विश्व हिन्दी साहित्य सेवा संस्थान का तीन दिवसीय 29वां अन्तर्राष्ट्रीय अधिवेशन और 23वां साहित्य मेला हुआ सम्पन्न
दर्शन, संस्कृति और विचारों की जननी है हिंदी: प्रो.जीसी त्रिपाठी


AKGupta.Media House प्रयागराज-विश्व हिन्दी साहित्य सेवा संस्थान का तीन दिवसीय 29वां अन्तर्राष्ट्रीय अधिवेशन और 23वां साहित्य मेला का शुभारंभ 12 अक्टूबर को देवरख नैनी स्थित जगतपिता ब्रह्मदेव धर्मशाला में हुआ। प्रथम सत्र के कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि बीएचयू के पूर्व कुलपति डॉ. जीसी त्रिपाठी, विशिष्ट अतिथि पुलिस उपमहानिरीक्षक अशोक कुमार शुक्ल, अध्यक्षता कर रहे आईपीएस पं0 जुगल किशोर तिवारी ने दीप प्रज्ज्वलित करके किया। निशा ज्योति संस्कार भारती विद्यालय के छात्र-छात्राओं ने सरस्वती वंदना व आश्रम के वैदिक बटुकों की ओर से स्वस्ति वाचन से हुआ। अतिथियों ने विश्व स्नेह समाज की रजत जयंती वर्ष विशेषांक का विमोचन डॉ गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी, संपादक मंडल की सदस्य डॉ0 सीमा वर्मा, डॉ0 विजयालक्ष्मी रामटेके, डॉ0 सुमा टी.आर, डॉ0 वंदना अग्निहोत्री, लक्ष्मीकांत वैष्णव, पुष्पा श्रीवास्तव की उपस्थिति में किया।
इस अवसर पर्व प्रो. जी सी त्रिपाठी ने कहा कि हिन्दी दर्शन, संस्कृति और विचार है। हिन्दी हमारे जीवन के हर कालखंड से जुड़ी है। विश्व हमारा परिवार है इसकी अवधारणा हिन्दी सिखाती है। हिन्दी विश्व बंधुत्व की भावना बढ़ाती है। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान का कार्य सराहनीय है इसे और सहयोग की जरूरत है, जिससे इसका वैश्विक आयाम और बढ़े। शरीर एक प्रयोगशाला है इसका उपयोग हमें विविधतापूर्ण ज्ञान के लिए किया जाना चाहिए। अध्यक्षता कर रहे पंडित जुगल किशोर तिवारी ने कहा कि हिन्दी देश की आत्मा है। हिन्दी के विकास के लिए हर वर्ग को आगे आना होगा। हिंदी का जन्म संस्कृत से हुआ है इसलिए हमें हिंदी को जानने के लिए संस्कृत का भी अध्ययन करना चाहिए।
गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस से हिन्दी को जीवन से जोड़ना सिखाया। आचरण की चुनौती और कसौटी से परिचित कराया। उन्होंने कहा कि किन लोगों के सामने किस तरह की बात करनी चाहिए इसे प्रभु श्रीराम के जीवन आदर्श से सीखा जा सकता है।अशोक कुमार शुक्ल ने कहा कि प्रयागराज साहित्यिक राजधानी है। यहां के साहित्यकारों ने विश्व में हिंदी का मान बढ़ाया। हिन्दी के विकास ने प्रयाग के साहित्यिक संस्थाओं का विशिष्ट योगदान है। उन्होंने कहा कि आज हिन्दी को रोजगार से जोड़ने की जरूरत है। इससे हिन्दी अधिक समृद्ध होगी।
स्वागत संबोधन में संस्थान के सचिव डॉ. गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी ने संस्थान के सामाजिक, साहित्यिक सरोकार और भावी कार्ययोजना पर प्रकाश डाला। कर्नाटक की जयकला ए ने अतिथियों का परिचय दिया। संस्थान के विभिन्न राज्यों के प्रभारियों ने अतिथियों को शॉल और पुष्पगुच्छ भेंटकर कर सम्मानित किया। इस सत्र का संचालन डॉ0 सीमा वर्मा द्वारा किया गया।
