मीडिया हाउस न्यूज एजेंसी 19ता.लखनऊ-क्या आपको पता है दुनिया भर में प्रस्तावित कोयले की खादानों से होने वाला मीथेन एमिशन अमेरिका के सभी कोयला बिजली घरों से होने वाले कार्बन डाईऑक्साइड एमिशन की बराबरी कर सकता है? स्थिति की गंभीरता इसी से लगाइए कि CO2 के बाद ग्लोबल वार्मिंग में मीथेन का ही सबसे बड़ा योगदान रहा है। मीथेन एक ग्रीन हाउस गैस है और इसके एमिशन्स और जलवायु पर इसका प्रभाव बढ़ती चिंता का विषय बन रहा है। हालांकि इस गैस का प्रभाव कम समय तक रहता है, लेकिन इसकी वजह से ग्लोबल वार्मिंग अधिक होती है।
ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर की नई रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में प्रस्तावित कोयला खदानों से होने वाले मीथेन एमिशन्स की मात्रा, सभी अमेरिकी कोयला संयंत्रों से होने वाले CO2 उत्सर्जन के बराबर हो सकती है जिससे जलवायु प्रभावित होना तय है यह अपनी तरह का पहला सर्वे है जिसमे दुनिया भर की 432 प्रस्तावित कोयला खानों का सर्वेक्षण और मॉडलिंग की गई है।मीथेन एमिशन्स की मात्रा हर खदान से होने वाले एमिशन्स के अनुसार है। यदि एमिशन्स की मात्रा को इन प्रस्तावित खानों से कम नहीं किया जाता तो आने वाले समय में मीथेन के एमिशन्स में 13.5 मिलियन टन (Mt) की वार्षिक बढ़ोतरी होगी, जो वृद्धि 30% तक की ओवरचार्ज मीथेन एम्मिशन होगा। CO2 के बाद ग्लोबल वार्मिंग करने में मीथेन गैस का सबसे बड़ा योगदान है, लेकिन वातावरण में इसका जीवनकाल कम रहता है अर्थार्त इस गैस का प्रभाव कम समय तक रहता है, लेकिन इस गैस से ग्लोबल वार्मिंग सबसे अधिक होती है।माइनिंग के दौरान कोयला सीम्स टूटने से और आसपास की परतों से मीथेन गैस का वातावरण में एम्मिशन होता है।ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर के एक रिसर्च एनालिस्ट और इस स्टडी के लेखक, रयान ड्रिस्केल टेट ने कहा, “कोयला खदान से निकलने वाली मीथेन गैस ने वर्षों से इस छानबीन और तहकीकात को चालाकी और पैंतरेबाजी से टाला है, हालांकि इसके स्पष्ट प्रमाण हैं कि इससे जलवायु प्रभावित होती है। यदि नई कोयला खदानें बढ़ाई जाती हैं, वो भी बिना इस गैस को कम करने के उपाय के, तो ग्रीनहाउस गैस का एक बड़ा स्रोत अनियंत्रित हो जाएगा।”
रिपोर्ट के अनुसार, कोयले की खदानें जो अभी विकास की स्टेज पर हैं वो अगले 20 साल तक हर साल लगभग 1,135 मीट्रिक टन CO 2 इक्विवैलेंट (CO 2e) का रिसाव करेगी और अगले 100 साल के हिसाब से 378 मीट्रिक टन वार्षिक CO2 का रिसाव करेगी। यदि 20 साल के आधार को माना जाये तो मीथेन गैस का एम्मिशन अमेरिकी कोयला संयंत्रों से होने वाले वार्षिक CO2 उत्सर्जन (2019 में 952 मीट्रिक टन) से अधिक होगा । प्रस्तावित कोयला खदानों से होने वाले सबसे अधिक मीथेन गैस का एम्मिशन (CO2e20) वाले देशों में चीन (572 मीट्रिक टन), ऑस्ट्रेलिया (233 मीट्रिक टन), रूस (125 मीट्रिक टन), भारत (45 मीट्रिक टन), दक्षिण अफ्रीका (34 मीट्रिक टन), अमेरिका (28 मीट्रिक टन) और कनाडा (17 मीट्रिक टन) शामिल हैं । चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका, तुर्की, पोलैंड और उजबेकिस्तान में प्रस्तावित कोयला खदानें मीथेन के रूप में ग्रीनहाउस गैस का एम्मिशन 40-50% कर सकती हैं, जिससे वे दुनिया में गैस के मामले में सबसे ज़्यादा सघन प्रस्तावित कोयला खदानें मानी जाएँगी।
GEM (ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर) ने खनन की गहराई, कोयला रैंक, पर डेटा का उपयोग करके व्यक्तिगत खदान स्तर पर वैश्विक मीथेन उत्सर्जन अनुमान लगाया है, और अपने नए विकसित ग्लोबल कोल माइन ट्रैकर की सहायता से इस रिपोर्ट को बनाया है।ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर (GEM) एक नॉनप्रॉफिट रिसर्च आर्गेनाइजेशन है जो दुनिया भर में फॉसिल फ्यूल परियोजनाओं पर जानकारी विकसित कर रहा है।
वनों को कटाई से बचाया जाये! पर्यावरण की बेहतरी के नाम पर कहीं कार्बन न्यूट्रल एलएनजी छलावा तो नहीं.?
दुनिया भर में, एलएनजी या लिक्विफाइड नेचुरल गैस को तेल या कोयले के मुकाबले में कम कार्बन वाला ईंधन का विकल्प माना गया है।लेकिन कार्बन एमिशन की परिभाषा के अनुसार, एलएनजी भी कोयले की तरह ही कार्बन उत्सर्जन कर सकता है। एलएनजी बनाने की प्रक्रिया के हर चरण में कार्बन एमिशन होता हैं। लिक्विफैक्शन से लेकर ट्रांसपोर्टेशन तक और रीगैसिफिकेशन में और LNG जलने पर भी।
एलएनजी में सबसे मुख्य हिस्सा मीथेन गैस है, और मीथेन गैस एक प्रमुख ग्रीनहाउस गैस है जो कि पहले 20 वर्षों के दौरान वातावरण में जो कार्बन था उसके मुकाबले जलवायु को गर्म करने में इसका 90 फ़ीसद से भी अधिक हिस्सा रहता है।कार्बन न्यूट्रल एलएनजी का मतलब यह नहीं कि इसके उत्पादन में कार्बन एमिशन नहीं हुआ। बल्कि इसका मतलब है कि कार्गो से जुड़े कार्बन उत्सर्जन को बराबर किया गया है या छिपाया गया है, सामान्य तौर पर इसकी भरपाई कार्बन क्रेडिट की खरीद के जरिए की जानी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं है, यह व्यक्तिगत सौदे के आधार पर निर्भर करती है।
अब सवाल उठता है कि इसमें समस्या क्या है।
इसका जवाब देते हुए पेट्रोलियम इकोनॉमिस्ट मैट स्मिथ बताते हैं, “कार्बन न्यूट्रल एलएनजी ने भले ही कंपनियों के लिए सकारात्मक फ़िज़ा बनाई हो लेकिन यह एमिशन को मापने या ऑफसेट करने का तरीका अव्यवस्थित और विवादित है और इसके बारे में इंडस्ट्री कि कोई आम सहमति भी नहीं है।”जैसा कि देखा गया है, ग्लोबल स्तर पर कार्बन या मीथेन उत्सर्जन को कैसे मापा या रिपोर्ट किया जाता है, इसका कोई तरीका नहीं है, जिसका अर्थ है कि एमिशन्स एक समान तरीके से मापे नहीं जाते हैं और ये हर व्यक्तिगत सौदे पर निर्भर करता है कि विक्रेता कार्बन मापने के तरीके को किस तरह से परिभाषित करता है। समझौते के आधार पर अलग अलग तरीके से ओफ़्सेट के आधार पर कार्बन एमिशन की मात्रा घटती बढ़ती रहती है। कुछ मामलों में कार्बन ऑफसेट सिर्फ अपस्ट्रीम कॉम्पोनेन्ट से आता है, जिसका अर्थ है कि यह केवल मामूली सा ऑफसेट है।
NRDC के हान चेन के मुताबिक, उत्सर्जन जो कि पावर प्लांट्स में इस्तेमाल होने वाली गैस और कार्गो के बड़े हिस्से से होता है, वह ऑफसेट नहीं किया जाता है। वहीं ऑक्सफोर्ड इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी स्टडीज के फेलो, जोनाथन स्टर्न के अनुसार, “अगर कंपनियां एलएनजी कार्गो और ऑउटसेट्स दोनों के उत्सर्जन की गणना करने के लिए इस्तेमाल किए गए माप, रिपोर्टिंग और जांच पड़ताल के तरीकों का विवरण नहीं देती हैं, तो यह निश्चित रूप से ग्रीनवॉशिंग के आरोपी कहे जा सकते हैं और इस के लिए जिम्मेदार ठहराए जा सकते है। कैलकुलेशन को कैसे अंजाम दिया जाता है, इसका पूरा ब्योरा इस बात को निर्धारित करने के लिए आवश्यक है कि क्या व्यवसाय समझौता वास्तव में कार्बन न्यूट्रल हैं और क्या कार्गो को तुलनात्मक रूप से देखा गया है कि वे कार्बन न्यूट्रल है।”
अब जान लीजिये एलएनजी ऑफसेट कैसे होता है।
शेल की प्रेस रिलीज में, कार्बन ऑफसेटिंग को इस तरह से परिभाषित किया गया है “ईंधन के उत्पादन, वितरण और उपयोग से बनने वाली कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को प्राकृतिक तरीके से कम करने के तरीके को अपनाया जाये [जैसे: पेड़ लगाने के माध्यम से] या वनों को कटाई से बचाया जाये।”
भले ही शेल ने अपने उत्सर्जन को सख्ती से मापा हो, लेकिन इस विचार का दूसरा वक्तव्य बेहद समस्यात्मक है। ओफ्सेटिंग गैस कार्बन एमिशन के प्रबंधन का एक अनुचित तरीका है। 2019 में, लगभग 5,500 एलएनजी कार्गो बेचे गए, जिसके ऑफसेट के लिए एलएनजी को एक केवल एक साल के उपयोग के कार्बन एमिशन को बराबर करने के लिए 1.5 बिलियन पेड़ों या इसके बराबर कार्बन क्रेडिट की आवश्यकता होगी । प्रकृति-आधारित कार्बन क्रेडिट के दुरुपयोग होने की आशंका भी अधिक रहती है, और यदि परियोजनाओं को गलत तरीके से पूरा किया जाता है, तो वे वास्तव में वनो की सेहत के लिए ठीक नहीं है और वैश्विक ग्रीन हाउज़ गैसों के उत्सर्जन में वास्तविक रूप से वृद्धि कर सकते हैं। प्रकृति आधारित समाधान भी मीथेन से उत्सर्जन को कम करने के लिए कुछ नहीं कर सकते क्योंकि ये सिर्फ CO 2 को कम कर सकते हैं। जैसा कि पहले बताया गया है, मीथेन CO 2 की तुलना में जलवायु को गर्म करने के लिहाज से और भी अधिक शक्तिशाली है और एलएनजी में सबसे मुख्य हिस्सा मीथेन गैस है।
यहाँ सवाल बनता है कि क्या कार्बन न्यूट्रल एलएनजी इंडस्ट्री को पेरिस लक्ष्यों के करीब लाने में मदद करता है?
