केन्द्रीय बजट में दलित शक्तिकरण कमजोर, लक्ष्य से कोसों दूर दिखाई देगा। दिनकर कपूर, प्रदेश महासचिव, 

मीडिया हाउस न्यूज एजेन्सी सोनभद्र-केन्द्रीय बजट 2025-26 को पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट के लक्ष्य में गरीब, युवा, किसान व महिलाओं पर फोकस किया। इस बात की घोषणा की कि उनका बजट देश में शून्य गरीबी, शत प्रतिशत अच्छी गुणवत्ता वाली स्कूली शिक्षा, गुणवत्तापूर्ण सस्ती व व्यापक स्वास्थ्य सेवा, शत प्रतिशत कुशल श्रमिकों के साथ सार्थक रोजगार, आर्थिक गतिविधियों में 70 फीसद महिलाओं की भागीदारी, समृद्ध किसान आदि को प्राप्त करने के लिए है। इस रोशनी में बजट के प्रारूप 10 ए में घोषित अनुसूचित जाति के कल्याण के लिए किए गए बजट आवंटन का अवलोकन करें तो यह घोषित लक्ष्य से कोसों दूर दिखाई देगा। देश की आबादी का 16.6 प्रतिशत अनुसूचित जाति का बहुतायत गरीब है। लंबे समय से एससी की आबादी के अनुरूप सबप्लान देने की मांग को अनदेखा कर महज 3.4 फीसदी बजट का आवंटन ही किया गया है।

अनुसूचित जाति के शिक्षा के लिए बजट में विशेष प्रावधान करने की बात पूना पैक्ट में ही सामने आई थी। डॉ भीमराव अंबेडकर ने ‘राज्य और अल्पसंख्यक’ पुस्तक में कहा है कि राज्य का यह दायित्व है कि वह सुविधा वंचित वर्गों को बेहतर अवसर सुलभ कराते हुए सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक विषमता को दूर करें। इसके अनुच्छेद दो में वह बजट में अनुसूचित जाति के लिए शेयर की बात करते हैं और उसी में वह भारत सरकार से संबंधित किसी भी प्रयोजन हेतु धन खर्च करने के लिए करने की बात करते हैं। वह हवाला देते हैं कि भारत सरकार अधिनियम 1935 की धारा 10 में इसका प्रावधान किया गया था। आजादी के बाद डाक्टर अंबेडकर का यह सपना पूरा नहीं हो सका। लेकिन 1974-75 में पांचवीं पंचवर्षीय योजना में अनुसूचित जाति सब प्लान को स्वीकार किया गया। 2017 में मोदी सरकार ने इसका नाम बदलकर अनुसूचित जाति कल्याण मद कर दिया। इस सब प्लान या कल्याण योजना में अनुसूचित जाति के सामाजिक शक्तिकरण, शैक्षिक विकास और आर्थिक सशक्तिकरण के लिए उनकी आय और रोजगार को बढ़ावा देना लक्ष्य घोषित किया गया।

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बजट 2025-26 को यदि हम देखें तो अनुसूचित जाति के लिए 168478.38 करोड़ का बजट आवंटित किया गया है। जो पिछले बार आवंटित 165500.05 करोड़ से कुछ ही ज्यादा है और यदि 5 फीसदी मुद्रा स्फीती को ध्यान में रखा जाए तो यह एक तरह से कम ही किया गया है। गौरतलब है कि बजट में आवंटित धन भी खर्च नहीं किया जाता है। मोदी सरकार नई-नई घोषणा करने में बहुत माहिर है। इस बजट से पूर्व प्रधानमंत्री खुद भारत को कुशल श्रमिकों की बड़ी मंडी बनाने और कुशल श्रमिकों को विदेश में सप्लाई करने की घोषणा कर रहे थे। लेकिन यदि हम देखें तो जो कौशल विकास के प्रमुख संस्थान है, उनके एससी के सब प्लान बजट का हाल बुरा है। आईआईटी जैसे विख्यात संस्थान के एससी बजट में पिछले वर्ष आवंटित धन 631.60 करोड़ में महज 50 करोड रुपए की वृद्धि की गई। जबकि आईआईटी हैदराबाद को दिए जाने वाला पैसे को इस बार शून्य कर दिया गया। इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट जैसे प्रमुख संस्थान, इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च, स्कीम फॉर प्रमोशन आफ एकेडमिक एंड रिसर्च कोलैबोरेशन, नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के बजट को घटाया गया है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के दौर में भी इसके आवंटन कम किया गया। स्किल इंडिया प्रोग्राम के बजट में 15 करोड रुपए की कटौती की गई है।