द्वितीय सत्र में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘हिन्दी साहित्य में विविध विमर्श’ में साहित्यकारों और वक्ताओं ने विचार व्यक्त किए। ऑन लाइन जूड़े रहे नीदरलैंड के रामा तक्षक ने समाज के विकास में नारी के योगदान पर प्रकाश डाला। श्रीलंका की अनुषा सल्चतुर ने कहा कि श्रीलंका में साहित्य का विमर्श कई विधाओं में हो रहा है। हिन्दी फिल्मों के माध्यम से लोग हिंदी जानते और समझते हैं। इंदौर से अहित्याबाई विश्वविद्यालय से उपस्थित डॉ0 वंदना अग्निहोत्री, मंगलौर से उपस्थित मंगलुरु विश्वविद्यालय कॉलेज की हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ0 सुमा टी.आर, सोनभद्र से उपस्थित प्रधान श्री विजय कृष्ण त्रिपाठी, नागपुर से अधिष्ठाता डॉ0 विजयलक्ष्मी रामटेके आदि ने अपने विचार व्यक्त किए। इस सत्र का संचालन डॉ0 रश्मि चौबे ने किया।
13 अक्तूबर 2025 को तीसरे सत्र में देश भर के विभिन्न साहित्य प्रेमी उपस्थित हुए। संस्थान के उपाध्यक्ष श्री ओम प्रकाश त्रिपाठी की अध्यक्षता में कार्यक्रम का सत्र का आरम्भ हुआ, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में सेवानिवृत्त मंडलायुक्त डॉ0 सुरेन्द्र कुमार पाण्डेय, विशिष्ट अतिथि डॉ0 नरसिंह बहादुर सिंह (प्रोफेसर वनस्पति इलाहाबाद विश्वविद्यालय), दैनिक जागरण आई नेक्स्ट के वरिष्ठ प्रबंधक नीलाम्बुज नवीन पाण्डेय की उपस्थिति में विभिन्न साहित्यकारों का अभिनन्दन एवं सम्मान किया गया।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डॉ0 नरसिंह बहादुर ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा, ”हम जलवायु जमीन से बने हैं और जब हम पंच तत्व में विलीन होंगे तो हम जलवायु ज़मीन में ही मिलेंगे। इस विकास के युग में हमने पर्यावरण को दूषित किया, भवन और सड़क निर्माण किया। जब हम वृक्ष नहीं लगाते थे तो वृक्ष थे किन्तु आज हम लाखों वृक्ष लगा रहें हैं तो वृक्ष नहीं हैं, प्राण-वायु देने वाले वृक्ष हम काट रहें हैं। उन्होंने बताया कि वे साइकिल चलाते है और बे-कार यानी बिना कार के हैं।
मुख्य अतिथि सुरेन्द्र कुमार पाण्डेय ने विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान की सराहना करते हुए सन्देश दिया कि अंग्रेजी भाषा की जानकारी होना अच्छी बात है पर हिंदी भाषा की कीमत पर नहीं। अपनी भाषा पर गर्व करें तथा हिंदी भाषा को आत्मसात करें। उन्होंने आगे कहा कि संस्कृत और हिंदी भाषा अलग नहीं हैं। संस्थान के संस्थापक डॉ गोकुलेश्वर द्विवेदी के योगदान की सराहना करते हुए कहा कि उनका लेखन, प्रकाशन एवं संरक्षण हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए सराहनीय है।
अध्यक्षता कर रहे ओम प्रकाश त्रिपाठी ने बताया कि हम सभी अपनी संस्कृति को जीवित रखें और देश विदेश में संस्कृति का परचम लहरायें और संस्कृति को विलुप्त होने से बचाएं। सम्मान प्राप्त करने वाले साहित्यकारों में उड़ीसा के डॉ जुगुल किशोर सारंगी, इंदौर की डॉ0 वंदना अग्निहोत्री, नागपुर की डॉ0 विजयलक्ष्मी रामटेके, मंगलौर की डॉ0 सुमा टी.