दरअसल यह स्पष्ट नहीं है कि कार्बन न्यूट्रल एलएनजी कार्गो के साथ जुड़े कार्बन ऑफसेट को सरकार पहले से ही नैश्नली डेटरमिन्ड कॉन्ट्रिब्यूशन (NDCs) के लिए योगदान के रूप में गिनती है।इस पर वुड मिकेंज़ी के विशेषज्ञों का कहना है कि “इसमें कोई संदेह नहीं है कि सकारात्मक सुर्खियां ही सौदों के अधिक संख्या में बढ़ने को प्रेरित कर रही हैं। सिर्फ मामूली प्रीमियम के लिए कंपनियों को उनके ग्रीन क्रेडेंशियल्स के व्यापक कवरेज के साथ पुरस्कृत किया जा रहा है यह एक आसान जीत ही मानी जाएगी।”
उनके अनुसार “LNG, आयल और गैस सेक्टर में सबसे अधिक एमिशन बढ़ाने वाले रिसोर्सेज़ में मानी जाती है। लिक्विफैक्शन प्रक्रिया को चलाने के लिए गैस को जलाया जाता है जिसकी वजह से एमिशन अधिक होता है और CO2 को plant में प्रवेश करने से पहले ही हटाने से वो पर्यावरण में चला जाता है। एशिया LNG खरीदारों में सबसे आगे रहा है और LNG का कार्बन फुटप्रिंट जांच के दायरे में आता है यह समय की मांग है कि कार्बन एमिशन्स का सभी टेंडर्स में ठीक से विवरण होना चाहिए । हम अब दुनिया की पहली कार्बन-न्यूट्रल कार की डिलीवरी भी देख चुके हैं जो एशियाई बाज़ारों तक पहुंच भी चुकी है। कार्बन एमिशन को मापना एक बड़ी चुनौती है, जिसमें कोई समान परिभाषा, कार्यप्रणाली या रिपोर्टिंग स्ट्रक्चर नहीं है। ”
यदि ये पहले से ही गिना जा चुका हैं, तो ये सभी सौदे किसी भी तरह से सार्थक नहीं हो सकते क्योंकि ये कार्बन ऑफसेट को किसी तरीके से सही और सार्थक साबित नहीं करते। दूसरे शब्दों में, यह एक पीआर खेल है और कंपनी की व्यापार नीति में एक सार्थक बदलाव नहीं है।
एनेर्जी आस्पेक्ट्स नमक संस्था में लीड एलएनजी विश्लेषक ट्रेवर सिकोर्स्की ने कहा, “एलएनजी सेलर्स या बायर्स को खुद से ओफ्सेटिंग करने से रोकने के लिए कोई नियम नहीं है। शेल का हित या स्वार्थ सभी डाउनस्ट्रीम एमिशन को ऑफसेट करना है – इसलिए वे अब ऐसा कर सकते हैं। इस तरह, ऐसा लगता है कि दो अलग-अलग चीजें एक साथ आ रही है वो भी सिर्फ अनुबंध को चलाने के लिए – और इसे बाद में आसानी से अलग किया जा सकता है। ”
सिकोरस्की ने कहा कि इस बात को लेकर अभी भी अस्पष्टता है कि मेजबान सरकारें अपने NDC ट्रेड को किस तरह से एडजेस्ट करेंगी, इस वर्ष COP 26 में इस विषय के हल होने की उम्मीद है।
तो फिर इसमें कोई अच्छा समाचार है?
है, बिलकुल है। और वो ये है कि कार्बन-न्यूट्रल एलएनजी ’की मार्केटिंग से पता चलता है कि एशियाई गैस खरीदारों के बीच हरियाली की लिए समझ या जागरूकता की शुरुआत हो चुकी है, भले ही यह अभी समस्याओं से घिरी हो। यह काफी दिलचस्प है क्योंकि एशिया में अभी तक कोई उत्सर्जन नियम नहीं हैं। विश्लेषक अभी तक इसके कारणों पर सहमत नहीं है, लेकिन यह संदेह है कि यह एशिया में जो कॉरपोरेट्स से जुड़ा है वो ESG कारणों से पर्यावरण के अनुकूल नीतियों को अपनाने की आवश्यकता के बारे में जानता हैं। लेकिन यही गारंटी का एकमात्र तरीका है कि वातावरण के एमिशन को कम करके 2 डिग्री सेल्सियस तक वार्मिंग को सीमित रखने के लिए एकमात्र तरीका है एलएनजी की खपत को कम करने के लिए ठोस कदमों को उठाना। चूंकि ऑफसेटिंग से केवल कार्बन एमिशन कम होता है और यह इसको शुरू में ही रिलीज होने से नहीं रोकता। गैस व्यापार, उत्पादन और निर्यात का बड़े पैमाने पर योजनाबद्ध विस्तार, हालांकि यह ब्रांडेड है, वैश्विक वातावरण के एमिशन को कम करने के लक्ष्यों को प्राप्त करने में सार्थक नहीं है ।
क्या ‘कार्बन-न्यूट्रल’ LNG ट्रेडिंग डायनामिक्स को प्रभावित कर सकता है?
इस प्रवृत्ति कि शुरुआत शेयरधारक की बढ़ती रुचि पर निर्भर करता है कि गैस के एमिशन्स के फुटप्रिंट पर पारदर्शिता बढ़े।
यूरोप में नए मीथेन नियम जो यह भी स्पष्ट करेंगे कि इम्पोर्टेड गैस के एक कार्गो में कितनी मीथेन है, इस क्षेत्र में ट्रेडिंग डायनामिक्स को बदल सकते हैं । एक सूत्र के अनुसार, ये चर्चा अभी भी अपने शुरुआती दौर में है, लेकिन सरकार के स्तर पर इस बारे में भी बातचीत चल रही है कि क्या जापान भी यूरोप के एक फैसले के बाद समान नियमों का पालन करेगा ?
यदि गैस कार्गो को एमिशन्स के फुटप्रिंट से भी जोड़ा जाता है, तो कुछ खरीदने के विकल्प जलवायु के दृष्टिकोण से दूसरों की तुलना में अधिक आकर्षक हो जाते हैं। उदाहरण के लिए, केरोस और बोस्टन कंसल्टिंग के अनुमान के अनुसार, US Permian Basin गैस में रूस से गैस की तुलना में 30 गुना अधिक मीथेन के होने का अनुमान है। इसी तरह Qatari कार्गो अक्सर LNG ट्रेडिंग बेसिन के लिए देश की भौगोलिक निकटता के कारण छोटी दूरी की यात्रा करते हैं
तो अब फर्क क्यों पड़ता है?