अनुसूचित जाति की शिक्षा के लिए पिछली बार आवंटित 18436.16 करोड़ के बजट में मामूली वृद्धि करते हुए इस बार 19653.99 करोड रुपए आवंटित किया गया है। जो वास्तव में उनकी आबादी के अनुपात में बेहद कम है। इसी तरह स्वास्थ्य के बजट में 10094.17 करोड रुपए आवंटित किया गया है जो पिछले वर्ष आवंटित 9158.5 करोड़ से कुछ ही ज्यादा है। यहां यह ध्यान रखना होगा कि पिछले वर्ष आवंटित धन में से सरकार 8927.18 करोड रुपए ही खर्च कर पाई है। हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए सरकार ने वित्तीय वर्ष 2023-24 में 1933.47 करोड़ रुपए खर्च किया था जबकि इस वर्ष महज 1521.88 करोड़ ही आवंटित किया गया है। सरकार ने बजट में देश का पहला ग्रोथ इंजन कृषि को माना है। अनुसूचित जाति के लिए कृषि में खर्च होने वाले प्रमुख मद प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में करीब 1000 करोड़ की भारी कटौती की गई है। कृषि उन्नति योजना में 300 करोड रुपए की कटौती हुई है, नेचुरल रिसोर्स मैनेजमेंट में दो करोड रुपए, कृषि विज्ञान केंद्र में चार करोड रुपए और यूरिया सब्सिडी में 40 करोड रुपए की कटौती की गई है। दूसरा ग्रोथ इंजन सरकार ने एमएसएमई सेक्टर को माना है। एससी के इसके बजट में 3838.51 करोड रुपए आवंटित किया गया है जो पिछली बार आवंटित बजट 3630.30 करोड़ से कुछ ज्यादा है और 2023-24 में वास्तविक खर्च 3737.95 करोड़ के लगभग है। एमएसएमई की काउंटर गारंटी के लिए आवंटित बजट में डेढ़ सौ करोड रुपए की कटौती की गई है। बड़े जोर शोर से चलाई गई पीएम विश्वकर्मा योजना में करीब 150 करोड़ की कटौती की गई है। रोजगार उपलब्ध कराने वाली प्रमुख योजना मनरेगा में 2023-24 में वास्तविक खर्च 12712.249 करोड़ के सापेक्ष इस बार 11976 करोड रुपए अनुसूचित जाति के लिए आवंटित किए गए हैं। पीएम आवास योजना जिसकी बड़ी बातें की जाती है उसके पिछले वर्ष आवंटित 12946.33 करोड रुपए में कटौती करके 11911 करोड रुपए ही आवंटित किए गए हैं। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के वाटरशेड प्रोग्राम में 50 करोड़ की कटौती की गई है।

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अनुसूचित जाति के सम्मानजनक जीवन के लिए बनी पेयजल और शौचालय निर्माण के बजट में 6600 करोड़ की कटौती की गई है। असंगठित मजदूरों को पेंशन देने वाली प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन योजना में 5 करोड़ की कटौती की गई है। आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना के बजट को तो इस बार शून्य कर दिया गया। नई रोजगार सृजित करने की योजना पर 3340 करोड रुपए आवंटित किया गया है, जो बेहद कम है। अनुसूचित जाति के लिए वृद्धा, विधवा व विकलांग पेंशन में कोई वृद्धि नहीं की गई है। मोदी सरकार की बहुचर्चित गरीबों को एलपीजी गैस कनेक्शन मुफ्त देने की उज्जवला योजना दम तोड़ गई और उसके लिए कोई धन नहीं दिया गया है।
वहीं दूसरी तरफ हम देखें तो तो कॉर्पोरेट घरानों के लिए कई ऐसे मद में सबप्लान का पैसा खर्च किया गया है, जिनका एससी समुदाय से कोई सम्बंध नहीं है। कारपोरेट के लिए नई और अक्षत ऊर्जा में 900 करोड रुपए की वृद्धि की गई है, ऊर्जा के क्षेत्र में 1500 करोड़ की वृद्धि की गई है, पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना में 730 करोड रुपए की वृद्धि की गई है। कंप्यूटर के सेमीकंडक्टर बनाने के बजट में 260 करोड रुपए की वृद्धि की गई है। आईटी हार्डवेयर लिंक्ड इंसेंटिव के लिए बजट में 300 करोड रुपए की वृद्धि की गई है। इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी पर बजट में 700 करोड रुपए की वृद्धि की गई है। कुल मिलाकर कहा जाए तो यह बजट मोदी सरकार द्वारा अनुसूचित जाति के आर्थिक, सामाजिक सशक्तिकरण कमजोर करेगा। दलितों की राष्ट्रीय आय व सम्पत्ति में हिस्सेदारी और शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, कौशल विकास, आर्थिक व सामाजिक सशक्तिकरण के लिए सब प्लान में बजट बढ़ाने के लिए पूरे उत्तर प्रदेश में दलित एकता मंच के जरिए एक नई जागृति पैदा हो रही है।

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