नई दिल्ली, 1 अक्टूबर (आईएएनएस)। भगवत गीता का एक श्लोक है, “अहिंसा परमो धर्मः, धर्म हिंसा तथैव च” अर्थात् अहिंसा मनुष्य का परम धर्म है और धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करना भी उसी तरह श्रेष्ठ है। यह श्लोक “अहिंसा परमो धर्मः” तक तो हम सब जानते हैं, लेकिन उसके आगे बहुत से लोग नहीं जानते।
इसका कारण दुनिया के सबसे बड़े अहिंसावादी और शांति के आदर्श मोहन दास कर्मचंद गांधी, यानी महात्मा गांधी, ने इस आधे वाक्य को अपनी जिंदगी का हिस्सा बना लिया था। उन्होंने इसे न सिर्फ अपने लिए लागू किया, बल्कि उनसे जुड़े करोड़ों अनुयायियों ने भी इसे पूरी तरह से अपना कर इसे हमेशा के लिए अमर बना दिया। गांधी जी को दुनिया का सबसे बड़ा अहिंसावादी व्यक्ति कहा जाए तो गलत नहीं होगा। उन्होंने अहिंसा को जिस तरीके से अपने जीवन में आत्मसात किया, उनके अनुयायियों ने भी इसे उतनी ही तल्लीनता के साथ अपनाया। यही वजह है कि “अहिंसा परमो धर्मः” के आगे लोगों ने सोचना ही छोड़ दिया।
वर्तमान में अहिंसा और गांधी जी एक दूसरे के पर्याय बन चुके हैं। गांधी जी की इस नीति को दुनिया भर में आज भी लोग बड़े आदर भाव से देखते हैं। उनके प्रति सम्मान को और बढ़ाने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने महासभा में 15 जून 2007 को एक प्रस्ताव पारित कर गांधी जयंती के दिन अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस मनाए जाने की घोषणा की। तबसे हर साल 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी की जयंती पर ‘अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस’ मनाया जाता है। अहिंसा दिवस पर शांति और अहिंसा के लिए दुनिया भर में गांधी जी की अहमियत को रेखांकित किया जाता है। यूएन महासभा के प्रस्ताव में “अहिंसा के सिद्धांत की सार्वभौमिक प्रासंगिकता” और “शांति, सहिष्णुता, समझ और अहिंसा की संस्कृति कायम करने” की इच्छा की भी पुष्टि की गई है। संयुक्त राष्ट्र महासभा में 140 देशों ने इस प्रस्ताव को सह-प्रायोजित किया था।
–आईएएनएस
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