बहुत सारे दृष्टिकोण हैं जो हमें वातावरण में उत्सर्जन को कम करके वार्मिंग को 1.5 या 2 डिग्री तक नीचे लाते हैं वे कुछ हद तक NETs पर निर्भर करता हैं। जलवायु में व्यापक रूप से बने रहने वाला तर्क यह है कि NETs अभी भी बड़े पैमाने पर उपलब्ध नहीं हैं और इसलिए हमें उत्सर्जन में कटौती को प्राथमिकता देनी चाहिए और NETs के भरोसे नहीं बैठना चाहिए। यह निश्चित रूप से सच है, लेकिन वैज्ञानिक हमें बता रहे हैं कि हम पेरिस लक्ष्यों को कुछ हद तक NETs के बिना हासिल नहीं कर सकते हैं, जबकि वे इस बात पर भी ज़ोर देते हैं कि अकेले NETs को एक मजबूत रणनीति नहीं माना जा सकता। नगर निगम ध्यान दे रहे हैं (हालांकि यह देखा जाना चाहिए कि वे निवेश के लिए गंभीर हैं, या सिर्फ इन अप्रमाणित तकनीकों का उपयोग करके अस्थिर उत्सर्जन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए ऐसा कर रहे हैं ), जबकि कई जलवायु संगठन इन तकनीकों पर बातचीत में शामिल होने के लिए आशंकित लगते हैं कि ये तकनीक क्या हो सकती है और उन्हें यहाँ उपयोग किया जा सकता है।

मीडिया हाउस न्यूज एजेंसी 16ता.लखनऊ-तमाम देशों में आजकल होड़ है कि और कुछ न सही तो कम से कम जलवायु के लिए अपनी संवेदनशीलता तो जग ज़ाहिर कर दें। इस क्रम में नेट ज़ीरो होने की घोषणा आम हो रही है।लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि सिर्फ़ ये कह देना कि हम नेट ज़ीरो होने जा रहे हैं, काफ़ी नहीं।
नेचर मैगजीन में ताज़ा प्रकाशित कमेंट्री में साफ़ कहा गया है कि सरकारों और व्यवसायों को अपनी नेट-ज़ीरो जलवायु योजनाओं में पारदर्शिता को बढ़ाने की जरूरत है।उनका कहना है कि नेट ज़ीरो की बात करने वाले देशों, कंपनियों और उनके सलाहकारों को अपने नेट ज़ीरो लक्ष्यों के तीन पहलुओं को स्पष्ट करने की आवश्यकता है। और ये तीन पहलु हैं, प्रतिबद्धताओं का दायरा; उन प्रतिबद्धताओं को पर्याप्त और निष्पक्ष कैसे माना जाता है इस पर साफ़ स्थिति; और नेट ज़ीरो होने का एक ठोस रोडमैप।आने वाले शुक्रवार, 19 मार्च, को फ्राइडे फॉर फ्यूचर के बैनर तले जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ युवा क्रांतिकारियों की अगली वैश्विक हड़ताल शुक्रवार होनी है। और इस बार इन युवाओं का मुद्दा है खोखले वादों का विरोध और इसी वजह से नेचर की इस कमेंट्री का इस स्ट्राइक में गूंजना तय है।नेचर में प्रकाशित यह पेपर बताता है कि नेट-ज़ीरो को ले कर किये जा रहे वादों का फ़िलहाल आंकलन करना मुश्किल है क्योंकि ऐसी कोई व्यवस्था या मानक है ही नहीं अभी जिसके सापेक्ष इन्हें जांचा जा सके और इसी वजह से मौजूदा रणनीतियों को समझा नहीं जा सकता।
अगर पेपर से मिलते मुख्य संदेशों की बात करें तो वो कुछ इस प्रकार हैं:
-वर्तमान नेट-शून्य योजनाओं में पर्याप्त विवरण और पारदर्शिता नहीं है।
-शब्दावली पर कोई मानकीकरण नहीं है, इसलिए यह समझना आसान नहीं है कि ठोस तौर पर क्या कहा जा रहा है। उदाहरण के लिए “कार्बन न्यूट्रल” होना और “क्लाइमेट न्यूट्रल” होना। इनका मतलब क्रमशः नेट-ज़ीरो CO2 उत्सर्जक होना और नेट-जीआर जीएचजी उत्सर्जक होना हो सकता है। लेकिन इनका उपयोग योजनाओं में परस्पर विनिमय के लिए भी किया जाता है, इसलिए यह जानना मुश्किल है कि प्रयास कहां सच कहाँ झूठ होगा।
-देशों और कंपनियों को ऐसे लक्ष्य निर्धारित करने चाहिए जो उचित योगदान को दर्शाते हों। वैश्विक स्तर पर, CO2 उत्सर्जन को 2030 तक आधा करने और 2050 तक नेट-शून्य तक पहुंचने की आवश्यकता है। देशों के बीच अवसर, क्षमता और जिम्मेदारी अलग-अलग हैं, इसलिए कुछ देशों को वैश्विक औसत से पहले नेट-शून्य तक पहुंचना होगा और यहां तक कि शुद्ध शून्य से आगे भी जाना होगा।
-जलवायु लक्ष्यों को कसने के लिए उत्तरदायी होना चाहिए। जैसा कि हम एक गर्म दुनिया का अनुभव करते हैं, राष्ट्र और कंपनियां यह तय कर सकती हैं कि कार्रवाई अधिक तेजी से की जानी चाहिए। त्वरण की समीक्षा और लक्ष्यों के पुनर्मूल्यांकन के लिए एक नियमित कार्यक्रम निर्धारित करके प्रोत्साहित किया जा सकता है, जैसे कि पहले से ही अल्प-अवधि के डीडीसी के लिए।
-निकटवर्ती NDCs के विवरण के लिए संयुक्त राष्ट्र की समीक्षा प्रक्रिया, हर पांच साल में उनका आकलन और संशोधन करना एक अच्छा प्रारंभिक बिंदु प्रदान करता है जिसे लंबी अवधि के नेट-शून्य लक्ष्यों को शामिल करने के लिए बढ़ाया जा सकता है। कंपनियों को ऐसा ही करना चाहिए और एक मानकीकृत समीक्षा प्रक्रिया को लागू करना चाहिए, हमारे द्वारा उल्लिखित पहलुओं पर विचार करते हुए, उनके शुद्ध-शून्य लक्ष्य की गुणवत्ता को ग्रेड करने के लिए।इस लेख के प्रमुख लेखक और ग्रांथम इंस्टीट्यूट, इम्पीरियल कॉलेज लंदन में शोध के निदेशक, डॉ जोएरी रोगेलज कहते हैं, “जलवायु प्रतिज्ञाओं को स्पष्ट करने की आवश्यकता हैं। यह साफ़ करने की ज़रूरत है कि किन उत्सर्जन स्रोतों और गैसों को इन वादों में कवर किया गया हैं। क्या यह सिर्फ कार्बन है, या सभी ग्रीनहाउस गैसें हैं? नेट-ज़ीरो तक पहुँचने के लिए और कैसे किया जाएगा योजनाएं भी बताई जानी चाहिए।”कार्बन डाई ऑक्साइड बढ़ते तापमान का मुख्य कारण है और शुद्ध-शून्य हाल्ट्स को और अधिक गर्म करने के लिए उनके उत्सर्जन को कम करता है। अन्य ग्रीनहाउस गैसें भी वार्मिंग पैदा करती हैं लेकिन वर्तमान में उनके उत्सर्जन को खत्म करना असंभव है। इसका मतलब है कि अब मीथेन उत्सर्जन को कम करना, उदाहरण के लिए, अतिरिक्त वार्मिंग में ताला लगाने से बचने के लिए महत्वपूर्ण है।
यहाँ अगर नज़र डाली जाए तमाम नेट ज़ीरो होने के वादों पर तो बड़े रोचक तथ्य और भिन्नताएं सामने आती हैं जो कि इस प्रकार हैं:
– यूरोपीय संघ 2050 तक सभी ग्रीनहाउस गैसों को लक्षित करता है
– चीन की शुद्ध-शून्य योजना केवल 2060 तक CO2 उत्सर्जन को संतुलित करने पर केंद्रित है
-अमेरिका के लिए बिडेन-हैरिस जलवायु योजना का लक्ष्य 2050 तक अर्थव्यवस्था में शुद्ध-शून्य तक पहुंचना है, लेकिन अभी तक यह नहीं कहा गया है कि कौन सी गैसें कवर की जाती हैं
– फ्रांस की रणनीति कार्बन तटस्थता की बात करती है लेकिन सभी ग्रीनहाउस गैसों तक फैल जाती है
यहाँ ध्यान देने वाली बात है कि शुद्ध-शून्य लक्ष्यों में साफ़ होना चाहिए कि वे उत्सर्जन में कटौती, सीधे तौर पर CO2 हटाने और उसे ऑफसेट करने को कैसे संयोजित करते हैं। वैज्ञानिक कहते हैं कि सबसे बेहतर तो उत्सर्जन को कम करना ही होगा क्योंकि जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ कार्रवाई का निश्चित रास्ता यही है।
वैश्विक लक्ष्य की ओर बढ़ने वाली जलवायु योजनाओं का निर्माण करते समय निष्पक्षता भी महत्वपूर्ण है। पेरिस समझौते की पार्टियों को लगातार इस बात का खुलासा करना चाहिए कि वे अपने शुद्ध-शून्य लक्ष्यों को उचित और पर्याप्त क्यों मानते हैं।अब और 2030 के बीच क्या कार्रवाई की जाएगी, इस पर भी अधिक स्पष्टता की जरूरत है। नेट-शून्य लक्ष्य अंतिम बिंदु नहीं हैं। वे खुद मील के पत्थर हैं और आगे चल के शुद्ध- शून्य से शुद्ध-नकारात्मक उत्सर्जन लक्ष्य को पूरा करने में भूमिका निभाते हैं। इसलिए देशों को अपनी शुद्ध-शून्य योजनाओं की स्क्रूटिनी या मूल्यांकन का स्वागत होना चाहिए। डॉ जोएरी रोगेलज ने आगे बताया, “सरकारों और कंपनियों को अधिक विस्तार प्रदान करना चाहिए और अपने शुद्ध-शून्य लक्ष्यों को सही ठहराना चाहिए। इसके लिए एक मुख्य बेंचमार्क COP26 होगा, जहां देश नए जलवायु प्रतिज्ञाओं को प्रस्तुत करेंगे। यदि वे मील के पत्थर, एक कार्यान्वयन योजना और नेट-शून्य बनाए रखने या नेट-नेगेटिव को बनाए रखने के लिए दीर्घकालिक इरादे के बारे में बयान देते हैं तो नेट शून्य लक्ष्य अधिक विश्वसनीय हैं। इन जोखिमों को निष्क्रियता, विविधताओं, और विफलता को छोड़कर। आज के शुद्ध-शून्य लक्ष्य केवल सुरक्षित दुनिया की ओर एक लंबी यात्रा की शुरुआत है।”
