राष्ट्रीय खनिज नीति, 2019-पर्यावरणीय रोकथाम, टिकाऊ खनन को सुनिश्चित करने के लिए प्रयास,

AKGupta.मीडिया हाउस न्यूज एजेन्सी नई दिल्ली-राष्ट्रीय खनिज नीति, 2019 हर मामले में खान विकास रणनीति को अभिन्न हिस्सा बनाते हुए नवीनतम वैज्ञानिक मानदंडों और आधुनिक वनीकरण कार्यप्रणालियों के अनुसार खनन के कारण प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभावों की रोकथाम और उसे न्यूनतम करने पर जोर देती है। सभी खनन कार्यों को एक व्यापक सतत विकास ढांचे के मापदंडों के भीतर किया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि खानों और खनिजों के मुद्दों पर सभी निर्णयों में पर्यावरणीय, आर्थिक और सामाजिक विचारों को प्रभावी ढंग से एकीकृत किया गया है। इस नीति का उद्देश्य खनन कार्यों में शामिल सभी श्रमिकों को पर्यावरणीय मुद्दों के बारे में संवेदीकरण प्रशिक्षण, कार्यशालाओं सहित उचित प्रोत्साहन के माध्यम से प्रदूषण, कार्बन उत्सर्जन और परिचालन लागत को कम करने की दृष्टि से खनन स्थलों पर ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों के उपयोग को बढ़ावा देना है।

खान और खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957 की धारा 18 केंद्र सरकार को खनिज संरक्षण, खनिजों के व्यवस्थित विकास, पूर्वेक्षण या खनन कार्यों के कारण होने वाले किसी भी प्रदूषण को रोकने या नियंत्रित करके पर्यावरण की सुरक्षा के लिए नियम बनाने का अधिकार देती है। तदनुसार, खनिज संरक्षण और विकास नियम (एमसीडीआर), 2017 तैयार किए गए, जिसमें नियम 40 और नियम 43 में प्रावधान है:

(i) नियम 40 – वायु प्रदूषण को लेकर सावधानी– पूर्वेक्षण लाइसेंस या खनन पट्टे के प्रत्येक धारक को पूर्वेक्षण, खनन, लाभकारी या धातुकर्म कार्यों और संबंधित गतिविधियां के दौरान जुर्माने के माध्यम से एवं धूल, धुआं या गैसीय उत्सर्जन के कारण वायु प्रदूषण को अनुमेय सीमा के भीतर रखने के लिए हर संभव उपाय करने होंगे।

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(ii) नियम 43 – अनुमेय सीमाएं और मानक– सभी प्रदूषकों, विषाक्त पदार्थों और शोर की मानक एवं अनुमेय सीमाएं ऐसी होंगी जो संबंधित अधिकारियों द्वारा उस समय लागू प्रासंगिक कानूनों के प्रावधानों के तहत अधिसूचित की जा सकती हैं।

इसके अलावा, खनन कार्य शुरू करने से पहले, पट्टा धारक को पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से पर्यावरणीय मंजूरी सहित कुछ वैधानिक मंजूरी, लाइसेंस और अनुमोदन प्राप्त करने होंगे। पर्यावरणीय मंजूरी की शर्तों के अनुसार, परियोजना प्रस्तावक को पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं के माध्यम से हर तिमाही में कम से कम एक बार संयंत्र परिसर में फैले उत्सर्जन की निगरानी करनी होगी और समुचित वायु प्रदूषण नियंत्रण (एपीसी) प्रणाली प्रदान की जाएगी। सभी संवेदनशील स्रोतों से उड़ने वाली धूल सहित सभी धूल पैदा करने वाले स्थान, ताकि निर्धारित स्टैक उत्सर्जन और फ्यूजटिव उत्सर्जन मानकों का अनुपालन किया जा सके।

(सी) और (डी): राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एसपीसीबी) और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुसार खदानों में प्रदूषण स्तर की निगरानी की जाती है। पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा मान्यता प्राप्त प्रयोगशाला के माध्यम से केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड दिशानिर्देशों के अनुसार कोर ज़ोन के साथ-साथ बफर ज़ोन में परिवेशी वायु की निगरानी की जाती है। कोर और बफर ज़ोन के लिए, क्षणिक धूल उत्सर्जन की निगरानी के लिए, राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक, 2009 का पालन किया जाता है। फैले धूल उत्सर्जन को कम करने के लिए मशीनीकृत खदानों में आमतौर पर निम्नलिखित कार्यप्रणालियां अपनाई जाती हैं:

  1. आधुनिक ईंधन-कुशल मशीनें लगाना।
  2. मोटर ग्रेडर लगाकर और पानी का छिड़काव करके सड़कों को अच्छी स्थिति में बनाए रखकर धूल पैदा करने वाले स्थान पर ही धूल को खत्म करना।
  3. परिवहन सड़कों के किनारे हरित क्षेत्र का विकास।
  4. विनिर्माताओं की सिफारिशों के अनुसार समय पर रख-रखाव करके खनन मशीनरी के उत्सर्जन स्तर को नियंत्रण में रखा जाता है।
  5. खदान से ट्रकों/डम्परों के निकलने के दौरान व्हील वॉश की व्यवस्था।
  6. ट्रकों में ओवरलोडिंग को रोकना और खदान से ट्रक निकलने से पहले माल को तिरपाल से ठीक से ढकना।
  7. सार्वजनिक सड़क पर बिखरे हुए अयस्क को हाथ से साफ करने और धोने के लिए समर्पित जनशक्ति।
  8. पानी के छिड़काव के माध्यम से खदानों पर धूल को खत्म करना।
  9. सार्वजनिक सड़क/माइन हॉल रोड की सफाई के लिए रोड स्वीपिंग मशीन का उपयोग।
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यह जानकारी केंद्रीय कोयला, खान और संसदीय कार्य मंत्री प्रल्हाद जोशी ने आज राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में दी।

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