देखिए, सरकारी और प्राइवेट अस्पताल में इलाज में कितना अंतर, इसका अंदाजा इस खबर को पढ़कर बखूबी लगाया जा सकता

मीडिया हाउस न्यूज एजेंसी 9ता.बिहार। सरकारी और प्राइवेट अस्पताल में इलाज में कितना अंतर होता है, इसका अंदाजा इस खबर को पढ़कर बखूबी लगाया जा सकता है। यदि बिहार मे किसी व्यक्ति को अचानक से मेडिकल इमरजेंसी पड़ जाए तो उसके सामने क्या विकल्प हैं। पहला सदर अस्पताल की इमरजेंसी।यदि मरीज को वहां से रेफर करना है तो उसके सामने सिर्फ दो रास्ते हैं। पहला पीएमसीएच , या आईजीएमएस तो दूसरा प्राइवेट अस्पताल। पीएमसीएच में भीड़ इतनी ज्यादा है कि परिजन सोच में पड़ जाते हैं कि वहां पर इलाज मिलेगा कि नहीं। आखिर में वे प्राइवेट अस्पताल का रास्ता चुनते हैं। वहां इलाज मिलता है और उसकी पूरी कीमत भी चुकानी होती है।कई बार यह खर्च मरीज की हैसियत से ज्यादा और इतना मनमाना होता है कि विवाद भी होते हैं। प्रशासन या सरकार के पास ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिससे मनमर्जी के रेट पर लगाम कसी जा सके। इसका फायदा प्राइवेट अस्पताल उठा रहे हैं।

हाल ही में मीडिया हाउस न्यूज एजेंसी के क्राइम रिपोर्टर समर कुमार दत्ता की रिपोर्ट भी बताती है कि सरकारी अस्पतालों के मुकाबले प्राइवेट अस्पताल औसतन चार गुना ज्यादा खर्च पर इलाज देते हैं।मनमानी के ये हैं कारण विशेषज्ञों के मुताबिक रेट आउट आफ कंट्रोल होने के दो प्रमुख कारण हैं। पहला सरकारी अस्पतालों की संख्या का कम होना। जो हैं, वे पहले से बोझ से दबे हैं। दूसरा कैंसर व कार्डियोवस्कुलर बीमारियों का इलाज सिर्फ मेडिकल कालेज व टर्शरी केयर सेंटर में उपलब्ध है।
यदि सरकार चाहे तो ऐसे इलाज सिविल अस्पताल में भी शुरू हो सकते हैं। यदि किसी को कार्डियो की इमरजेंसी हो तो पीएमसीएच में भर्ती कराने में ही पसीने छूट जाते है, जबकि प्राइवेट में आते ही तुरंत इलाज शुरू हो जाता है।दूसरा कारण प्राइवेट हास्पिटलों पर कोई रूल रेगुलेशन का न होना। सरकार या प्रशासन के पास ऐसा कोई नियम नहीं है, जिससे वे प्राइवेट हास्पिटल्स के रेट को कंट्रोल कर पाएं। दो साल पहले सुप्रीमकोर्ट के आदेश पर कैंसर की दवाओं के रेट 60 प्रतिशत कम किए गए थे। यदि ऐसा हो सकता है तो प्राइवेट हास्पिटल्स के रेट पर कंट्रोल क्यों नहीं किया जा सकता।
*किस मर्ज का कहां पर कितने रुपये का इलाज*
*मर्ज——————-प्राइवेट————-सरकारी*
रजिस्ट्रेशन————500-1200———–2-20
नार्मल डिलीवरी———50000————–000
सिजेरियन————50-80000————2651
ईसीजी —————150-200————-2-25
एक्सरे—————–200——————20
सीटी स्कैन (सिर)——–1800————–300
सीटी स्कैन (सिर से नीचे)—3500————1125 (विदहाउट कंट्रास्ट)
एमआरआई—————5000————1800-2800
ब्लड कल्चर—————-350—————25
घुटना ट्रांसप्लांट(एक)—डेढ़ से-तीन लाख——75 हजार से सवा लाख
हिप ट्रांसप्लांट———–पौने-ढाई लाख——–80-एक लाख
आईसीयू—————5000-8000———250-1000
पीडिएट्रिक्स आईसीयू—–5000-8000———250-1000
एंजियोप्लास्टी———-डेढ़-पौने दो लाख——–60 हजार
कार्डियक एंजियोग्राफी——-13000—————4000

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इलाज का खर्च काफी महंगा है। चाहे सरकारी हो या प्राइवेट। सवाल यह है कि लोग प्राइवेट हास्पिटल में क्यों जा रहे हैं, क्योंकि सरकारी अस्पतालों में सुविधाएं नहीं हैं। केंद्र व राज्य सरकारे हेल्थ पर अपनी कुल जीडीपी का मात्र 1.2 प्रतिशत रुपये खर्च करते हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि गर्वनमेंट हेल्थ की क्या स्थिति है।
देश के 75 प्रतिशत मरीज प्राइवेट हास्पिटल पर निर्भर है। बिहार के प्राइवेट हास्पिटल को प्रशासन की ओर से कोई भी मदद नहीं मिलती है। उपकरण से लेकर स्टाफ का खरचा खुद हास्पिटल को उठाना पड़ता है। सरकार को चाहिए कि वे अपने सरकारी अस्पतालों में सुविधाएं बढ़ाएं। यदि सुविधाएं होंगी तो मरीज क्यों प्राइवेट में आएगा।
– *डीके गुप्ता मीडिया हाउस न्यूज एजेंसी*

हमारे शहर में सरकारी अस्पताल बहुत बढ़िया हैं। यदि इन अस्पतालों को सुधार लिया जाए तो मरीज प्राइवेट क्यों जाए। प्राइवेट हास्पिटलों पर लगाम कसने के लिए क्लीनिकल इस्टेब्लिशमेंट एक्ट को लागू करना होगा, जो बिहार प्रशासन नहीं कर पा रही।
– राकेश मिश्रा मीडिया हाउस संवाददाता

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