मीडिया हाउस न्यूज एजेंसी 3ता.नई दिल्ली-बाँदा के एक सभागार में एक वरिष्ठ व्यंग्य लेखक कैलाश मेहरा के व्यंग्य संग्रह “कतरनें” का विमोचन कार्यक्रम संपन्न हुआ। मुख्य अतिथि थे इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश माननीय आलोक सिंह जी। कैलाश मेहरा एक सशक्त, समर्थ तथा संवेदनशील व्यंग्य लेखक के रूप में उभर कर सामने आए हैं।
● इस व्यंग्य संग्रह “कतरनें” और लेखक कैलाश मेहरा की चर्चा करते हुए वरिष्ठ संपादक गोपाल गोयल ने अपनी समीक्षा मे कहा कि कैलाश मेहरा एक पेशेवर लेखक या व्यंग्यकार नहीं है, फिर भी सामाजिक विसंगतियां उनको बेचैन करती रहती हैं और इस बेचैनी का ही नतीजा है कि वह कलम उठा कर अपनी बेचैनी को व्यंग के परिधान पहनाकर समाज के सामने लाने की कोशिश करते हैं।
● कैलाश मेहरा एक ऐसे व्यंगकार है, एक ऐसे लेखक हैं, जो सामाजिक कुरीतियों, कुरूपताओं, विद्रूपताओं, बुराइयों, सामाजिक असमानताओं तथा अन्याय के विरुद्ध मुखर होते हैं। इन स्थितियों से टकराते हैं, मुठभेड़ करते हैं और एक अच्छे, स्वस्थ्य, सुंदर तथा समरसता वाले समाज की कल्पना करते हैं। ऐसा शायद इसलिए भी है कि वे स्वयं बहुत साफ सुथरे रहने वाले व्यक्ति हैं ~ वेषभूषा से, मिजाज से तथा अपने आचरण से।
● उनके व्यंग सरल भी हैं और आक्रामक भी हैं तथा हमलावर की मुद्रा में भी आते हैं। वे लगातार सशक्त विरोध और प्रतिरोध भी करते हैं। वे छोटी सी छोटी बातों को अपनी व्यंग की विषय वस्तु बनाते हैं और व्यापक रूप में सामाजिक आर्थिक तथा राजनीतिक बुराइयों पर भी कटाक्ष करने से नहीं चूकते हैं।
● उदाहरण के लिए उनके कुछ व्यंग्य की झलक दिखाना भी जरूरी और समीचीन होगा ~शहर की गंदगी पर भी उनके कई व्यंग है। एक व्यंग्य है “सीजन” जिसमें वह लिखते हैं कि ~ “सभी जगह सभी चीजों का अलग-अलग सीजन होता है, पर हमारे शहर में गंदगी का सीजन तो बारहमासी है। •••• अपने शहर में एक विभाग है, जो शहर की सफाई कराता है, पर साल में केवल 7 दिन 26 जनवरी 15 अगस्त 2 अक्टूबर ईद बकरीद दशहरा दिवाली।” इसी व्यंग में वह एक किस्सा बताते हैं कि “उनके एक मित्र के बेटे की सगाई टूट गई। वह मित्र इनको कारण पूछने पर बताते हैं कि सगाई के एक दिन पहले ही लड़की वालों का संदेश आया कि इस बदबू और गंदगी से भरे शहर में अपनी लड़की नहीं देंगे, जिनकी होनी थी हो गई, जिनकी नहीं हुई, उनका क्या होगा कालिया ?” एक और व्यंग्य है “लावारिस लाश” ~ जिसमें वे लिखते हैं कि “मेरे घर के सामने रोडवेज की कार्यशाला की दीवार के पास एक लावारिस लाश पड़ी है, पिछले लगभग 1 महीने से वहीं पड़ी है, उसका वारिस आज तक नहीं आया। उस लाश पर जो कपड़े लत्ते, थे, वह तो अगले दिन ही तमाम वारिस बिना दावे किए ले गए, अब तो बस कंकाल बचा है, जिसे ले जाने के लिए कोई तैयार नहीं है।••• यह लाश किसी आदमी की नहीं, चिल्ला के पेड़ की है, जो सड़क के लगभग मध्य में पिछले 1 महीने से पड़ी है और पथराई नजरों से अपने वारिस की तलाश कर रही है, जो कोई भी आता जाता दिखता है, उसे आशा बनती है कि उसकी अर्थी अब उठेगी।”
● पेशे से वकील होने के बावजूद वह अपने पेशे यानी न्याय व्यवस्था के ऊपर भी उंगली उठाने से संकोच नहीं करते हैं। उनका एक व्यंग है :इंसाफ का तराजू” । संक्षेप में जिसकी कथा यह है कि ~ “राजस्थान के एक छोटे से कस्बे में भंवरी देवी हैं, जो बीजिंग चीन में हुए अंतर्राष्ट्रीय महिला सम्मेलन में भारत की ओर से एक प्रतिनिधि के रूप में गई थी। उन्होंने गाँव के एक धनी परिवार की 1 वर्ष की लड़की का विवाह पक्का हो जाने के खिलाफ आवाज ऊँची करने की जुर्रत की, जिसका खामियाजा भंवरी देवी को भोगना पड़ा और वह 5 आदमियों के साथ बलात्कार का शिकार हो गईं। विद्वान जज साहब ने निचली अदालत से पांचों बलात्कारियों को बाइज्जत बरी कर दिया। विद्वान न्यायाधीश ने अपने निर्णय में यह तर्क देते हुए यह कहा कि यह असंभव है कि 5 व्यक्तियों में, जिनमे से तीन चाचा और दो भतीजे शामिल हों, एक ही महिला के साथ बलात्कार करेंगे और वह भी महिला के पति के सामने ? कितना घिनौना तर्क स्वीकार किया गया ? एक और तर्क था ~ यह भी है कि ऊँची जाति के ये पाँच लोग नीची जात की महिला के साथ बलात्कार करेंगे ? इस निर्णय ने बलात्कारियों के हौसले और भी बुलंद कर दिए हैं पर अभी और भी ऊपर अदालतें हैं, आवाज सुनेंगे और भंवरी देवी को न्याय मिलेगा।” न्याय व्यवस्था पर उंगली उठाता उनका एक और व्यंग है~ “झींगुरी न्याय” । “एक झींगुर एक लस्सी के गिलास में समा गया। लस्सी पहुंच गई एक न्यायिक अधिकारी के पास। आधी लस्सी पीने के बाद उनको आराम फरमाते झींगुर महाशय दिखे, उनको तो गिलास से बाहर निकाल दिया गया और लस्सी बनाने वाले को जेल के अंदर। कुर्सी पर बैठे व्यक्ति की अपनी शान होती है लस्सी में झींगुर ? और कुर्सी पर बैठने वाला चुपचाप कैसे रह सकता है ? झींगुर हत्या के अपराध में लस्सी वाला बासु आज जेल की सलाखों के पीछे है। मामला संगीन बना दिया गया। अधिकारी ने भी न्याय किया और अपना आन बान और शान से बासू का मुकद्दर लिख दिया।” इसी में एक घटना का उल्लेख है एक रेस्टोरेंट में एक महाशय को दाल की प्लेट में मक्खी मिली। ग्राहक ने मालिक से शिकायत की, तो जवाब मिला “₹ 5 की प्लेट में मक्खी ही फ्री दे सकते हैं, एक प्लेट मुर्गा मंगाइए तो मेढक फ्री मिलेगा।”
● उपरोक्त व्यंग्य संग्रह “कतरनें” का विमोचन पिछले दिनों बाँदा मे संपन्न हुआ है। विमोचन कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश आलोक सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि ~ व्यंग्य संग्रह के लेखक कैलाश मेहरा की धर्म पत्नी को प्रथम धन्यवाद दिया जाना चाहिए कि उन्होंने लेखक के पर नही कतरे, इसीलिए “कतरनें” जैसा महत्वपूर्ण व्यंग्य संग्रह आज हमारे हाथों में है।
● इस अवसर पर हिन्दी के मूर्धन्य विद्वान डाॅ चन्द्रिका प्रसाद दीक्षित ललित ने अपने आशीर्वाद के साथ संग्रह पर अपनी सारगर्भित टिप्पणी प्रस्तुत की। कार्यक्रम का सफल और सम्मोहक संचालन अधिवक्ता संघ के पूर्व अध्यक्ष एवं जनवादी रचनाकार आनंद सिन्हा ने किया।
● अंत मे हरिशंकर परसाई जी के एक व्यंग्य की कुछ पंक्तियों को प्रस्तुत करना उपयुक्त रहेगा ~ “मध्यवर्ग का व्यक्ति एक अजीब जीव होता है। एक ओर इसमें उच्चवर्ग की आकांक्षा और दूसरी तरफ़ निम्नवर्ग की दीनता होती है। आकांक्षा और दीनता से मिलकर बना हुआ उसका व्यक्तित्व बड़ा विचित्र होता है। बड़े साहब के सामने दुम हिलाता है और चपरासी के सामने शेर बन जाता है।”
*गोपाल गोयल*
संपादक ~ मुक्ति चक्र
मीडिया हाउस न्यूज एजेंसी 10ता.सोनभद्र-उत्तराखंड के चमोली में ग्लेशियर टूटने से आयी तबाही में मौतों के साथ ही एन.टी .पी.सी. का बिजलीघर तथा एक अन्य बिजलीघर तबाह हो गये।ऋषिगंगा तथा धौलीगंगा के साथ आये मलबे से हुई क्षति का आकलन किया जा रहा है,यद्यपि वास्तविक क्षति बहुत ज्यादा है। सिर्फ बिजलीघरों को दो हजार करोड़ से अधिक नुकसान हो चुका है। पिछले दो वर्ष में देश की उर्जा राजधानी (सिंगरौली और सोनभद्र) में कोयला से चलनेवाले बृहत् बिजलीघरों के राख बांधों के टूटने से जो क्षति हुई है वह उत्तराखंड की क्षति से ज्यादा भयानक है । बिजलीघरों की राख हर-भरी धरती को जहरीले मरुस्थल में बदल रही है।एन.टी,पी,सी, के बृहत् विंध्याचल, बिड़ला के रेणुसागर, रिलायंस के सासन,एस्सार,ओबरा, तथा अन्य इस्पात और बिजली के राखबांध टूटते रहते हैं।जो नहीं टूटते वे भी प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से विषैली राख रिहंद बांध के पं. गोविंद वल्लभ पंत सागर जलाशय मैं गिरातै हैं, हवा में और धरती पर, प्रकृति और जीव-जगत के सांस-आहार में घोलते रहते हैं।इस इलाके में अभी 21हजार मेगावाट बिजली पैदा होती है जो आने वाले दिनों में 35हजार मेगावाट हो सकता है।अभी 25लाख टन कोयला प्रतिदिन जलाया जाता है जिससे 40 प्रतिशत राख
निकलती है। इससे निकलता है-
*100कि.ग्रा.-पारा
*1400कि.ग्रा.-आर्सेनिक
*1900कि.ग्रा.-क्रोमियम
*1220कि.ग्रा.-निकल
*4100 कि.ग्रा.- सी.सा.
