गोवर्धन पूजा में लगाए जाते हैं 56 भोग, अपनी पूजा में करे शामिल, दिवाली के त्योहार के ठीक बाद गोवर्धन पूजा की जाती

मीडिया हाउस 14ता.बिहार। दिवाली के त्योहार के ठीक बाद गोवर्धन पूजा की जाती है। इसे अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है। बता दें कि गोवर्धन के दिन गाय के गोबर से भगवान गोवर्धन की मूर्ति बनाई जाती है और फिर उनकी पूजा की जाती है। इसके बाद शाम के समय गोवर्धन पर्वत और भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है और उन्हें अन्नकूट और कढ़ी चावल का भोग लगाया जाता है। बताएं कि गोवर्धन पूजा पर छप्पन भोग की अवधारणा क्या है।माना है कि छप्पन भोग के बिना गोवर्धन पूजा पूरी नहीं हो पाती है। बता दें कि इस बार गोवर्धन पूजा को लेकर भी ब्रह्मा की स्थिति बनी है। हालाँकि पंचांग के अनुसार गोवर्धन पूजा का पर्व 14 नवंबर को मनाया जाता है। आइए जानते हैं कि गोवर्धन पूजा में 56 भोग क्यों लगाए जाते हैं।कहा जाता है कि भगवान कृष्ण ने गोकुलवासियों को इंद्र के प्रकोप से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को 7 दिन तक अपने दावे पर लेकर याद दिलाते रहे थे। इसी दौरान गोकुलवासियों ने प्रत्येक दिन श्री कृष्ण को 8 आभूषणों का भोग लगाया था। गणित के अनुसार, 7 दिन को 8 दिन को गुणा किया जाए तो कुल अंक 56 आता है। विभिन्न सामाजिक संस्कृतियाॅं उस समाज के संवेदनशील लोगों की तत्परता और सक्रियता के कारण जीवंत बनी रहती हैं। इन परंपराओं, संस्कृतियों के संरक्षण और भावी पीढ़ी में हस्तांतरण के लिए समाज के कुछ लोग वर्षों से सक्रिय हैं। इन्हीं में से एक लाल बाजार, नोनिया टोली, बेतिया निवासी एवं अनुभवी महिला कलावती देवी कहती हैं कि दीपावली से लेकर छठ, नहान तक का ये पर्व नियर टू नेचर एवं ईको-फ्रेंडली विहैवियर पर बल देता है। जल, जमीन एवं जीवन शैली के महत्व को बताता है। भाई दूज एवं गोवर्धन पूजा के आयोजन का सौभाग्य मुझे लगभग चालीस वर्षों से प्राप्त हो रहा है। इसके पहले यह आयोजन मेरी सास करती थीं। समाज एवं पास-पड़ोस की महिलाओं का यह सुंदर समागम सामाजिक समरसता और भाईचारा का संदेश देता है। नारी एकता एवं नारी शक्ति को दर्शाता है। इस आयोजन की मुख्य सहयोगी समाजसेवी पिंकी देवी, पूजा देवी, लक्ष्मी देवी, गिरजा देवी, मधु देवी, रीना देवी, रीता देवी, निशा देवी, निशु कुमारी, कीर्ति काम्या, चेतना चन्द्रिका, प्रियंका कुमारी, सलोनी कुमारी आदि ने बताया कि हमारी संस्कृति सबको साथ लेकर और जोड़कर चलने की सीख देती है। हमें अपनी संस्कृति पर गर्व है।

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