वैश्विक आर्थिक उथल-पुथल के बीच आरबीआई एमपीसी के फैसले घरेलू विकास के लिए सहायक : सीआईआई

नई दिल्ली, 9 अप्रैल (आईएएनएस)। कॉन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (सीआईआई) ने बुधवार को कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की उदार मौद्रिक नीति और सरकार की विकास-केंद्रित राजकोषीय नीति वैश्विक आर्थिक उथल-पुथल के बीच घरेलू विकास को बढ़ावा देने में मददगार होगी।

रेपो दर को 25 आधार अंकों से घटाकर 6.0 प्रतिशत करने के केंद्रीय बैंक के फैसले को सीआईआई के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी ने समय पर लिया गया विवेकपूर्ण फैसला बताया है।

उन्होंने कहा कि दरों में कटौती के साथ-साथ मौद्रिक नीति के रुख को ‘न्यूट्रल’ से ‘अकोमोडेटिव’ में बदलना भी एक बड़ा सकारात्मक कदम है।

बनर्जी ने एक बयान में कहा, “यह बदलाव, जिसकी सीआईआई लंबे समय से वकालत कर रही है, मुद्रास्फीति के दृष्टिकोण के बारे में सतर्कता बनाए रखते हुए केंद्रीय बैंक के विकास-समर्थक दृष्टिकोण पर जोर देता है।”

आरबीआई की ब्याज दरों में कटौती और रुख में बदलाव, घरेलू आर्थिक विकास पर धीमी वैश्विक वृद्धि के प्रभाव और घरेलू मुद्रास्फीति के लिए अपेक्षाकृत सकारात्मक दृष्टिकोण के बारे में चिंताओं को दर्शाता है।

इसके अलावा, फरवरी में ब्याज दरों में कटौती के बाद वास्तविक ब्याज दरें अभी भी 2.6 प्रतिशत पर उच्च स्तर पर हैं।

शीर्ष उद्योग चैंबर के अनुसार, निवेश मांग को बढ़ावा देने के लिए दरों में और कमी करने की तत्काल आवश्यकता थी।

इस ब्याज दर में कटौती का लाभ उपभोक्ताओं को तत्काल आधार पर दिया जाना तय है, जो खपत को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण होगा। कम उधार लागत हाउसिंग अफोर्डिबिलिटी में भी मदद कर सकती है।

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आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ​​ने कहा कि रेपो दर में कटौती का निर्णय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) द्वारा व्यापक आर्थिक और वित्तीय स्थितियों और दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए सर्वसम्मति से लिया गया है।

आरबीआई गवर्नर ने आगे कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति में कमी आई है, लेकिन केंद्रीय बैंक अमेरिकी टैरिफ में बढ़ोतरी से उत्पन्न वैश्विक जोखिमों के कारण सतर्क रहेगा।

उन्होंने कहा कि आरबीआई बैंकिंग प्रणाली में पर्याप्त तरलता (लिक्विडिटी) सुनिश्चित करेगा।

मई 2020 के बाद पहली बार फरवरी में रेपो दर में कमी के बाद यह लगातार दूसरी बार 25 आधार अंकों की कटौती है।

कम नीतिगत दर से बैंक लोन पर ब्याज दर में कमी आती है, जिससे उपभोक्ताओं के साथ-साथ व्यवसायों के लिए भी उधार लेना आसान हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था में खपत और निवेश बढ़ता है, जिससे विकास दर में वृद्धि होती है।

–आईएएनएस

एसकेटी/एबीएम

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