संसद की प्राथमिक भूमिका संविधान को सुरक्षित रखना और लोकतंत्र की रक्षा करना है- उपराष्ट्रपति

मीडिया हाउस न्यूज एजेन्सी नई दिल्ली-उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आज (27 जुलाई, 2024) इस बात पर बल दिया कि संसद की प्राथमिक भूमिका संविधान को सुरक्षित रखना और लोकतंत्र की रक्षा करना है। उन्होंने आगे कहा कि संसद के सदस्यों से अधिक गंभीर लोकतंत्र का संरक्षक कोई नहीं हो सकता। उन्होंने कहा, “यदि लोकतंत्र पर कोई संकट आता है, यदि लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला होता है, तो आपकी भूमिका निर्णायक होती है।”

संसद कि मूल मुख्य और निर्णायक भूमिका दो हैं –
(i) संविधान का सृजन करना, संरक्षण करना ।
(ii) प्रजातन्त्र की रक्षा करना।
आपसे ज़्यादा गंभीर प्रजातन्त्र का प्रहरी कोई नहीं है। प्रजातन्त्र पर कोई संकट आएगा, प्रजातान्त्रिक मूल्यों पर कुठाराघात होगा तो आपकी भूमिका निर्णायक है।… pic.twitter.com/VgWVXRBP4f

— Vice-President of India (@VPIndia) July 27, 2024आज संसद भवन में नवनिर्वाचित राज्यसभा सदस्यों के लिए आयोजित ऑरिएंटेशन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए, श्री धनखड़ ने स्पष्ट रूप से कहा कि संसद में चर्चा के लिए कोई भी विषय वर्जित नहीं है, बशर्ते उचित प्रक्रिया का पालन किया जाए। उन्होंने कहा कि सदन की प्रक्रिया के नियमों में निर्धारित उचित प्रक्रिया का पालन किए जाने पर सभा अध्यक्ष के आचरण सहित किसी भी विषय पर चर्चा की जा सकती है।

संसद की स्वायत्तता और अधिकार पर जोर देते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि “संसद अपनी प्रक्रिया और कार्यवाही के लिए सर्वोच्च है। सदन में, संसद में कोई भी कार्यवाही समीक्षा से परे है, चाहे वह कार्यपालिका हो या कोई अन्य प्राधिकारी।” उन्होंने कहा कि “संसद के अंदर जो कुछ भी होता है, उसमें सभा अध्यक्ष के अलावा किसी को भी हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। यहां हस्तक्षेप कार्यपालिका या किसी अन्य संस्था का नहीं हो सकता।”

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श्री धनखड़ ने संसद में सदस्यों द्वारा अपनाई जाने वाली हिट एंड रन रणनीति पर अत्यधिक चिंता व्यक्त की, जहां एक सदस्य संसद में बोलने से पहले मीडिया को बाइट देता है, संसद में आता है और केवल ध्यान और मीडिया का स्थान पाने के लिए बोलता है और फिर अन्य सदस्यों की बात सुने बगैर सदन से बाहर चला जाता है और फिर बाहर जाकर मीडिया को बाइट देता है। उन्होंने सदस्यों में मुद्दों पर बात करने के बजाय व्यक्तिगत हमले करने की बढ़ती प्रवृत्ति और सिर्फ़ कुछ लोगों को खुश करने के लिए चिल्लाने और नारे लगाने की प्रवृत्ति को भी रेखांकित किया। उन्होंने आगे कहा, “इससे बड़ी विभाजनकारी गतिविधि कोई और नहीं हो सकती।”

सत्ता पक्ष और प्रतिपक्ष न ही एक दूसरे के शत्रु हैं, ना विरोधी हैं।
वह एक पक्ष रखते हैं आप दूसरा पक्ष रखते हैं। मूल उद्देश्य एक ही है, हमारे राष्ट्रवाद को विकसित करना जनता का कल्याण करना। #RajyaSabha #Parliament pic.twitter.com/hbI3nJdkR8

— Vice-President of India (@VPIndia) July 27, 2024आपातकाल को भारतीय लोकतंत्र का एक दर्दनाक, हृदय विदारक और सबसे काला अध्याय बताते हुए, श्री धनखड़ ने इस बात पर बल दिया कि उस दौरान हमारा संविधान केवल एक कागज़ तक सीमित रह गया था, जिसमें मौलिक अधिकारों का घोर उल्लंघन किया गया था और नेताओं को अन्यायपूर्ण तरीके से जेल में डाला गया था। श्री धनखड़ ने संसद के समग्र प्रदर्शन पर गर्व व्यक्त करते हुए कहा कि हमारे संसद सदस्यों ने शुरू से ही आम लोगों के समर्थन में काम किया है और आपातकाल की अवधि को छोड़कर इस राष्ट्र के विकास में योगदान दिया है।