*30000कि. ग्रा.-फ्लोराइड
( आंकड़े:सिंगरौली प्रदूषण मुक्ति वाहिनी)
इस घातक उत्सर्जन से हवा,पानी, माटी में जहर घुलता रहता है। सिंगरौली के कुछ संवेदनशील युवाओं ने संघर्ष किया, मामले को उठाया तो राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने कुछ कारखानों पर 78 करोड़ जुर्माना लगाया।ओबरा में रेणुका पार के गांव चकाड़ी में भी राख-बांध है ।यह
अक्सर टूटता रहता है।कभी यहां खेतों और रेणुका तट पर महुआ तथा अन्य विशाल वृक्षों के सघन प्राकृतिक बगीचे थे। कभी रिहंद जलाशय की विशाल कतला मछलियां बंगाल भेजी जाती थीं।अब महुआबारी राख से झुलस कर सूख गयी। रेणुका और रिहंद राख से मृतसागर हो गये। राष्ट्रीय फ्लाई ऐश मिशन और एन.जी.टी. तथा सामाजिक कार्यकर्ता प्रयास कर रहे हैं लेकिन कठोर सत्य है कि भारत का स्वर्ग नरक होता जा रहा है। कश्मीर की बेटी सिंगरौली टूअर की तरह साफ पानी, साफ हवा, साफ माटी के लिये गुहार कर रही है।हर रोज धीमी मौत की जकड़न बढ़ रही है।समय की
मांग है-‘धानी धरती, नीलाकाश! निर्मल-जल, निर्धूम प्रकाश!!
लेखक-नरेंद्र नीरव वरिष्ठ पत्रकार
मीडिया हाउस न्यूज एजेन्सी 28ता.सिंगरौली-क्या इन दौनों समाज में राजनैतिक परिपक्वता, चरित्र, ईमान दारी, कर्तव्य निष्ठा व चातुर्य की कमी है? शायद इन राज नैतिक दलों की यही सोच हो,सो मै कुछ तत्थों पर ध्यानाकर्षण करना चाहता हूँ/ यदि राजनैतिक स्तर पर देखा जाय तो राम राज्य के बाद इतिहास का यदि कोई स्वर्ण काल रहा है ,तो वह था गुप्त काल!! जो कि ईस्वी 260 से प्रारंभ होकर 530 तक रहा, इसे इतिहास में स्वर्ण काल कहा गया इसमे गुप्त वंश ने अपने कृतृत्व से एक नया इतिहास रचा / और आगे चले तो वैश्य समाज के जनक व अग्रोहा धाम की स्थापना करने वाले महाराजा अग्रसेन ने अपने दान शीलता व कार्यों से देश में हिंसा रोकने तथा अपनी राजनीति से एक नया इतिहास रचा ,जिससे प्रेरित होकर अग्रवाल समाज आज भी दान शीलता व धार्मिक प्रवत्ति को बढाने के लिये जाना जाता है/
और आगे बढे ,तो जैन धर्म मे पले बढे दानवीर भामाशाह पर एक नजर डालें ,जिनकी दानवीरता का इतिहास महान शूरवीर महाराणा प्रताप के साथ सदैव लोग पढते रहेंगे, आप ने अपने राष्ट्र की अस्मिता के लिये अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया/ बताया जाता है , भामाशाह ने इतना धन दिया कि 25000 सैनिकों का 12 बर्ष तक निर्वाह हो सकता था/ राजा टोडर मल ने वित्त मंत्री के रूप मे अकबर के नव रत्नों मे शामिल होकर भूमि सुधार एवं कृषि सुधार हेतु अनेक कार्य किये इतिहास मे अनेको ऐसे अनेको महा पुरुषो के नाम दर्ज है जिन्होने अपने कार्यों एवं त्याग से इस समुदाय का गौरव बढाया है /
याद करें जब देश स्वतंत्रता दिवस मना रहा था ,तब एक वैश्य समाज का महा नायक महात्मा गाँधी नोआखाली में आम जनता का दर्द बांट रहा था, उन्होने कभी पद की लालसा नहीं की , पदम विभूषण से सम्मानित स्वतन्त्रा सेनानी , प्रमुख उद्योग पति बाबू घन श्याम दास बिरला ने अपने योग दान से देश को बहुत कुछ दिया परन्तु सत्ता मोह से दूर रहे / राम मनोहर लोहिया से लेकर सीताराम केशरी तक राजनैतिक षडयंत्रो ने वैश्य समाज को आगे नही बढने दिया सदैव राजनैतिक आकाऑ ने उपेक्षा पूर्ण व्यवहार ही किया है / आज भी इस त्यागी, बलिदानी समाज को राजनैतिक भागीदारी से दूर रखने के कुत्सित प्रयास जारी है/ इस समाज को केवल लंच , मँच व धन प्रदान करने बाला ही समझा गया है/ धर्म शाला, गौशाला, पौशाला, रामलीला,रास लीला अनेक धार्मिक कार्यों को गति देने वाला आखिर राजनैतिक भागीदारी से दूर क्यूँ? इस समाज ने घर घर में गीता प्रेस के जरिये रामायण, गीता पहुचाई ,घरों मे सस्ते में समाचार पत्र सुलभ कराये अपराध शून्य यह समाज फिर भी इतना उपेक्षित क्यूँ ? देश का सबसे बडा करदाता , ईमानदारी , महनत व अपने कार्यों से
चौबीस घन्टे जनता की सेवा करने को तत्पर यह समाज राजनैतिक आकाओं की नजर में इतना महत्व हीन क्यूँ?? कुल आबादी का 24 प्रतिशत भागीदारी करने वाले इस समाज की इतनी राजनैतिक दुर्गति क्यूँ ??
सुनियोजित ढंग से हमे विभाजित कर वैश्य समाज के तीन सौ पचास से भी ज्यादा टुकडे किये गये , इसके मूल कारण में जायें तो देश के आबादी का सबसे बडा हिस्सा व कर्म योगी, महनत कश व अहिंसक तथा समाज सेवी वैश्य वर्ग को कमजोर करने की साजिश की गयी, इसी का परिणाम है आज राजनैतिक सह भागिता एवं हिस्से दारी नगण्य है!! अब वैश्य समाज जाग रहा है उसने कर वट ही नही बदली बल्कि उठ खडा हुआ है, जब भी मौका मिला ईमानदारी से बेदाग नेतृत्व भी किया है / चंद्र भान गुप्त व रामप्रकाश गुप्त इसके उदाहरण है/ सीताराम केशरी के बारे में तो कहा जाता था खाता न बही, जो केशरी जी ने कहा वही सही/ अब हम मध्य प्रदेश की बात करें तो वैश्य समुदाय व व्यापारी गण को शामिल कर लें तो इस समुदाय को सभी दलो ने भागीदारी से वंचित ही रखा है नजर दौडायें तो इस समुदाय की सत्ता में भागीदारी नगण्य ही है, अब बात करें जनपद सिंगरौली की ,तो इस समाज को सदैव ही उच्च पदों से वंचित ही रखा गया है कभी भी वैश्य व व्यापारी वर्ग को
सम्मान नहीं दिया गया,
विदित हो इस कोरोना काल में यहाँ के व्यापारी बन्धुऑ व वैश्य समुदाय ने भामाशाह की तरह अपनी तिजोरिया खोलकर असहाय व जरूरत मंदों की सेवा की है लगातार चार महीने तक ट्रामा सेंटर अस्पताल में भोजन वितरण एवं सुरक्षा उपकरणो का वितरण कोई मामूली कार्य नही था परन्तु यह कार्य इन भामा शाहों ने कर के दिखाया , अब वस्त्र वितरण कर हर जरूरतमंद के दरवाजे पर दस्तक दे रहे है / परंतु अफसोस इस वर्ग को सामान्य सीट होते हुए भी महा पौर व स्थानीय निकाय चुनाव में अनदेखी किया जा रहा है जब कि बहुत से अनुभवी व स्वच्छ छवि के किरदार इस समाज में है/ वैश्य महा सम्मेलन के प्रदेश अध्यक्ष व भूत पूर्व मंत्री आदरनीय उमा शंकर गुप्त के प्रयास से यह समाज फिर जागृत हुआ है और राज नैतिक सहभागिता व संघर्ष के लिये कमर कस चुका है, अगर वैश्य व व्यापारी समाज की उपेक्षा होती है तो पच्चीस प्रतिशत भागीदारी वाला यह समाज अपनी लडाई स्वयं लडेगा/
सुरेश गुप्त-साँस्कृतिक जिला प्रभारी
वैश्य महा सम्मेलन, सिंगरौली
https://youtu.be/OrAW2WmhBIQ वैश्य समाज परिवार की तरफ से गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
“विशेल कामदर्तो व गुणरवा परिवाजित:
उपनिवेश: स्त्रिया बलवती सतत देववत पति:
मीडिया हाउस न्यूज एजेंसी 8 ता.राजस्थान- तात्पर्य पति चाहे शील रहित हो, काम पूर्ण हो या अवगुण युक्त हो, कैसे भी क्यों ना स्त्री के द्वारा उसकी सेवा सदा देवतारूप होनी चाहिए। कुछ सवाल हम सभी को सोचने पर विवश कर देते हैं कि क्या महिला का धर्म अधिकारी पुरुष अधिकृत पत्नी बन रहा है?
