राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने किया झारखंड उच्च न्यायालय के नए भवन के उद्घाटन, 165 एकड़ में, भवन का निर्माण 600 करोड़ रुपए में.!

सौरभ सिंह,मीडिया हाउस न्यूज एजेंसी 24ता.रांची- झारखंड उच्च न्यायालय के नए भवन के उद्घाटन समारोह के अवसर पर मंच पर उपस्थित राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु, राज्यपाल सी० पी० राधाकृष्णन, भारत के मुख्य न्यायाधीश, डा० न्यायमूर्ति डी० वाई० चंद्रचूड़, कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश, न्यायमूर्त्ति अनिरूद्ध बोस, झारखण्ड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश संजय कुमार मिश्रा, सभी सम्मानित न्यायिक पदाधिकारीगण एवं अधिवक्तागण, प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकार बंधु सभी को जोहार। वीरों की धरती झारखण्ड में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। झारखंड उच्च न्यायालय के नए भवन का उद्घाटन आज राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु के कर कमलों से संपन्न हो रहा है। मेरे साथ-साथ यह झारखण्ड के करोड़ों जनता के लिए गौरव का क्षण है।

 

लगभग 165 एकड़ में फैले इस परिसर में झारखण्ड उच्च न्यायालय भवन का निर्माण 600 करोड़ रुपए की लागत से कराया गया है। एक आदिवासी बाहुल्य छोटे राज्य में यह भवन तथा परिसर देश के किसी भी उच्च न्यायालय के भवन तथा परिसर से बड़ा है। मुझे आशा है कि झारखण्ड राज्य जहाँ आदिवासी, दलित, पिछड़े एवं गरीब लोगों की बहुलता है। उन्हें सरल, सुलभ, सस्ता तथा तीव्र न्याय दिलाने की दिशा में यह संस्थान एक मील का पत्थर साबित होगा।गत वर्ष 26 नवंबर, 2022 को संविधान दिवस के अवसर पर राष्ट्रपति द्वारा पूरे देश के जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों की बढ़ती संख्या पर अपनी चिंता व्यक्त की गई थी। झारखण्ड में भी छोटे-छोटे अपराधों के लिए बड़ी संख्या में गरीब आदिवासी, दलित, अल्पसंख्यक एवं कमजोर वर्ग के लोग जेलों में कैद हैं। यह चिन्ता का विषय है। इस पर गंभीर मंथन की जरूरत है।

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गत वर्ष हमने ऐसे मामलों की सूची तैयार करायी, जो अनुसंधान हेतु 05 वर्षों से अधिक अवधि से लंबित थे। उनकी संख्या लगभग 3,600 (तीन हजार छः सौ ) थी। एक अभियान चलाकर इनमें से 3,400 (तीन हजार चार सौ से अधिक मामलों का निष्पादन कराया गया है। अब हमने 04 वर्षों से अधिक अवधि से लंबित मामलों की सूची तैयार की है। इनकी संख्या भी लगभग 3,200 (तीन हजार दो सौ ) हैं। हम प्रयास कर रहे हैं कि इन मामलों का निष्पादन अगले छः माह के अंदर कर दिया जाय। मैं इसकी लगातार monitoring कर रहा हूँ।Subordinate judiciary में सहायक लोक अभियोजकों की कमी के कारण मामलों के निष्पादन में दिक्कतें आ रही थी। गत माह ही हमने 107 सहायक लोक अभियोजकों की नियुक्ति की है और मुझे आशा है कि इससे मामलों के निष्पादन में तेजी आएगी।मुझे भारत के मुख्य न्यायाधीश को सुनने का मौका मिला है। आप subordinate judiciary की गरिमा और इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाने के लिए चिंतित रहते हैं। मैं आपको बताना चाहूँगा कि झारखंड राज्य में subordinate judiciary के इंफ्रास्ट्रक्चर को लेकर भी बहुत बेहतर कार्य हुआ है। मुझे लगता है कि देश में सबसे अच्छी स्थिति हमारे राज्य की है। आज झारखंड में कुल 506 न्यायिक पदाधिकारी कार्यरत हैं, जिनके लिए 658 court rooms तथा 639 आवास उपलब्ध हैं। Subordinate judiciary के इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए भविष्य में भी जो आवश्यकताएँ होंगी राज्य सरकार उसको प्राथमिकता देगी । टेक्नोलॉजी का उपयोग कर न्यायिक प्रणाली को कैसे सरल, सुलभ, सस्ता तथा तीव्र बनाया जाए, इसके लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा अच्छी पहल की जा रही है। मैं उसकी सराहना करता हूँ और आपको आश्वस्त करना चाहूँगा कि अगर इस कार्य के लिए कोई भी प्रोजेक्ट झारखंड के लिए तैयार किया जाएगा तो सरकार उसे fully support करेगी। एक महत्वपूर्ण विषय की ओर उपस्थित महानुभावों का ध्यान आकृष्ट कराना चाहूँगा। झारखंड राज्य में Superior Judicial Service में आदिवासी समुदाय की नगण्य उपस्थिति एक चिंता का विषय है। इस सेवा की नियुक्ति प्रक्रिया में आरक्षण का प्रावधान नही रखा गया है। चूँकि इसी सेवा से माननीय उच्च न्यायालय में न्यायाधीश नियुक्त किए जाते हैं, इसलिए उच्च न्यायालय में भी वही स्थिति है। अतः मैं चाहूँगा कि इस आदिवासी बाहुल्य राज्य में वरीय न्याय सेवा की नियुक्ति प्रक्रिया में आरक्षण का प्रावधान किया जाय।

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आज हमारे बीच नये कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल जी उपस्थित हैं। मुझे लगता है झारखंड में शायद यह आपकी पहली यात्रा है। मैं आपका स्वागत करता हूँ और एक बात आपके समक्ष रखना चाहूँगा । यद्यपि भारत सरकार द्वारा subordinate judiciary के इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए Centrally Sponsored Scheme चलाई जा रही है, परंतु ऐसी कोई स्कीम उच्च न्यायालयों के लिए उपलब्ध नहीं है। अगर जमीन की कीमत जोड़ ली जाए तो राज्य सरकार द्वारा झारखंड उच्च न्यायालय के इस नए भवन पर लगभग 1,000 (एक हजार) करोड़ रुपए की राशि खर्च की गई है। इसमें केन्द्र सरकार की कोई हिस्सेदारी नहीं है। समय-समय पर उच्च न्यायालयों में भी अतिरिक्त इंफ्रास्ट्रक्चर की आवश्यकता पड़ती है, अतएव मेरा अनुरोध होगा कि भारत सरकार उच्च न्यायालयों के इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए भी एक Centrally Sponsored Scheme लागू करें । मेरी मान्यता है कि न्यायालयों के कार्यों का निष्पादन स्थानीय भाषाओं में किए जाने की नितांत आवश्यकता है, ताकि न्याय के मंदिरों और गरीब आम जनों के बीच की दूरी कम हो सके। न्यायिक पदाधिकारियों और सहायक लोक अभियोजकों के लिए कम-से-कम एक स्थानीय भाषा का सीखना भी बाध्यकारी किया जाना चाहिए, ताकि न्याय को और सुलभ बनाया जा सके ।अन्त में मैं इस समारोह में उपस्थित राष्ट्रपति, राज्यपाल, मुख्य न्यायाधीश, कानून मंत्री के साथ अन्य उपस्थित न्यायिक पदाधिकारीगण, प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के प्रतिनिधि एवं अन्य सभी उपस्थित सम्माननीय अतिथिगणों का पुनः हार्दिक अभिनंदन एवं स्वागत करता हूँ ।

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