हर परिस्थिति में शांत और संतुलित रहने की क्षमता देता है ध्यान : उपासिका बोथरा

पर्युषण महापर्व के सातवें दिन ध्यान दिवस मनाया गया, प्रवचन में श्रावकों की उमड़ रही भीड

मीडिया हाउस न्यूज एजेंन्सी 18ता०बोकारो। अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के तत्वावधान में चास के श्री माणकचंदजी छालाणी भवन में मनाए जा रहे पर्युषण महापर्व का सातवां दिन सोमवार को ध्यान दिवस के रूप में मनाया गया। आचार्य श्री महाश्रमणजी के मार्गदर्शन में पर्युषण महापर्व के अवसर पर आयोजित प्रवचन कार्यक्रम में दिनोदिन श्रावकों की संख्या बढ़ती ही चली जा रही है। सोमवार को भी जैन श्वेतांबर तेरापंथ समाज के लोग बड़ी संख्या में शामिल हुए। उन्होंने उपासिका श्रीमती वीणा बोथरा और श्रीमती ममता बोथरा के प्रवचन से मार्गदर्शन प्राप्त किया। ध्यान दिवस पर अपने प्रवचन में उपासिका वीणा ने मानव जीवन में ध्यान की महत्ता से अवगत कराया। उन्होंने कहा कि किसी एक बिंदु पर मन को स्थिर, बाहर से भीतर की ओर लौटना, निर्विचार अंतर्यात्रा एवं जो हर परिस्थिति में शांत और संतुलित रहने की क्षमता जो प्रदान करता हो, वही ध्यान कहलाता है। इससे शरीर, इन्द्रिय, मन, ध्यान, तप एक साथ तपते हैं और तभी आत्मा का साक्षात्कार होता है। उपासिका ममता ने कहा कि आत्मदर्शन द्वारा अपने मन को एकाग्रचित्त करना ध्यान है। इससे तन, मन के तनाव से मुक्ति मिलती है। अतः 10 मिनट का प्रतिदिन ध्यान अवश्य करना चाहिए।इसके पूर्व, रविवार को पर्युषण महापर्व का छठा दिन जप दिवस के रूप में मनाया गया। उपासिकाद्वय ने जप की महत्ता बताते हुए मंत्रों का विशद विवेचन किया। उन्होंने कहा कि एक शब्द की आवृत्ति करना, उसे बार-बार दोहराना जप कहलाता है। जप का अर्थ है मंत्र की पुनरावृत्ति। चाहे वह वैदिक परंपरा हो, जैन या बौद्ध परंपरा, सबने मंत्रों का चुनाव किया है। उन्होंने मंत्र ‘ऊं’ की रचना पर प्रकाश डालते हुए व्याकरणिक दृष्टि से इसका विवेचन किया। कहा कि जैन धर्म के अनुसार इस छोटे से मंत्र में पांच पदों का समावेश है। ‘अर्हम’ का जप लयबद्ध करने से एक प्रकार का रसायन बनता है, जो हमारे भीतर के विकारों का शमन कर हमें पवित्र बनाता है। पर्युषण के तहत 19 सितंबर को संवत्सरी महापर्व मनाया जाएगा तथा 20 सितंबर को क्षमापना दिवस के साथ इस नौ दिवसीय पर्व का समापन होगा।

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