन कम करेंगे, लेकिन अब सवाल यह उठता है कि उत्सर्जन कब कम होने वाला है? जो हमें सुनाई देता है वो ये है कि 2050 तक या 2060 तक हम कार्बन न्यूट्रल हो जाएंगे, लेकिन 2060 बहुत दूर है। और अगर इसी रफ्तार पर वो एमिशन करते रहे तो दुनिया नहीं बचेगी।” ऊर्जा मंत्री ने आगे साफ़-साफ़ पूछा कि, “अब आप ये बताइए कि आप अगले पांच से दस सालों में क्या करने वाले हैं इस दिशा में क्योंकि दुनिया यही जानना चाहती है।” यहाँ जानना होगा कि कच्चे तेल के निर्यातक सऊदी अरब साल 2030 तक 50 फ़ीसद रेन्युब्ल एनेर्जी की ओर जाने की बात कर रहा है और पौधारोपण को बड़े पैमाने पर प्रोत्साहित कर रहा है। IEA द्वारा आयोजित इस नेट ज़ीरो सम्मेलन की शुरुआत करते हुए, COP26 के अध्यक्ष आलोक शर्मा ने सभी देशों को शुद्ध शून्य दुनिया के लिए प्रतिबद्ध होने को कहा। उन्होंने कहा, “फ़िलहाल इस नेट ज़ीरो लक्ष्य को पूरा करने के लिए पर्याप्त काम नहीं किया जा रहा है। हम एक और दशक सिर्फ विचार-विमर्श में नहीं गँवा सकते।” इधर कुछ समय से नेट ज़ीरो के लिए भारतीय योजनाओं पर अटकलें तेज हो गई थीं। बल्कि हाल की रिपोर्टों ने तो इस बात तक का इशारा किया कि मोदी के करीबी सरकारी अधिकारी 2050 या 2047 के लिए शुद्ध शून्य लक्ष्य निर्धारित करने पर विचार कर रहे थे। लेकिन इस सप्ताह की शुरुआत में, सरकारी सूत्रों ने समाचार एजेंसी रायटर्स को बताया कि भारत के 2050 तक अपने आप को एक शून्य शून्य लक्ष्य में बंधने की संभावना नहीं है। और अब IEA की #NetZeroSummit में बिजली मंत्री के भाषण ने सभी अटकलें पर विराम लगा दिया। नेट ज़ीरो के लक्ष्य हाल फ़िलहाल में विशेषज्ञों के निशाने पर आ गए हैं और उनकी जांच के दायरे में हैं क्योंकि इन लक्ष्यों में भविष्य में 30 साल के लिए प्रतिबद्धताओं का उल्लेख तो किया है लेकिन आने वाले अगले कुछ सालों में कटौती के लिए किसी परिवर्तनकारी कार्रवाई का ज़िक्र नहीं किया है।





मीडिया हाउस न्यूज ऐजेन्सी 23ता.लखनऊ-उप मुख्यमंत्री डॉ0 दिनेश शर्मा ने बताया कि होली के त्यौहार तथा कोविड-19 के न्यू स्ट्रेन के कारण संक्रमण के केसेस में हाल में हुई वृद्धि के दृष्टिगत जनहित/छात्रहित में सम्यक विचारोपरान्त प्रदेश में संचालित समस्त शिक्षा बोर्डों के कक्षा-9 से 12 तक के माध्यमिक विद्यालय (जिन विद्यालय में परीक्षा हो रही है, उन्हे छोड़कर) को दिनांक 25.03.2021 से दिनांक 31.03.2021 तक होली के अवकाश हेतु बन्द रखे जाने का निर्णय लिया गया है।
उन्होंने यह भी कहा कि जिन विद्यालयों में इस अवधि में पूर्व से परीक्षाएं निर्धारित है, वह केवल परीक्षा कार्य हेतु ही खोले जा सकते है परन्तु नियमित पठन-पाठन का कार्य तथा कक्षायें संचालित नहीं होंगी। उक्त के अतिरिक्त माध्यमिक शिक्षा विभाग द्वारा संचालित कक्षा 01 से कक्षा 08 तक के समस्त विद्यालय दिनांक 24.03.2021 से 31.03.2021 तक होली के अवकाश हेतु बन्द रहेंगे। डॉ0 शर्मा ने बताया कि परीक्षा के समय कोविड-19 से संबंधित शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार द्वारा www.mhrd.gov.in पर जारी गाईड-लाइन्स तथा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग, उ0प्र0 शासन एवं शासनादेश संख्या-1549/15-7-2020-1(20)/2020 दिनांक 10.10.2020 द्वारा निर्गत Standard Operating Procedures (SOP) का अक्षरशः अनुपालन सुनिश्चित किया जाएगा।
