भारत में स्वास्थ्य पर सार्वजनिक व्यय जेब से होने वाले खर्च से अधिक : रिपोर्ट

नई दिल्ली, 1 अक्टूबर (आईएएनएस)। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की मानें तो भारत में 2020-21 और 2021-22 के बीच नेशनल हेल्थ अकाउंट (एनएचए) के आंकड़ों के अनुसार पहली बार स्वास्थ्य पर सार्वजनिक खर्च ने अपनी जेब से होने वाले खर्च को पीछे छोड़ दिया है।

हाल ही में नीति आयोग द्वारा जारी रिपोर्ट से पता चला है कि कुल स्वास्थ्य व्यय में जेब से खर्च का हिस्सा 2021-22 में घटकर 39.4 प्रतिशत हो गया। जबकि, यह 2013-14 में 64.2 फीसदी था।

साथ ही, देश की कुल जीडीपी में सरकारी स्वास्थ्य व्यय (जीएचई) की हिस्सेदारी 2020-21 में 28.6 प्रतिशत से बढ़कर 2021-22 में 48 प्रतिशत हो गई।

स्वास्थ्य नीति में ऐतिहासिक बदलाव सार्वजनिक व्यय में वृद्धि से प्रेरित है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे परिवारों पर वित्तीय बोझ कम होगा।

इसमें कहा गया है कि इससे “वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित होगी और नागरिकों के लिए बेहतर स्वास्थ्य कवरेज को बढ़ावा मिलेगा।”

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की सदस्य प्रोफेसर शमिका रवि ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, “भारतीय इतिहास में पहली बार स्वास्थ्य पर सार्वजनिक खर्च अपनी जेब से होने वाले खर्च से अधिक हो गया है, जिससे यह साबित होता है कि हर व्यक्ति के स्वास्थ्य के प्रति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार प्रतिबद्ध है, इसके साथ ही स्वास्थ्य देखभाल पर सरकारी व्यय 2013-14 से 2021-22 तक तीन गुना हो गया है।”

उन्होंने आगे लिखा, “पहली बार, भारत में स्वास्थ्य के लिए जेब से होने वाला व्यय 40 प्रतिशत से नीचे आ गया है और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इसको लेकर सरकारी स्वास्थ्य व्यय अधिक हो गया है। जो इस क्षेत्र के लिए एक मील का पत्थर है।”

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इसके अलावा, प्रति व्यक्ति सरकारी स्वास्थ्य व्यय (जीएचई) जो 2014-15 में 1,108 रुपए था, वह तीन गुना बढ़कर 2021-22 के बीच 3,169 रुपये हो गया है।

अनुमान से पता चलता है कि, “2019-20 और 2020-21 के बीच स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च में 16.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि 2020-21 और 2021-22 के बीच इसमें 37 प्रतिशत की अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज की गई है।”

अनुमान के अनुसार, कुल स्वास्थ्य व्यय 2014-15 के 5.7 प्रतिशत से बढ़कर 2021-22 में 8.7 प्रतिशत हो गया।

रिपोर्ट में स्वास्थ्य देखभाल पर सामाजिक सुरक्षा व्यय (एसएसई) में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई, यह सरकार द्वारा वित्त पोषित स्वास्थ्य बीमा, सरकारी कर्मचारियों को चिकित्सा रिम्बर्समेंट और सामाजिक स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम शामिल होने की वजह से है।

–आईएएनएस

जीकेटी/

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