पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने “मरुस्थलीकरण और सूखे से निपटने की रणनीति” विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया

मीडिया हाउस न्यूज एजेंसी नई दिल्ली-भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने विश्व मरुस्थलीकरण एवं सूखा रोकथाम दिवस 2025 के अवसर पर भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद – शुष्क वन अनुसंधान संस्थान (आईसीएफआरई-एएफआरआई), जोधपुर में एक दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया। इस कार्यक्रम का विषय था “मरुस्थलीकरण एवं सूखा रोकथाम की रणनीतियां”, जिसमें शुष्क एवं अर्ध-शुष्क पारिस्थितिकी तंत्रों में सतत भूमि प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित किया गया। केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि थे, जबकि केंद्रीय पर्यटन और संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और सांसद (राज्यसभा) राजेंद्र गहलोत भी उपस्थित थे।
उद्घाटन सत्र में केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने मरुस्थलीकरण से निपटने और पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने के लिए भारत द्वारा किए जा रहे सकारात्मक उपायों पर प्रकाश डाला। उन्होंने टिकाऊ कृषि पद्धतियों, समुदाय-संचालित पहलों और प्राकृतिक पारिस्थितिकी प्रणालियों के संरक्षण के महत्व पर जोर दिया।
केंद्रीय मंत्री श्री यादव ने बताया कि भारत की भूमि का एक बड़ा हिस्सा मरूस्थलीकरण के कारण चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिसका मुख्य कारण असंवहनीय कृषि पद्धतियां, यूरिया जैसे उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग और अंधाधुंध कीटनाशकों का प्रयोग है। उन्होंने जोर देकर कहा कि ऐसी प्रणालियां न केवल भूमि को नुकसान पहुंचाती हैं, बल्कि खाद्य सुरक्षा और जैव विविधता के लिए भी खतरा पैदा करती हैं।
संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम सम्मेलन के प्रति भारत की प्रतिबद्धता के अनुरूप, सरकार ने पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने, सूखे से निपटने और जैव विविधता के विस्तार पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाया है। श्री यादव ने इस बात पर जोर दिया कि स्वस्थ भूमि क्षेत्रीय स्थिरता और आर्थिक समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है, उन्होंने सभी देशों से भूमि क्षरण से निपटने के प्रयासों में शामिल होने का आग्रह किया।
इन चुनौतियों से निपटने के लिए निम्नलिखित कदम पारिस्थितिक संतुलन को बढावा देने में मदद कर सकते हैं:
- अमृत सरोवर: इसका उद्देश्य मरुस्थलीकरण की रोकथाम और जैव विविधता को बढ़ावा देने के लिए जलाशयों को पुनर्जीवित करना है।
- मातृ वन: समुदायों को, विशेष रूप से अरावली क्षेत्र में, अपनी माताओं के नाम पर पेड़ लगाने के लिए प्रोत्साहित करना, जिससे प्रकृति के साथ गहरा संबंध विकसित हो।
- एक पेड़ मां के नाम: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा शुरू किया गया एक राष्ट्रव्यापी अभियान, जिसमें नागरिक अपनी माताओं के सम्मान में पेड़ लगाते हैं, जो ‘धरती माता’ के प्रति सम्मान का प्रतीक है।
श्री यादव ने इस बात पर प्रकाश डाला कि ये पहल केवल पेड़ लगाने के बारे में नहीं हैं, बल्कि पारिस्थितिक संतुलन को बढावा देने और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्थायी भविष्य सुनिश्चित करने के बारे में हैं। उन्होंने यह भी कहा कि 29 जिलों में 700 किलोमीटर तक फैली अरावली पर्वत श्रृंखला का पारिस्थितिक और सांस्कृतिक महत्व बहुत अधिक है। श्री यादव ने इस बात पर जोर दिया कि अरावली न केवल मरूस्थलीकरण को रोकने वाला एक प्राकृतिक माध्यम है, बल्कि भारत की सभ्यता और विरासत का उद्गम स्थल भी है। उन्होंने स्थानीय समुदायों से संरक्षण के प्रयासों में सक्रिय रूप से भाग लेने और सहयोगात्मक कार्यों के माध्यम से क्षरित क्षेत्रों को बढावा देने का आग्रह किया।