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आपातकाल के काले अध्याय, the darkest period of Indian democracy, जहां तानाशाही के तरीके से, बेतहाशा रूप से मौलिक अधिकारों को कुचला गया, लोगों को जेल मे डाला गया उसको यदि अगर छोड़ दें तो हमारा कार्यकाल कमोबेश उत्तम रहा है।
We can take complete pride that Members of our Parliament… pic.twitter.com/Dsw6ATm2p7

देश में संसदीय प्रणाली की वर्तमान स्थिति पर दुख व्यक्त करते हुए, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ऐसे क्षण होते हैं कि जब राष्ट्रीय मुद्दों और हितों को राजनीतिक हितों से ऊपर रखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज (वर्तमान) जो स्थिति है वह चिंताजनक है और संसद में व्यवधान और गड़बड़ी को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है।

उन्होंने आगे कहा, “यह लोकतंत्र की मूल भावना पर हमला है। गरिमा को नुकसान पहुंचाना, लोकतंत्र की जड़ों को हिलाना है। लोकतंत्र के लिए इससे बड़ा कोई खतरा नहीं हो सकता कि यह धारणा बनाई जाए कि संसद और राष्ट्र की प्रतिष्ठा की कीमत पर राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए व्यवधान और गड़बड़ी राजनीतिक हथियार हैं।”

आज के हालात चिंताजनक हैं !
अमर्यादित आचरण राजनीतिक हथियार के रूप में उपयोग किया जा रहा है।
यह प्रजातंत्र की मूल भावना पर कुठाराघात है। मर्यादा को नुकसान पहुँचाना लोकतंत्र की जड़ों को हिलाना है।
There can be no greater danger to democracy than imparting an impression that… pic.twitter.com/HRvhb7z7gD

— Vice-President of India (@VPIndia) July 27, 2024विचार-विमर्श के संरक्षक तथा संवैधानिक मूल्यों एवं स्वतंत्रता के किले के रूप में संसद की प्रतिष्ठित भूमिका पर रोशनी डालते हुए, श्री धनखड़ ने विशुद्ध रूप से राजनीतिक दृष्टिकोण से राष्ट्रवाद और देश के व्यापक कल्याण पर केंद्रित दृष्टिकोण की ओर बदलाव का आह्वान किया।

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हम संसदीय प्रणाली को राजनीतिक दल की भूमिका से आकलन कर के नहीं देख सकते।

राजनीति का स्थान है, राजनीति करनी होती है। राजनीति करना स्वस्थ प्रजातंत्र के लिए आवश्यक है। लेकिन राष्ट्र से जुड़े हुए मुद्दों को देखकर, राष्ट्रहित को देखकर, राष्ट्रवाद को समर्पित करते हुए।
There have to… pic.twitter.com/zFtLuCAVCA

— Vice-President of India (@VPIndia) July 27, 2024

देश का हर नागरिक आपसे अपेक्षा और उम्मीद रखता है कि आपका आचरण इतना उत्तम होगा, इतना सर्वश्रेष्ठ होगा, जनता को इतना समर्पित रहेगा कि वो आपका अनुकरण करेंगे। #RajyaSabha #Parliament pic.twitter.com/NHH7tkT0Xr

— Vice-President of India (@VPIndia) July 27, 2024भारतीय संसद के मूल उद्देश्य को रेखांकित करते हुए, श्री धनखड़ ने राजनीतिक दलों की सीमाओं से परे संसदीय प्रणाली के मूल्यांकन के महत्व पर प्रकाश डाला, संविधान सभा की कार्यवाही की सराहना करते हुए आधुनिक भारतीय लोकतंत्र के लिए एक ध्रुव तारा और मार्गदर्शक प्रकाश के रूप में, श्री धनखड़ ने संविधान सभा की उल्लेखनीय तीन साल की यात्रा पर प्रकाश डाला, जिसमें 11 सत्र शामिल थे, जिसके दौरान इसने शिष्टाचार या संवाद से समझौता किए बगैर गंभीर रूप से विवादास्पद मुद्दों को सुलझाया। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि समाधान टकराव के बजाय, सहयोग के माध्यम से प्राप्त किया गया, जो शिष्टाचार और प्रभावी बहस के लिए एक उच्च मानक स्थापित करता है।

सदन में बोलने वाले सदस्यों को संविधान द्वारा दी गई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दुरुपयोग के बारे में चिंताओं को संबोधित करते हुए, श्री धनखड़ ने कहा कि यह स्वतंत्रता सदस्यों को लोकतंत्र की रक्षा करने और संविधान की सुरक्षा करने के लिए दी गई है। उन्होंने स्पष्ट किया कि किसी भी दुरुपयोग से संसदीय नियमों के अनुसार निपटा जाएगा और कहा कि उन्हें सदस्यों के खिलाफ कार्रवाई करने में कोई खुशी नहीं मिलती है।