क्या सभी नियम बंधन महिला के लिए ही है ,,, ??
क्या पुरुष परम स्वतंत्र है ,,, ??
क्या सारा समाज में पुरुष के आने चार को अनदेखा किया जाता है ,,,, ??
क्या स्त्री को ही सब कुछ सहन करना पड़ता है ,,,,?
परिवार में बच्चे पैदा करने से लेकर बच्चों की पढ़ाई और उसकी शादी ब्याह जैसे निर्णय लेने का अधिकार महिला को नहीं होता इस प्रकार महिला दोहरी अभियान की जिंदगी व्यतीत करती है।
हिंदी में स्त्री विमर्श एक वैश्विक विचारधारा है लेकिन विडंबना यही है कि हिंदी में जो स्त्री विमर्श चल रहा है उसका इस वैश्विक विचारधारा से बहुत कम लेना देना है या नहीं के बराबर है । हिंदी में जो भी स्त्री विमर्श है उसकी सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह सिर्फ साहित्यिक दायरे तक सिमटा हुआ है। मैत्रेई पुष्पा और लता शर्मा मनीषा और रोहिणी अग्रवाल जैसे लेखिकाओं को पढ़ने से लगता है कि स्त्री विमर्श से दयनीय कोई दूसरा विमर्श नहीं है क्योंकि हिंदी में इन्हीं लेखिकाओं ने ज्यादा मुखर होकर स्त्री विमर्श पर लिखा है ।
स्त्री की योग्यता को हमारा समाज पुरुष प्रधान होने के कारण सदैव ही कम ही आता है कुछ शीर्षस्थ अपवादों को यदि छोड़ दिया जाए तो स्त्रियों की संख्या पुरुषों के मुकाबले में सब कहीं बहुत कम है ।
स्त्री को आधुनिक काल में सभी अधिकार प्राप्त हैं उसे कमाने का अधिकार है परंतु उस कमाई पर खर्च करने का अधिकार उसे नहीं है यदि उसे अपनी मर्जी से कुछ खर्च भी करना है तो उसे पहले पति की इजाजत लेनी होगी ।
तात्पर्य यह है कि परिवार में अपने परिश्रम के उपार्जन को स्त्री अपने ढंग से खर्च भी नहीं कर सकती है कमाती है वह पर पति के पास होता है। इतनी विषमताओं के बावजूद भी महिला ने अपने पांव अंगद की तरह कामकाजी दुनिया में तालु रखा है जिससे पाना किसी भी पुरुषवादी सोच के लिए असंभव है आज श्री अपने दम पर अपनी योग्यताओं के बल पर जीत रही है और जीत भी रहेगी। दूसरी और नौकरी पेशा स्त्रियों के पतियों को भी अपना दृष्टिकोण उदार बनाना होगा। रूढ़िवादिता का त्याग करें। असहयोग केवल भविष्य को अंधे कुएं में धकेल सकता है रोडे अटकाने की अपेक्षा पुरुष आत्मा लोचन करें। सहधर्मिणी का सहयोग करें और भारतीय पति की पारंपरिक छवि को तोड़कर एक नई परिस्थितियों में स्वयं को परिष्कृत करें। स्त्री के अधिकार मनुष्य के अधिकार हैं।
डॉ.नीतू शर्मा अजमेर, रजि
मीडिया हाउस न्यूज ऐजेन्सी 6 ता.राजस्थान- मेरे बच्चों को मुझसे और मुझे अपनी मां से सख्त शिकायत है कि..हमें झूठ बोलना नहीं सिखाया, दुनियादारी नहीं बनाया इसलिए वह जहां भी जाते हैं स्वयं को अकेला पाते हैं जरा सा भी असत्य का दामन थामने की कोशिश में पसीना पसीना हो जाते हैं ।
किसी भी राष्ट्र को नष्ट करने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि वहां की शिक्षा संस्कृति और इतिहास को विकृत कर दिया जाए और जनसामान्य में हीनता एवं अपराध बोध का भाव उत्पन्न कर दिया जाए जिससे वहां की संस्कृति की जड़ें क्रमशः सूखती चली जाएंगी और वह राष्ट्र विनाश को प्राप्त हो जाएगा । भारतीय संस्कृति के साथ भी यह सब बहुत समय से चल रहा है किंतु यहां की संस्कृति की जड़ें जमीन की अनंत गहराइयों में है जिसके कारण आज भी अपने स्वरूप को बरकरार रखने में सक्षम है हालांकि पश्चिम एवं अरब से आने वाले बर्बर आतंकी लुटेरों ने चाहे वे मुगल शासक हो अथवा अंग्रेज हो वे किसी भी रूप में हो उन सभी ने हमारे यहां के शिक्षण संस्थानों जैसे नालंदा तथा तक्षशिला जैसे वैश्विक शिक्षा के इन संस्थानों को नष्ट किया है । हमारे इतिहास को वितरित करने के पीछे इन सभी विदेशी ताकतों का सीधा सीधा हाथ रहा है जो भारत की सभ्यता एवं संस्कृति को नष्ट करने के लिए वर्तमान एवं पूर्व के समय से पूर्णरूपेण संकल्पित रहे हैं ।हमारे पास अभी भी समय है कि इस पर हम सभी विचार विमर्श करें और इस षडयंत्र पूर्वक हमारे दृष्टिकोण में जो घर कर गई हीनता एवं अपराध बोध की भावनाओं को इस विकृत मानसिकता से ऊपर उठकर स्व चिंतन कर भारत के गौरव को विश्व पटल पर पुनर्स्थापित करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता को व्यक्त करें ।
हम भौतिकवाद की अंधी दौड़ में भ्रमित होकर स्वयं अपने अस्तित्व को ही खत्म करने के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप तौर पर सहमत हो रहे हैं आज हम अपनी संस्कृति एवं परंपराओं की हठधर्मिता के माध्यम से हत्या किए जा रहे हैं जिसकी निष्पत्ति आगे के समय में अपने को ना पहचान पाने के रूप में होगी क्योंकि सभ्यता एवं संस्कृति का विकास एक व्यक्ति नहीं करता बल्कि दीर्घकालीन सतत प्रभाव होने वाली एक लंबी प्रक्रिया होती है । इसके बावजूद भी हम हीन भावना से ग्रस्त होकर पश्चिमी अंधानुकरण को प्राथमिकता दे रहे हैं । जबकि पश्चिमी गतिविधियां एवं कार्यकलाप वहां के वातावरण के हिसाब से हैं और इससे इतर अपने भारतीय संस्कृति की विशिष्टता तो यह रही है कि हमने श्रेष्ठतम सभी नियमों के माध्यम से विश्व को सर्वोत्कृष्ट मार्ग दिखाकर अपनी परिपाटी निर्मित की है । भारत ने विश्व को ज्ञान के अपरिमित कोष से परिचित करवाया है । किंतु कभी भी अपने ज्ञान पर अपना अधिकार नहीं जताया जबकि इसके इतर भी देशों ने उसी ज्ञान को सरल भाषा में यदि कहा जाए तो कॉपी पेस्ट कर अपने नाम का पेंट करवा लिया है ।
यह बात आप स्वयं भी जानते हैं कि महाभारत एवं रामायण काल सहित विधि ज्ञान पूर्ण तरह वैज्ञानिक और आध्यात्मिक पद्धति पर आधारित है एवं यह समय भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति स्वर्णिम काल था जिन आविष्कारों को हम वर्तमान में उन्नति का श्रेष्ठ उदाहरण मानते हैं वे सभी आविष्कार हमारे पूर्वजों ने लाखों हजारों साल पहले ही कर लिया था । वर्तमान में इन्हें आवांछनीय हस्तक्षेपओं की परिणति है कि हम आज भी उन्हीं मतभेदों में उलझे हुए हैं जिसे देश की उन्नति एवं अखंडता को चोट पहुंच रही है । आज भीहम भारतीयों में एक अजब सी होड़ इसी बात को बढ़ा चढ़ाकर बताने की लगी हुई है कि विदेशों में उच्चतम शिक्षा व तकनीकी के साथ-साथ वहां की व्यवस्थाएं भी सुदृढ़ है ।