सोनभद्र की प्रकृतिक-जंगलों में जानवरों का रहना बहुत जरूरी है, जंगल ही जानवर का घर है!

अनिकेत श्रीवास्तव,सोनभद्र-जंगल में जानवरों का रहना बहुत जरूरी है, इससे प्रकृति का संतुलन बना रहता है और ये जंगल ही इन जानवरों का घर भी है। ये उनका हक है कि वो बिना किसी डर या व्यवधान के खुशी से अपना जीवन व्यतीत कर सकें। सोनभद्र के जंगलों में हमेशा से ही बाघ, तेंदुआ, भालू, काला हिरण, पेंगुलिन, मगरमच्छ, घड़ियाल आदि जीव रहते आ रहे हैं। किंतु विभाग इन जीवों की मौजूदगी को कभी मानता नहीं था क्योंकि उससे सोनभद्र की प्राकृतिक संपदा बेचकर आने वाली आय बंद हो जाती। मगर पिछले कुछ दिनों में इन जीवों ने खुद ब ख़ुद सामने आके अपनी मौजूदगी दर्ज़ कराई है। जनपद में तीन-तीन तेंदुओं की मौत हो गई और उनकी लाशें जनता के सामने भी आई।
हाथीनाला के जंगल, पिपरी, अनपरा, बीना आदि इलाकों में कोयले की खदान व अन्य स्थानों पर अब तक अनेकों बार बाघ को भी देखा गया है। साथ ही जनपद के जरहा वन रेंज में दो-दो बाघों की मौजूदगी का ग्रामीणों द्वारा ज़िक्र किया गया है परंतु विभाग मानने को तैयार नहीं की यहां ये जानवर हैं। जब भी ये मुद्दे सामने आते हैं तो विभाग चुप्पी थाम लेता है। किंतु जनता चुप रहने वाली नहीं है, अब तो यह साबित भी हो चुका है कि सोनभद्र में कई दुर्लभ प्रजाति के बड़े व छोटे जीव जंतु व जानवर निवास करते हैं। अब सवाल यह उठता है कि इन जानवरों के संरक्षण के लिए विभाग क्या प्रयत्न कर रहा है। कुछ दिन पूर्व म्योरपुर में एक सूअर पकड़ने के फंदे में तेंदुए की फंसकर मौत हो गई थी, उसके बाद मारकुंडी इको पॉइंट के करीब एक तेंदुए की किसी अज्ञात वाहन से धक्का लगने से मौत हो गई थी, इसके कुछ दिन बाद ही मारकुंडी के गुरमा रेंज में जंगल में एक तेंदुए का मृत अवस्था में शव मिला था। इसके कुछ दिन बाद ही जरहा में पेंगोलिन जैसा दुर्लभ जीव मिला था।
जनपदवासियों को जरा भी अनुमान नहीं था कि सोनभद्र में भी पैंगोलिन जैसे दुर्लभ जीव हो सकते हैं मगर वास्तविकता यह है कि सोनभद्र का वन्य क्षेत्र आज भी काफी घना और कुछ इलाकों में तो अब भी अनछुआ है। परंतु दिल्ली और लखनऊ में बैठे बड़े नेता व अधिकारी जब सोनभद्र की ओर देखते हैं तो बस यहां से आने वाले अर्थ को ही देखते हैं(चाहे सरकार कोई भी हो) और ऊपर ही ऊपर यहां की प्राकृतिक संपदा का सौदा हो जाता है। उसके बाद चाहे यहां की प्राकृतिक संपदा बर्बाद क्यों ना हो जाए पर खनन नहीं रुकना चाहिए। अरे ऐसी तरक्की किस काम की जिससे सिर्फ बाहरी अमीरों की जेब भरे और यहां के मूल निवासी गरीब के गरीब ही रहें और पूरा प्राकृतिक क्षेत्र बर्बाद हो जाए। आज भी सोनभद्र के आदिवासी बाहुल्य इलाके में जाके देखिए जीवन कितना संघर्षशील होता है आपको तब समझ आएगा। इसलिए शासन को इस मामले में विशेष ध्यान देते हुए सोनभद्र की प्राकृतिक संपदाओं को बचाने के लिए यहां किसी भी प्रकार से प्रकृति का दोहन करने वाले कार्यों पर पूर्णतया प्रतिबंध लगाना चाहिए। आज जहां सौ-पचास सालों पहले घना जंगल था और बेहद दुर्लभ-दुर्लभ वन्य जीवों का बसेरा था, वहां आज खदाने हैं और रोज वहां की पहाड़ियों को विस्फोटक से उड़ाया जा रहा है।
अरे आखिर इतनी कौन सी गरीबी आ गई है क्षेत्र में जो इतने घने पहाड़ों और प्राकृतिक क्षेत्रों को विस्फोटक से उड़ाकर उसके पत्थर को बेचना पड़ रहा है, न जाने कितने दुर्लभ जानवरों ने इन चक्करों में अपनी जान व घर गंवाया होगा। जी हां जिस बिल्ली मारकुंडी खनन क्षेत्र में आज सभी पैसा-पैसा करते घूमते हैं वहां कभी दुर्लभ काले भालुओं का बड़ा-बड़ा झुंड रहता था और जरा सोचिए जिस क्षेत्र को आज का इंसान इतने सालों से हर रोज़ विस्फोटक से उड़ाकर भी खतम नहीं कर पाया, वो कितना बड़ा होगा। यूंही इसे मारकुंडी नहीं कहा जाता, मगर आज यहां जानवरों के नाम पर एक सियार भी देखना मुश्किल है। आए दिन सोनभद्र में स्थापित बड़ी-बड़ी कंपनियां यहां के जंगलों व प्राकृतिक संपदाओं का दोहन कर रही है। इन कंपनियों द्वारा अब तक न जाने कितने घने वन्य आबादी वाले क्षेत्रों को नष्ट कर दिया गया परंतु विभागों ने कुछ नहीं बोला। यही है घोर कलयुग। गरीब और अमीर के बीच न्याय के लिए किया गया ऐसा ही तुष्टिकरण हमारे महान लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा बनेगा। गलत को गलत ना कह पाना मनुष्य की सबसे बड़ी दुर्बलता होती है और कभी-कभी ये दुर्बलता हद से ज्यादा बढ़ जाने पर सर्वसमाज को खा जाती है।
खैर, अब भी देर नहीं हुई है। जो गया सो गया लेकिन अब भी जो बचा है उसे तो बचाया जा सकता है! ये जंगल ही इन जानवरों का घर है। हम इंसान तो एक जगह से दूसरी जगह जमीन खरीद कर सेटल हो सकते हैं परंतु ये बेचारे बेजुबान कहां जाएंगे। जहां तेंदुए जैसे बड़े मांसभक्षी जीवों को ज़माने की नजर में इतनी दर्दनाक मौत मिल रही है तो बाकी छोटे जीवों का क्या हाल होगा।

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