बढ़ रहे प्रदूषण और होने वाले गंभीर बिमारीयो से अब बोकारो चास वासियों को मिल सकेगी निजात

बोकारो के चास में शव दाह गृह का हुआ निर्माण, जल्द होगी शुरूआत
2024 में 1905 शवों का किया गया है दाह संस्कार
साल भर में लगभग 6 लाख 51 हजार 510 किलोग्राम लकड़ी जलाने में हुई खपत
लकड़ी के धुएं से अस्थमा, फेफड़ों की बीमारी, कैंसर और क्रोनिक ब्रोंकाइटिस और कोविड जैसी हो सकती है गंभीर बिमारी
मीडिया हाउस न्युज एजेंसी बोकारो : बोकारो में 25 साल के लंबे अरसे के बाद बोकारो चास वासियों को प्रदूषण से कुछ हद तक अब राहत मिलने की उम्मीद नजर आने लगी है। जिसका कारण है चास नगर निगम के द्वारा शव दाह गृह का निर्माण कराना। बोकारो में बढ़ रहे प्रदूषण और लोगों की मांग को देखते हुए चास नगर निगम ने चास के शमशान घाट समीप शव दाह गृह का निर्माण कराया है जो अब गैस से शव का दाह संस्कार किया जाएगा। चास नगर निगम के सहायक नगर आयुक्त प्रियंका कुमारी ने कहा कि शवदाह गृह निर्माण की मांग लोग वर्षों से मांग करते आ रहे थे जो अब पूरा हो चुका है. शवदाह गृह को गैस और बिजली दोनों से चलाने की योजना है। श्मशान घाट में हजारों शवो का दाह संस्कार होता है. शवदाह गृह निर्माण होने से अब चास-बोकारो के लोगों को दाह संस्कार करने में सुविधा होगी वहीं प्रदूषण भी कम होगा. साथ ही शवदाह की प्रक्रिया,कम समय में पूरा भी हो जायेगा.बता दें कि झारखंड सरकार ओर जुडको रांची के माध्यम से बोकारो के चास गरगा नदी किनारे शवदाह गृह का निर्माण कराया गया है.शवदाह गृह निर्माण कार्य पूर्ण होने बाद एजेंसी ने चास नगर निगम को हस्तांतरित कर दिया है। देखा जाए तो 2024 के आंकड़े के अनुसार साल भर में श्मशान घाट में 1905 शव को जलाया गया है जो एक शव को जलाने में 7 मन या 9 मन लकड़ी की जरूरत पड़ती है। आधुनिक वज़न के हिसाब से एक मन में 40 सेर होते हैं, जो करीब 37.3 किलोग्राम के बराबर होता है। यानी कहा जाए तो साल भर में लगभग 6 लाख 51 हजार 510 किलोग्राम लकड़ी की खपत हुई है जिससे पर्यावरण का नुकसान हुआ वहीं वातावरण में प्रदूषण फैलने से गंभीर बिमारी होने की आशंका और डर के साये में जीने को लोग मजबूर रहे।बता दें कि लकड़ी जलाने से कई तरह के कण और गैसें निकलती हैं। सबसे ज़्यादा नियंत्रित कण 2.5 माइक्रोन या उससे छोटे होते हैं, जो फेफड़ों से होते हुए रक्तप्रवाह में प्रवेश करने और यहां तक कि मस्तिष्क में घुसने के लिए पर्याप्त छोटे होते हैं। लकड़ी के धुएं में कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन या PAH जैसे कार्सिनोजेनिक यौगिक और वाष्पशील कार्बनिक यौगिक या VOC भी होते हैं। उसके आधार पर लकड़ी से फायरप्लेस पारा और आर्सेनिक जैसी जहरीली धातुएं भी निकल सकते हैं। लकड़ी के धुएं से अस्थमा, फेफड़ों की बीमारी और क्रोनिक ब्रोंकाइटिस विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है , और पहले से ही इन बीमारियों से पीड़ित लोगों में ये स्थितियाँ और भी गंभीर हो सकती हैं। जलती हुई लकड़ी से निकलने वाले महीन कणों के संपर्क में आने से शरीर की श्वसन संबंधी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को भी नुकसान पहुँच सकता है , जिससे श्वसन संक्रमण का जोखिम बढ़ जाता है – जिसमें कोविड भी शामिल है जब कोई भी एकल कण प्रदूषण जिसे कोई व्यक्ति साँस के ज़रिए अंदर लेता है, वह शरीर के किसी भी अंग में पहुँच सकता है, तो आप समझ सकते हैं कि बीमारी की संभावना लगभग असीमित है। इससे अब बोकारो चास वासियों को अब राहत की उम्मीद नजर आने लगी है।