यहां तक कि विदेशों से पर्यटक के तौर पर आने वाले अधिकतर लोग भारतीय संस्कृति से इतना प्रभावित हुए हैं कि वह यहीं के होकर रह गए हैं यह बात यहां तक ही नहीं है उन्होंने हिंदुत्व की दीक्षा भले ही ग्रहण की हो या नहीं कि वह लेकिन वह हमारी संस्कृति के सभी नियमों के मुताबिक आचरण करते हुए देखने को मिल जाएंगे भारतीय वस्त्र पहनें साड़ी धोती कुर्ता माथे पर टीका और गले में माला पहनने में किसी प्रकार का हर्ज नहीं महसूस करते हैं बल्कि चौगुनी इच्छाशक्ति व उत्साह से लबरेज होते हैं । और हम हमारे भारत धर्म और भारतीय संस्कृति को बचाने के बजाय अधोगति में ले जाने का कार्य कर रहे हैं । मैं हमारे चारों ओर के सामाजिक परिवेश की चर्चा कर रही हूं हमने इसे पाश्चात्य संस्कृति से लिया है हमने अति महत्वाकांक्षी होने के कारण हमारे जो सामाजिक परिवेश में अनुशासन हीन जीवन जीने की ओर अग्रसर किया है । वर्तमान में सामाजिक बदलाव को देखकर ऐसा लगने लगा है कि जैसे नहीं हमारी संस्कृति रह गई है और ना ही हमारी सभ्यता जहां तक सवाल है पश्चिमी सभ्यता का तो हम लोगों ने उन बातों को अपनाया जो भारतीय संस्कृति के प्रतिकूल थी जिस भारतीय समाज में हम रहते हैं वहां का वातावरण सभ्यताएं मर्यादा ए नैतिक मूल्य कुछ और ही हैं ऐसे में जब हम पहनावे की खुली सोच और खुले पन का अंधानुकरण करते हैं तो हमारे वातावरण में नग्नता दिखाई देती है हवा में अजीब सी गंध की खुल गई है मानव मस्तिष्क पर विपरीत असर कर रही है । हमारी भारतीय संस्कृति में चार मूल्य प्रमुख है धर्म अर्थ काम और मोक्ष ।। अब यह बात अलग है कि पाश्चात्य संस्कृति के अर्थ और काम की ही प्रमुखता है ।सादा जीवन उच्च विचार वाली हमारी संस्कृति की परंपरा समझी जाती थी परंतु आधुनिकता की इस अंधी दौड़ में भ्रमित संस्कृति का जो जीवन में प्रवेश हो गया है वह परिभाषा कहां चली गई है पता नहीं । आज विदेशी हमारे भारतीय धर्म दर्शन परंपरा एवं संस्कृति को जानने व अपनाने के लिए उत्सुक है हमारे यहां आयोजित होने वाले कुंभ महापर्व एवं भारतीय धार्मिक स्थलों में सैलानियों के तौर पर उनकी आने वाले जनों के बीच उल्लास पूर्ण वातावरण से इसका साफ-साफ अंदाजा लगाया जा सकता है ।जहां एक और पश्चिम के लोग सनातनी संस्कृति को अपनाकर खुद को धन्य कर रहे हैं वही भारतीय अज्ञानता वश समाज का एक बड़ा हिस्सा वर्ग पश्चिम के प्रभाव में सामाजिक और नैतिक पतन की ओर अग्रसर है । यह हमारा दुर्भाग्य है कि हमने पहनावे की नकल कर ली पर अपनी अकल विकसित नहीं कर पाए फैशन के दुष्प्रभाव पुरुष व स्त्री पर दोनों में समान रूप से प्रस्फुटित होते दिखाई देते हैं । अक्सर लोगों की जुबान पर होता है कि स्त्रियां पश्चिम का अंधानुकरण कर रही है क्या पश्चिम का कोई भी दुष्प्रभाव पुरुषों पर नहीं पड़ा बात स्त्री और पुरुष को वर्गीकृत करने के लिए नहीं कही है । जो भी मर्यादा से बाहर जाएगा वह दोषी ही माना जाएगा।
हां ठीक है मैं कहती हूं लज्जा स्त्रियों का आभूषण है तो क्या पुरुष को निर्लज्ज हो जाना चाहिए जगह-जगह लोलुप दृष्टि वाले अमर्यादित पुरुष दिखाई दे जाएंगे जो बलात्कार छेड़खानी जैसी घटनाओं को अंजाम देते हैं। और यह भी क्या बात हुई भला पुरुष वर्ग यह भूल जाते हैं कि वह किसी सुविधा की दृष्टि से धोती छोड़कर फुल पैंट उन्होंने अपनाई थी पर महिला उन्हें हमेशा भारतीय परिधान में ही दिखनी चाहिए पुरुषों की यदि बात की जाए तो उनकी सोच है जिन कपड़ों में कोई भी दूसरी लड़की दीगर लगती है तो उनकी सोच कामुक हो जाती है । वहीं कामुकता घर पहुंचकर वही उनकी सोच बदल जाती है ,,अरे तब वह कहते है भोलापन बचपन छलक रहा है जब वह पहन लेती उनकी 16 बरस की बच्ची ।
आज भी साड़ी जैसे परिधान को गरिमा में माना जाता है तो वहीं पर कुछ लोगों का कहना है कि पेट आधा खुला है ,, क्या आधुनिक ब्लाउज है,,, आदि-आदि । मैं कहती हूं कि गंदगी लोगों के दिमाग में होती है जिसके पास संस्कार होते हैं उसे वह शोभनीय और अशोभनीय का ख्याल रहता है और जिनके पास में संस्कार है ही नहीं तो उससे क्या उम्मीद रखना वह गंदे लोग अच्छी बातों को भी गंदगी की तरफ ले जाएंगे । यदि अपने अस्तित्व को बनाए रखना है तो इस छद्म आधुनिकता और वास्तविकता आधुनिकता के बीच का अंतर समझना होगा आधुनिकता के नाम पर जो हमारी संस्कृति को नष्ट करने का प्रयास किया जा रहा है । वर्तमान समय में फैशन का दुष्प्रभाव पुरुष व स्त्री दोनों में समान रूप से दिखाई देता है मैं कहती हूं पहनावे में स्वतंत्रता जरूरी है पर फूहड़पन नहीं इसलिए यही कहना चाहूंगी कि भारतीय संस्कृति के दुशासन मत बनिए सभ्य कपड़े पहनिए वरना आने वाले समय में बेटी को पालना मुश्किल हो जाएगा । संस्कार की जरूरत स्त्री व पुरुष दोनों को ही है जैसे गाड़ी के दोनों पहिए में संस्कार की हवा चाहिए एक ही पंचर हुआ तो जीवन डिस्टर्ब हो जाएगा। नग्नता यदि मॉडर्न होने की निशानी है तो सबसे मॉडर्न जानवर है ।
डॉ. नीतू शर्मा अजमेर,राजस्थान
मीडिया हाउस न्यूज ऐजेन्सी 30ता.राजस्थान- सामाजिक क्षेत्र में जितनी भी समस्याएं जन्म लेती है.? उनका संबंध अधिकतर स्त्री जाति से ही होता है । इन विविध समस्याओं और कुप्रथा ने नारी जाति को बड़ी हीनवस्था में पहुंचा दिया है । पर्दा प्रथा के कारण नारी जाति घर में बंदिनी बना दी गई है । दहेज की समस्या ने पुत्री के जन्म को भी अप्रिय बना दिया है । बाल विवाह से.? विधवा समस्या और वेश्या समस्याओं का जन्म हुआ । पुरुष की स्थिति पर इन समस्याओं का उतना भीषण प्रभाव कभी नहीं पड़ा जितना स्त्री पर पड़ा । स्त्री की समाज में दयनीय स्थिति का कारण जहां उसका स्त्री होना है वहां इन समस्याओं के अभिशापो का उस पर लाद देना भी है ।
मेरा उद्देश्य समाज की मान्यताओं को यह खोखले पन को छोड़कर सामने रखना रहा है मैं अपने इस शैली के माध्यम से सामाजिक जीवन के जिन शब्दों को रेखांकित करना चाहती हूं उस पर बहुत से आलोचकों को भ्रम उत्पन्न हो जाता है ।आज की स्त्री के समक्ष पतिवत की समस्या के साथ-साथ व्यक्तिगत स्वाधीनता का प्रश्न भी खड़ा है ।
वर्तमान समय में स्त्री स्वयं के परिश्रम प्रतिभा व्यवहार कुशलता सहिष्णुता साहस और दृढ़ता आदि के गुणों के सहारे ना केवल सफलता प्राप्त कर रही है बल्कि पूज्य अभी बन रही है । वे परंपरागत मानसिक बंधनों को तोड़ कर अपने जीवन को आर्थिक और सांस्कृतिक दृष्टि से सुखमय बना रही है । आज की स्त्री जीवन के बहुरंगी तानों बानो के मध्य कुशल तूलिका के द्वारा उनमें भरे गए हल्के गहरे रंगों को चिटकाती हुई अपने अपने अलग अंदाज में तथा विविधता वह समाज का प्रतिनिधित्व कर रही है । सहज रूप से प्रस्फुटित करते हुए स्वयं एक नवीन उभरती हुई चेतना के प्राणों को स्पंदन भी कर रही है ।
इस संबंध में यशपाल की पुरुष मानसिकता झलकती है.? सभी औरतें हैं किसी ना किसी की बहन बेटी या स्त्री होती है । बहन को भी तुम्हारी तफरीह पर एतराज हो सकता है । मर्द होने का मतलब बेशर्मी का अधिकार नहीं है.?
