उत्तर प्रदेश सरकार कॉरपोरेट्स की एजेंट बनी-दिनकर कपूर

मीडिया हाउस न्यूज एजेंसी लखनऊ-उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कल विधानसभा में कारखाना अधिनियम संशोधन कानून और बोनस संदाय संशोधन कानून पारित करने का यू. पी. वर्कर्स फ्रंट ने कड़ा विरोध किया है। वर्कर्स फ्रंट के प्रदेश अध्यक्ष दिनकर कपूर ने प्रेस को जारी विज्ञप्ति में बताया कि उत्तर प्रदेश में कॉर्पोरेट घरानों के पूंजी निवेश को आकर्षित करने और उत्तर प्रदेश की इकोनॉमी को 1 ट्रिलियन बनाने के नाम पर उत्तर प्रदेश सरकार मजदूरों को आधुनिक गुलामी में धकेल देने में लगी है। कारखाना अधिनियम में संशोधन करके काम के घंटे 12 करने का कानून बनाना और बोनस ना देने वाले मालिकों की गिरफ्तारी से छूट देने का कानून मजदूर विरोधी है, इसे वापस लिया जाना चाहिए।

उन्होनें बताया कि काम के घंटे 12 करने से मजदूरों की कार्य क्षमता पर बेहद बुरा प्रभाव पड़ेगा और वह उत्पादन करने में लगातार असक्षम होते जाएंगे। इतना ही नहीं पहले से ही भीषण बेरोजगारी का दंश झेल रहे उत्तर प्रदेश में यह संशोधन बेरोजगारी को और बढ़ाने का काम करेगा। अभी उद्योगों में कार्यरत करीब 33 परसेंट मजदूरों की छटंनी हो जाएगी, जो 8 घंटे की तीन शिफ्ट में आज काम कर रहे हैं। यह कानून काम के घंटे 8 करने के इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन के कन्वेंशन, जिसका भारत सरकार भी हस्ताक्षर कर्ता है, का सरासर उल्लंघन है। कोरोना महामारी के समय भी उत्तर प्रदेश सरकार ने इसे लागू करने का प्रयास किया था। जिस पर वर्कर्स फ्रंट की जनहित याचिका में मुख्य न्यायाधीश इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा जवाब तलब करने के बाद सरकार ने वापस ले लिया था। इस मजदूर विरोधी संशोधन कानूनों के संबंध में सभी ट्रेड यूनियन संगठनों से बात की जाएगी और उत्तर प्रदेश में इसे वापस कराने के लिए अभियान चलाया जाएगा।

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उन्होंने कहा कि यह बेहद चिंताजनक है कि उत्तर प्रदेश में न्यूनतम मजदूरी का वेज रिवीजन 2019 से ही लंबित पड़ा हुआ है और इसे करने को सरकार तैयार नहीं है। परिणामस्वरूप उत्तर प्रदेश में न्यूनतम मजदूरी केंद्र सरकार के सापेक्ष बेहद कम है। यही नहीं असंगठित मजदूरों की सामाजिक सुरक्षा के लिए 2008 में कानून बना है। प्रदेश में ई-श्रम पोर्टल पर 8 करोड़ से ज्यादा असंगठित मजदूरों का पंजीकरण हुआ है। लेकिन उनकी सामाजिक सुरक्षा के लिए कोई भी योजना सरकार चलाने को तैयार नहीं है। स्पष्टत: सरकार का चरित्र कॉर्पोरेट पक्षधर और मजदूर विरोधी दिखता है।

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