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मुझे संसद के किसी सदस्य के विरुद्ध कोई कार्रवाई करते हुए आनंद नहीं आता है, बल्कि पीड़ा होती है। मैं समझाता हूँ, बुला कर कहता हूँ।

आप अपने इस अधिकार को जो कि आपके हाथ में एक nuclear weapon of expression है, उसका उपयोग चिंतन-मंथन के साथ, मर्यादा की सीमाओं में रहकर करें।… pic.twitter.com/RSJBYukuCu

— Vice-President of India (@VPIndia) July 27, 2024यह देखते हुए कि छह दशकों में पहली बार किसी प्रधानमंत्री के लगातार तीसरे कार्यकाल के लिए चुना गया है, श्री धनखड़ ने सदन के नेता के रूप में प्रधानमंत्री की भूमिका पर जोर दिया, जो पार्टी लाइन से परे पूरे देश का प्रतिनिधित्व करते हैं। राज्यसभा में हाल ही में हुए व्यवधानों पर चिंता व्यक्त करते हुए, उपराष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री के प्रति धन्यवाद प्रस्ताव के जवाब के दौरान दिखाए गए सम्मान की कमी की आलोचना की।

6 दक के बाद कोई प्रधानमंत्री लगातार तीसरे टर्म में आया!
प्रधानमंत्री किसी राजनीतिक दल का नहीं है, प्रधानमंत्री को सदन का नेता कहा जाता है, प्रधानमंत्री देश का है।

उस प्रधानमंत्री को राज्यसभा में प्रतिपक्ष ने नहीं सुना! #RajyaSabha #Parliament pic.twitter.com/FxziHoUbWp

— Vice-President of India (@VPIndia) July 27, 2024

उपराष्ट्रपति ने पक्षपात के किसी भी आरोप को दृढ़ता से खारिज किया और संविधान, कानून के शासन और राष्ट्रीय हितों के प्रति अपनी अटूट प्रतिबद्धता की पुष्टि की। उन्होंने सभी सदस्यों से इन मूलभूत सिद्धांतों पर विचार करने और संसदीय कार्यवाही की गरिमा बनाए रखने का आह्वान किया।

संसदीय आचरण का मार्गदर्शन करने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराते हुए, श्री धनखड़ ने सदस्यों को संसदीय प्रोटोकॉल को बेहतर ढंग से समझने के लिए अपने पूर्ववर्तियों के निर्णयों सहित अध्यक्ष के निर्णयों की गहन समीक्षा करने के लिए प्रोत्साहित किया।

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राजनीतिक दलों द्वारा पूर्व-निर्धारित व्यवधानों की प्रथा का उल्लेख करते हुए, श्री धनखड़ ने ऐसी कार्रवाइयों की वैधता पर सवाल उठाया तथा उनकी तुलना अन्य देशों के मजबूत लोकतंत्रों से की, जो भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत न होने के बावजूद, प्रभावी संसदीय प्रथाओं को बनाए रखते हैं।

श्री धनखड़ ने कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था के बुनियादी स्तंभों-कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका के कमजोर होने से अंततः आम नागरिक पर असर पड़ता है। उन्होंने सदन में सम्मान और रचनात्मक संवाद की वापसी का आह्वान किया और सरकार से पारदर्शिता, जवाबदेही और दूरदर्शी योजना की जरूरत पर जोर दिया, जो वर्तमान प्रथाओं के कारण बाधित है।

हर सवाल पर अनुपूरक प्रश्न पूछने की कोशिश करने की प्रथा को हतोत्साहित करते हुए, उन्होंने सदस्यों से मंत्रियों के उत्तरों की गहन समीक्षा करने और प्रासंगिक अनुपूरक प्रश्न पूछने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने प्रश्नों का चयन करते समय लिंग और पार्टी संतुलन सुनिश्चित करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता पर जोर दिया और वरिष्ठ नेताओं से एक उदाहरण स्थापित करने के लिए सक्रिय रूप से भाग लेने का आग्रह किया।

समाज को जागरूक करने में राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त मनोनीत सदस्यों की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डालते हुए, श्री धनखड़ ने उन्हें अपने योगदान का दस्तावेजीकरण करने के लिए एक वार्षिक पुस्तिका बनाने का सुझाव दिया। उपराष्ट्रपति ने सदस्यों से महत्वपूर्ण मुद्दों पर सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए विशेष उल्लेखों का प्रभावी ढंग से उपयोग करने का भी आग्रह किया और जोर दिया कि ये केवल औपचारिकताएं नहीं हैं, बल्कि कार्रवाई शुरू करने के साधन हैं।

Hon’ble Vice-President and Chairman, Rajya Sabha, Shri Jagdeep Dhankhar addressed Members of the Upper House at the inauguration of a two-day Orientation Programme for the newly elected and nominated Members of #RajyaSabha, at Parliament House today. @harivansh1956 pic.twitter.com/slhvR1nAQ9

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— Vice-President of India (@VPIndia) July 27, 2024

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