आर, लखनऊ की डॉ सीमा वर्मा, प्रयागराज की डॉ0 गीता त्रिपाठी, पुणे के श्री संतोष कुमार झा, मैसूर की डॉ कृष्णा मणिश्री, नागपुर के अनिल कुमार त्रिपाठी, उड़ीसा के दिनेश कुमार माली, विदिशा की श्रीमती फरहत उन्नीसा खान, पुणे के डॉ0 रणजीत सिंह अरोरा, गाजियाबाद की डॉ0 रश्मि चौबे, पटना की श्रीमती रजनी प्रभा, रायपुर की डॉ0 मुक्ता कौशिक, रतिराम गढ़ेवाल, हाथरस की श्रीमती संतोष शर्मा, चांपा से लक्ष्मीकान्त वैष्णव, प्रयागराज से राणा प्रताप, अयोध्या की अनीता सक्सेना, रायगढ़ की डॉ0 माधुरी त्रिपाठी, सोनभद्र के विजय कृष्ण त्रिपाठी, प्रयागराज के डॉ0 नरसिंह बहादुर जी को विभिन्न सम्मानों से सम्मानित किया गया। इस सत्र का संचालन डॉ0 मुक्ता कौशिक ने किया।
कार्यक्रम का चौथा सत्र संस्थान के सदस्यों के मध्य खुली चर्चा का रहा, जिसमें संस्था की कार्यकारिणी के सदस्यों तथा राज्य प्रभारियों ने संस्थान की कार्य-प्रणाली के विषय में अपने विचार अभिव्यक्त किये। शोधार्थी जयकला तथा सविता ने अपने शोध पत्र का वाचन किया। दूसरे सत्र में संस्थान के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, तथा सचिव के साथ विभिन्न राज्य इकाइयों के सदस्य उपस्थित थे। कविता पाठ के साथ दूसरे दिन के कार्यक्रम का समापन हुआ। आयोजन का समापन सत्र दिनांक 14 अक्टूबर को मरखापुर, प्रयागराज में सम्पन्न हुआ। ”वृद्धों की सेवा करना ही धर्म है।“ इसके जीवित प्रमाण हमारे धर्म शास्त्रों में भी वर्णित हैंः उक्त बातें मुख्य अतिथि पं0 जुगुल किशोर तिवारी (आईपीएस) ने स्नेहाश्रम (वृद्धाश्रम एवं वाचनालय) के उद्घाटन के अवसर पर कही। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज में त्रि-दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय हिंदी अधिवेशन के समापन समारोह की अध्यक्षता हरे राम वाजपेई, विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रभास द्विवेदी, कुलसचिव तथा शशि त्रिपाठी, वरिष्ठ समाज सेविका थीं। अतिथियों का स्वागत दीनबंधु आर्य ने किया। स्नेहाश्रम के बारे में विस्तृत रूपरेखा स्नेहाश्रम संयोजक डॉ0 गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी ने प्रस्तुत की।

युवा संसद प्रभारी लक्ष्मीकान्त वैष्णव ’मनलाभ’ द्वारा मुख्य अतिथि पं जुगुल किशोर तिवारी जी का काव्यभिनंदन प्रस्तुत किया गया। प्रभास द्विवेदी ने कहा कि “परहित सरिस धर्म नहीं भाई।“ हमें परोपकार हमेशा करते रहना चाहिए जिसका फल किसी न किसी रूप में मिलता जरूर है। इस अवसर पर विभिन्न राज्यों से पधारे संस्थान के पदाधिकारी एवं सदस्य उपस्थित रहे। गोष्ठी का संचालन डॉ कृष्णा मणि तथा आभार उद्बोधन श्रीमती पुष्पा श्रीवास्तव शैली ने किया। कार्यक्रम में स्नेहाश्रम में विशेष सहयोग के लिए डॉ0 रणजीत सिंह अरोड़ा, श्रीमती अनीता सक्सेना, सत्यव्रत मिश्र, प्रभास द्विवेदी को सम्मानित किया गया। अतिथियों का आभार आयोजन प्रभारी श्रीमती पुष्पा श्रीवास्तव ‘शैली’ ने किया। कार्यक्रम में संस्थान की विभिन्न राज्य इकाईयों से पधारे सदस्यों में श्रीमती रजनी प्रभा, श्रीमती जयकला, श्रीमती उपमा आर्य, सुश्री सविता करकेरा, शंकर प्रसाद अग्निहोत्री, श्रीमती सपना गोस्वामी, डॉ. सुनील कुमार चतुर्वेदी, डॉ. रजनी शर्मा, श्रीमती अंजुला, सदाशिव विश्वकर्मा, ज्ञानेन्द्र सिंह, राकेश कुमार श्रीवास्तव, मोहित गोस्वामी, अराध्या पाण्डेय इत्यादि उपस्थित रहकर आयोजन को गरिमा प्रदान की।