श्री यादव ने 2047 के लक्ष्यों की ओर संकेत देते हुए विश्वास व्यक्त किया कि भारत आर्थिक विकास के साथ पारिस्थितिक स्थिरता को एकीकृत करके अपने हरित अर्थव्यवस्था स्थापित करेगा। उन्होंने दोहराया कि राष्ट्र के विकास की दिशा पारिस्थितिक संरक्षण के साथ तालमेल बिठाना होगा, जिससे विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच सामंजस्यपूर्ण संतुलन सुनिश्चित होगा।
इस अवसर पर अपने संबोधन में केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने मरुस्थलीकरण की रोकथाम और पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने में अरावली पर्वत श्रृंखला की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया।
केंद्रीय मंत्री श्री शेखावत ने इस बात पर प्रकाश डाला कि जहां वैश्विक वन क्षेत्र में गिरावट आ रही है, वहीं भारत ने अपने वन क्षेत्र को बढ़ाने में महत्वपूर्ण प्रगति की है। उन्होंने कहा, “अरावली पर्वत श्रृंखला जल संरक्षण, भूजल पुनर्भरण और जैव विविधता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह थार रेगिस्तान के क्षेत्र में वृद्धि को रोकने वाला एक प्राकृतिक अवरोधक है, जो पूर्वी राजस्थान, हरियाणा और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र जैसे क्षेत्रों की रक्षा करती है।
श्री शेखावत ने यह भी कहा, “हमारी जिम्मेदारी बहुत बड़ी है। अरावली ने हजारों सालों से हमारी सभ्यता को बनाए रखा है, और यह हमारा कर्तव्य है कि हम इस विरासत को आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखें।” श्री शेखावत ने पर्यावरण की सुरक्षा में स्थानीय समुदायों के योगदान को भी स्वीकार किया। उन्होंने कहा, “कई व्यक्तियों ने पर्यावरण संरक्षण के लिए अपना जीवन समर्पित किया है, जो सतर्क पर्यावरण संरक्षण की भावना को दर्शाता है।”
इस अवसर पर निम्नलिखित महत्वपूर्ण प्रकाशनों का विमोचन करने के साथ ही इन पहलों की शुरूआत भी की गईं:
- अरावली श्रृंखला के आस-पास के जिलों पर सूचना पुस्तिका
- हरित भारत मिशन का संशोधित मिशन दस्तावेज
- टिकाऊ भूमि प्रबंधन (एसएलएम) पर पुस्तक
- राष्ट्रीय वनरोपण निगरानी प्रणाली (एनएएमएस) का शुभारंभ
- माननीय पर्यावरण मंत्री द्वारा दस किसानों को एएफआरआई शीशम क्लोन के वितरण से संबंधित दस्तावेजों की सॉफ्ट कॉपी https://moef.gov.in/guidelinesdocuments पर देखी जा सकती है।
कार्यशाला में भूमि उर्बरा को बढ़ावा देने और मरुस्थलीकरण की रोकथाम में प्रमुख विषयों को कवर करने वाले तकनीकी सत्रों की एक श्रृंखला शामिल थी। सतत भूमि प्रबंधन (एसएलएम) पर चर्चाओं में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और आईसीएफआरई संस्थानों द्वारा एकीकृत, समुदाय-नेतृत्व वाले बहाली प्रयासों पर प्रकाश डाला गया। इसके बाद यूएनडीपी, एडीबी, जीआईजेड, केएफडब्ल्यू, एएफडी और विश्व बैंक जैसे विकास भागीदारों द्वारा वैश्विक और राष्ट्रीय केस स्टडीज पर प्रस्तुतियां दी गईं। अरावली ग्रीन वॉल परियोजना पर एक समर्पित सत्र अरावली क्षेत्र में पारिस्थितिक संतुलन को कायम करने के लिए अंतर-राज्यीय सहयोग पर केंद्रित था। अंतिम सत्र में राज्य सरकारों, एसएसी, सीएजेडआरआई, गैर सरकारी संगठनों और अन्य को शामिल करते हुए बहु-हितधारक कार्यों के माध्यम से भूमि क्षरण तटस्थता (एलडीएन) का समाधान किया गया। कार्यक्रम का समापन विज्ञान आधारित, भागीदारी और नीति-संचालित मरुस्थलीकरण शमन के लिए भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि करने वाले एक समापन सत्र के साथ हुआ।
इस कार्यक्रम ने संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम सम्मेलन (यूएनसीसीडी) के तहत भारत की नेतृत्वकारी भूमिका की पुष्टि की और 2030 तक भूमि क्षरण तटस्थता प्राप्त करने की दिशा में इसकी प्रगति को प्रदर्शित किया, जिसमें ज्ञान के आदान-प्रदान, सहयोग और क्षेत्र-स्तरीय प्रभाव पर विशेष ध्यान दिया गया। यह कार्यशाला खासकर अरावली और थार रेगिस्तान जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में मरुस्थलीकरण की पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने के लिए भारत के व्यापक प्रयासों का भी हिस्सा है।
इस कार्यक्रम में वन महानिदेशक सुशील कुमार अवस्थी, अपर महानिदेशक (वन) ए.के.मोहंती, आईसीएफआरई महानिदेशक श्रीमती कंचन देवी, एएफआरआई निदेशक डॉ. तरुण कांत तथा अन्य गणमान्य व्यक्ति और केंद्र तथा राज्य सरकार के अधिकारी उपस्थित थे।