मीडिया हाउस न्यूज ऐजेन्सी 22 ता.लखनऊ- सरकार के चार साल पूरा होने पर मनाएं जा रहे आज महिला सशक्तिकरण दिवस के अवसर पर वर्कर्स फ्रंट ने अपर श्रमायुक्त कार्यालय पर प्रदर्शन किया। 181 वूमेन हेल्पलाइन और महिला समाख्या जैसी महिलाओं के सुरक्षा, सम्मान व स्वावलम्बन के लिए हितकारी कार्यक्रमों को पूरी क्षमता से चलाने, 181 वूमेन हेल्पलाइन कर्मचारियों के बकाए वेतन का अविलम्ब भुगतान कराने, चुनावी वायदे के अनुरूप आगंनबाड़ी, आशा व मिड डे मील रसोइया को न्यूनतम मजदूरी देने और 62 साल पर नौकरी से निकाली गई आगंनबाडियों को पेंशन, ग्रेच्युटी, सवैतनिक अवकाश आदि सेवानिवृत्ति लाभ देने, प्रदेश में महिला फास्ट ट्रैक कोर्ट व हर विभाग में जमीनीस्तर तक विशाखा कमेटी का निर्माण और महिलाओं पर यौनिक हमले व हिंसा के लिए डीएम और एसपी को जबाबदेह बनाने की मांगों पर मुख्यमंत्री को सम्बोधित मांग पत्र अपर श्रमायुक्त बी. के. राय को सौंपा। इस मांग पत्र की प्रतिलिपि अपर मुख्य सचिव श्रम और महिला एवं बाल विकास व निदेशक महिला कल्याण को भी आवश्यक कार्यवाही हेतु भेजी गई है। इस अवसर पर 181 वूमेनहेल्प लाइन, महिला समाख्या और आंगनबाडियां अच्छी संख्या में मौजूद रही।
प्रदर्शन में हुई सभा में वक्ताओं ने कहा कि योगी सरकार का चाल सालों में प्रदेश में महिलाएं बेहाल है। सरकार द्वारा चलाया जा रहा मिशन शक्ति फ्लाप शो बनकर रह गया है। राष्ट्रीयस्तर पर प्रदेश महिलाओं के प्रति हो रही हिंसा के मामलों में अव्वल नम्बर पर है। जिसका हाथरस कांड़, गोरखपुर के गोला इलाके में अव्यस्क लड़की के शरीर को सिगरेट से दागकर इंसानियत को दहला देने वाले सामूहिक दुष्कर्म, लखीमपुर खीरी में 13 साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म करके उसकी जबान तक काट डालने, हापुड़ में 6 साल से कम उम्र की बच्ची के साथ हुए बलात्कार और देश की प्रतिभा अमेरिका के कैलिफोनिर्या में पढ़ने वाली 20 वर्षीय सुदीक्षा की दादरी, ग्रेटर नोएडा में छेड़खानी के कारण सड़क दुधर्टना में मृत्यु की जैसी राष्ट्रीयस्तर पर चर्चित तमाम घटनाएं उदाहरण है। इतनी बुरी हालत में भी महिलाओं को जमीनी स्तर पर लाभ देने वाली 181 वूमेन हेल्पलाइन को बंदकर सामान्य पुलिस लाइन में समाहित कर दिया गया। 32 साल से जमीनीस्तर पर घरेलू हिंसा पर काम कर रही महिला समाख्या को बंद कर दिया गया। हजारों आगंनबाडियों को बिना रिटायरमेंट लाभ दिए नौकरी से निकाल दिया गया। आशा, आंगनबाड़ी, मिड डे मील रसोइयों को सम्मानजनक वेतन देने का वायदाकर सत्ता में आई भाजपा सरकार हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी न्यूनतम मजदूरी देने को तैयार नहीं है। प्रदेश में महिलाओं को वास्तविक लाभ देने की जगह महज प्रचार पर करोड़ों रूप्या बहाया जा रहा है। वक्ताओं ने कहा कि यदि सरकार ने हमारी मांगों को हल नहीं किया गया तो व्यापक संवाद अभियान चलाकर महिलाओं के बड़े आंदोलन को शुरू किया जायेगा।
कार्यक्रम में वर्कर्स फ्रंट के अध्यक्ष दिनकर कपूर, कर्मचारी संघ महिला समाख्या प्रीती श्रीवास्तव, आगंनबाड़ी कर्मचारी यूनियन सीटू की प्रदेश कोषाध्यक्ष बबिता, 181 वूेमन हेल्पलाइन की नेता पूजा पांडेय, आइपीएफ के प्रदेश उपाध्यक्ष उमाकांत श्रीवास्तव, महिला समाख्या की शुगुफ्ता यासमीन, अनिता, निधि खरे, नेहा अरूण, गीता सैनी, अर्चना पाल, रीता राज, रेनूलता, सरिता जायसवाल आदि दर्जनों लोग शामिल रहे।