स्त्री मात्र के प्रति भोग की इच्छा से ग्रस्त युवक के सामने जब भोग्या होने की शर्त पर उसकी अपनी बहन आ जाए तो उसकी कुल मुखरता भी पथरा जाती है । समाज और देश के प्रति कर्तव्य भावना के अनुरूप बात प्रेम भावना और प्रेम की दैहिक भौतिक यात्रा की प्रति मुक्त सामाजिक जीवन में स्त्री पुरुषों के बदलते हुए रिश्ते आदि कुछ ऐसे विषय हैं जो आत्म पीड़ा से सामना कर रहे हैं । धार्मिक विश्वासों पर आधारित सामाजिक चेतना रूढ़िवादी एवं परिवर्तन विरोधी हो जाती है वह धर्म को शोषण का अस्त्र मानते हैं क्योंकि इससे क्रांति का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है और यही कारण है कि कार्ल मार्क्स ने भी धर्म को जनता के लिए अफीम की संज्ञा दी थी । पुराने जमाने से लेकर आज तक इस आधुनिक समाज को यदि देखा जाए तो काफी बदलाव आ गया है क्योंकि स्त्री जाति को केंद्र सरकार तथा राज्य सरकारों द्वारा अलग-अलग तरह से शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करने हेतु नई नई योजनाएं लागू की जा रही है जिससे ज्यादा से ज्यादा लड़कियां शिक्षित हो सके ।
जिस प्रकार तेल के बिना दीप का कोई अस्तित्व नहीं है । ठीक उसी प्रकार स्त्री के बिना पुरुष का कोई अस्तित्व नहीं है स्त्री के बिना पुरुष की कल्पना नहीं की जा सकती है क्योंकि पुरुष जाति की सृजनकर्ता ही स्त्री है लेकिन फिर भी स्त्री को जीवन के हर मोड़ पर बदसलूकी का शिकार होना पड़ता है ।
स्त्री हमेशा ही झुके हुए पलडे में बैठी रहती है क्यों कि चाहे वह कितनी ही पढ़ी लिखी सभ्य तथा सहनशील ही क्यों न हो लेकिन यदि स्त्री की इस अपार शक्ति को पुरुष अनुभव नहीं कर सकता है जितनी शक्ति स्त्री को भगवान ने दी है अगर उसको सही तरीके से प्रयोग किया जाए तो स्त्री इस समाज की बहुत बड़ी शक्ति के रूप में देखे जा सकती है ।
हमारे समाज में स्त्रियों को हमेशा से ही धिक्करारा गया है चाहे उसकी गलती हो या ना हो अपराध पहले भी होते थे मगर पर्दे के पीछे लेकिन वर्तमान समय में मीडिया सजग हो जाने से अपराधों की जानकारी सभी को मिल रही है और स्त्रियों के प्रति जो अपराध हो रहे हैं समाज के व्यक्तियों को यह बताने में सफल हो रहे हैं कि स्त्रियों के प्रति भेदभाव स्त्रियों की आज के इस बदलते समाज में स्थिति कैसी होती जा रही है । जो महिलाओं के लिए तो मुश्किल है ही साथ ही समाज के उन व्यक्तियों के लिए भी एक चुनौती भरा कार्य साबित हो रहा है अगर हम आज की स्त्रियों को ज्यादा से ज्यादा ज्ञान प्रदान करेंगे तो शायद अनभिज्ञ स्त्रियों की ज्ञान के बारे में जानकारी बढ़ेगी और महिला भी स्त्री भी कानून की जानकारी रखते हुए चतुर चालाक व्यक्तियों की गंदी चाल से पहले ही भापने में सफल हो जाएगी जिससे अपराध को टाला जा सकता है । एक शिक्षित महिला दो-दो घरों को तो शिक्षित बनाती ही है साथ ही गली मोहल्ले व अन्य घरों को भी शिक्षित बनाने में अपना योगदान देती है लेकिन वर्तमान समय के आंकड़े इतने संतुष्ट नहीं है जितने होने चाहिए । स्त्रियों के प्रति होने वाले अपराधों की संख्या निरंतर बढ़ती ही जा रही है लेकिन स्त्रियों को शिक्षित बनाने वाले आंकड़ों में उस गति से वृद्धि नहीं हो रही जितनी होनी चाहिए घर में रहकर शिक्षा प्राप्त नहीं की जा सकती लेकिन घर में बैठकर अपराधों को भी रोका नहीं जा सकता । जब से भारत आजाद हुआ है अपराध भी हो रहे हैं और स्त्रियां भी शिक्षा के क्षेत्र में अपनी बढ़ोतरी कर रही है अपराधी हर जगह है घर में भी अपराधी उपलब्ध होते हैं तो क्या लड़कियों को इस दुनिया में लाया ही न जाए तो फिर समाज की उन्नति और देश का विकास कैसे संभव होगा । समाज एक समुद्र की तरह है यदि स्त्री को इस में रहना है तो स्त्री को इसका सामना अवश्य करना होगा लहरों के थपेड़ों से ही स्त्री को अपनी स्थिति में निखार आएगा पुरुष अपराध करता रहेगा लेकिन लहरों को भी तेज हवाएं तहस-नहस कर देती है । स्त्री तो अपार शक्तियों का मिश्रण है उसे अपने आप में इतना विश्वास पैदा करना है कि इन अपराधो की लहरों को तहस-नहस कर दे ।
दुनिया का सबसे बड़ा सच है कि आपकी जिंदगी की बागडोर आपके पति के हाथ में है लेकिन जब पति भी यदि आपका साथ ना दे या परेशान करे तो हिम्मत नहीं हारना चाहिए क्योंकि विजेता वह नहीं होता जो जीता है बल्कि विजेता वह होता है जो प्रत्येक समस्या का साहस के साथ डटकर सामना करता है ।
लेखक- डॉ.नीतू शर्मा अजमेर,राजस्थान
मीडिया हाउस न्यूज ऐजेन्सी 12ता.नई दिल्ली-राष्ट्र सृजन अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ पी के सिन्हा ने आज भगवान श्री कृष्ण जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर कहा कि भारत, भारतीय संस्कृति ,भारतीय कलाओं से भगवान श्री कृष्ण का बहुत गहरा संबंध है । यह पवित्र, सांस्कृतिक,, कलात्मक सरोकार या संबंध आध्यात्मिक और व्यवहारिक भी है। अगर हम वाद्य यंत्रों की बात करें तो भगवान श्री कृष्ण ही आधार हैं, जो वंशी वाले के बांसुरी की एक वाद्य यंत्र के रूप में शुरुआत हुआ। 64 कलाओं से निपुण देवता कहलाने वाले भगवान श्री कृष्ण की बांसुरी से संगीत प्रभावित एवं प्रसारित हुई है। संगीत के साथ नृत्य से भी इनके गहरे संबंध रहे जो सर्वविदित है । उनके प्यार ,स्नेह भक्ति पूर्ण महारास में संगीत और नृत्य दोनों की प्रमुखता है। हमारे शास्त्र बताते हैं कि श्री कृष्ण के सौजन्य से ही पूरे ब्रज में संगीत-नृत्य की गूंज उठती थी और आज भी उठती है। ब्रज के कन्हैया का संबंध भारतीय कलाओं से लंबे समय से चला आ रहा है। इसे हमारे ऋषि-मुनियों ने पूरे भक्ति भाव से अपनाया है। ऋषि-मुनि जब श्रीकृष्ण को ध्यान करते थे तब गीत-संगीत, नृत्य को स्वतः प्रेरित हो जाते थे । श्री कृष्ण की प्रेम की छाया में संगीत नृत्य की अनेक पद ग्रंथ रचे गए सूरदास जैसे महाकवि जिन्होंने श्री कृष्ण की महिमा में अनेक पद की रचना में कृष्ण के मनमोहक बाल लीला और वृंदावन की कुंज गलियां की चर्चा खूबसूरती से होती है । सर्वज्ञात है कि हमारी परंपरा में श्री कृष्ण ने नृत्य किया या फिर महाधिपति महादेव भगवान शिव को पुराणों के समय में इन दोनों देवताओं को नर्तक नाम से भी पुकारा जाता था। यह बहुत ही संभव है कि भगवान श्रीकृष्ण को शिवजी से ही संगीत नृत्य का ज्ञान मिला होगा। भगवान श्री कृष्ण ने आम जनमानस को लुभाने के लिए बहुत सहजता से अपने कला एवं ज्ञान का प्रयोग किया ।
डॉ पीके सिंहा ने कहा आज के कोरोना महामारी के समय में श्रीकृष्ण को निहारते, उनसे सीखते, उनको अपने अभिनय नृत्य में उतारने की कोशिश करने की जरूरत है। सिन्हा ने कहा विशेष रूप से युवाओं के लिए यही संदेश है कि भगवान कृष्ण के जीवन से, उनके आदर्श का अवश्य पालन एवं ध्यान कर अपने आचरण में उतारें । भगवान श्रीकृष्ण ने अपने जीवन के छोटी उम्र में बहुत बड़े-बड़े कार्य किये, जीवन में हमेशा संघर्ष करते रहे। जो जीवन की कठिनाइयों में भी हमेशा मुस्कुराते रहे । अपने माता-पिता को कैद से सुरक्षित छुड़ा लिए, संपूर्ण जगत को सुखमय बनाकर , दुख को समाप्त कर सबका जीवन भी सफल बनाएं । पुतना हो या कालिया नाग सहित जाने-माने कितने असुरों को मार्ग से हटाया एवं ब्रज के लोगों को सुरक्षित किया । आज जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर श्री कृष्ण को अपने ध्यान में जरूर लाना चाहिए, हमसबके दिलोदिमाग में मुरलीधर की ऐसी मनमोहक मूर्ति हो जिनके दर्शन मात्र से ही सबको आनंद एवं सुख की प्राप्ति होगी। भगवान श्री कृष्ण का आनंद लेना हो तो शांत चित्त भाव से आज के दिन उनके सामने बैठ जाएं और उनकी महिमा को एवं उनके चरित्र को याद करें। श्री कृष्ण के जीवन को पढ़ लिए तो शक्ति भी मिलेगी और आनंद भी मिलेगा।