“साइलेंट कन्वर्सेशन: फ्रॉम मार्जिन्स टू द सेंटर” विषयक तीन दिवसीय जनजातीय कला प्रदर्शनी का समापन

AKGupta. Media House नई दिल्ली-पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए), और सांकला फाउंडेशन ने नई दिल्ली में अपनी तरह की पहली कला प्रदर्शनी का आयोजन किया, जिसका विषय ‘साइलेंट कन्वर्सेशन: फ्रॉम मार्जिन्स टू द सेंटर’ था। यह कला प्रदर्शनी 3-5 नवंबर 2023 के बीच सफलतापूर्वक संपन्न हुई। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने इस प्रदर्शनी का उद्घाटन 3 नवंबर, 2023 को किया था। राष्ट्रपति ने जलवायु परिवर्तन के मुद्दे से निपटने के लिए एक समग्र और सामूहिक प्रयास की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि यह न केवल पर्यावरण की सुरक्षा के लिए बल्कि मानवता के अस्तित्व के लिए भी जरूरी है। राष्ट्रपति ने कहा कि जनजातीय और अन्य वनवासी समुदायों की पारंपरिक प्रथाओं को अपनाया जाना चाहिए, जिनमें प्रकृति के साथ सद्भाव से रहते हुए एक समृद्ध और संतुष्ट जीवन जीने के मूल्यवान सबक मिलते हैं।

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राष्ट्रपति को कान्हा टाइगर रिजर्व के आसपास रहने वाले महार समुदाय के कलाकार द्वारा बनाई गई एक पेन्टिंग स्मृति चिन्ह के तौर पर भेंट की गई। बिंदु शैली में बनी बाघदेव शीर्षक वाली इस पेंटिंग में दर्शाया गया है कि किस तरह महार समुदाय बाघ के शाश्वत संरक्षण के लिए रात के समय नीले आकाश के नीचे पूजा और अनुष्ठान करता है।

इस अवसर पर केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेन्द्र यादव, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की सचिव श्रीमती लीना नंदन, एनएचआरसी के महासचिव भरत लाल, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के विशेष सचिव और महानिदेशक (वन) सी.पी. गोयल, प्रोजेक्ट टाइगर के अतिरिक्त महानिदेशक और एनटीसीए के सदस्य सचिव एस.पी.यादव तथा सरकार के अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे। उद्घाटन समारोह में इनके अलावा, राजदूतों/उच्चायुक्तों/राजनयिकों और कला तथा वन्य जीवन के क्षेत्र की प्रतिष्ठित हस्तियों ने भाग लिया।

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प्रदर्शनी में देश के 12 अलग-अलग राज्यों के 43 कलाकारों की असाधारण प्रतिभा का प्रदर्शन किया गया, जिन्होंने गोंड, भील, पटचित्र, खोवर, सोहराई, वर्ली और कई अन्य कला शैलियों का प्रतिनिधित्व किया। प्रदर्शनी में भारत के बाघ अभयारण्यों के आसपास रहने वाले आदिवासी और अन्य वनवासी समुदायों और जंगल तथा वन्य जीवन के साथ उनके गहरे संबंध को दर्शाया गया। कलाकारों को राष्ट्रपति भवन आमंत्रित किया गया, जहां उन्हें राष्ट्रपति से मिलने का अवसर मिला।

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प्रदर्शनी ने आम जन को इन समुदायों की कला, संस्कृति और लोकाचार को गहराई से देखने और समझने का एक असाधारण मंच प्रदान किया। इस सप्ताहांत में दिल्ली एनसीआर में विभिन्न देशों के राजदूत और उच्चायुक्त भी आए और उन्होंने इस प्रदर्शनी में सपरिवार जाकर न सिर्फ कलाकारों के साथ बातचीत की, बल्कि उनके द्वारा बनाए गए अद्वितीय चित्रों और कलाकृतियों की खरीदारी की और जनजातीय कला तथा संस्कृति के प्रचार और संरक्षण में योगदान दिया।

प्रदर्शनी ने जनता को वन्यजीव संरक्षण के महत्व, बाघ अभयारण्यों के सामने आने वाली चुनौतियों और पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने में बाघों की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में शिक्षित करने के लिए एक मंच के रूप में कार्य किया। कलाकृतियों की बिक्री से कलाकार न सिर्फ आर्थिक रूप से सशक्त हुए, बल्कि उन्हें वैकल्पिक और टिकाऊ आजीविका भी मिली। एक उल्लेखनीय विशेषता यह है कि बिक्री से प्राप्त राशि एक क्यूआर कोड के माध्यम से सीधे इन  कलाकारों के बैंक खातों में भेजी गई।

कलाकारों ने इस मौके पर राजधानी के कुछ प्रमुख दर्शनीय स्थलों का भी दौरा किया और अपने अनुभव को समृद्ध किया। इस दौरान वे राष्ट्रीय गौरव और बलिदान के प्रतीक इंडिया गेट और कर्तव्य पथ को देखने गए, जो लोगों के मन में कर्तव्य और जिम्मेदारी की भावना को प्रेरित करते हैं। इस तरह ये कलाकार भारत की राजधानी के केंद्र में स्थित ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के इन स्थलों का महत्व समझ सके। इस प्रदर्शनी के बाद देश के अन्य प्रमुख शहरों में भी इसी तरह की प्रदर्शनियों की एक श्रृंखला आयोजित की जाएगी, जो कला, संस्कृति और बाघ संरक्षण के संदेश को जन-जन तक पहुंचाएगी।

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