RSS चीफ़ मोहन भागवत का संबोधन।

शिवम वर्मा। जी-20 – भारतीयों के आत्मीय आतिथ्य का अनुभव, भारत का गौरवशाली अतीत तथा वर्तमान की उमंगभरी उड़ान सभी देशों के सहभागियों को प्रभावित कर गई,हमारे देश के खिलाड़ियों ने एशियाई खेलों में पहली बार 100 से अधिक – 107 पदक (28 स्वर्ण, 38 रजत तथा 41 कांस्य) जीतकर हम सब का उत्साहवर्धन किया है। उनका हम अभिनन्दन करते हैं।भारत के विशिष्ट विचार व दृष्टि के कारण संपूर्ण विश्व के चिंतन में वसुधैव कुटुम्बकम् की दिशा जुड़ गई।G-20का अर्थकेन्द्रित विचार अब मानवकेन्द्रित हो गया।भारत को विश्व मंच पर प्रमुख राष्ट्र के नाते दृढ़तापूर्वक स्थापित करने का अभिनंदनीय कार्य हमारे नेतृत्व ने किया है। G-20 में अफ्रीकी यूनियन को सदस्य के नाते स्वीकृत कराने में तथा पहले ही दिन परिषद का घोषणा प्रस्ताव सर्व सहमति से पारित करने में भारत की प्रामाणिक सद्भावना तथा राजनयिक कुशलता का अनुभव सबने पाया। हमारे संविधान की मूल प्रति के एक पृष्ठ पर जिनका चित्र अंकित है, ऐसे धर्म के मूर्तिमान प्रतीक श्रीराम के बालक रूप का मंदिर अयोध्या जी में बन रहा है। आने वाली 22 जनवरी को मंदिर के गर्भगृह में श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा होगी। व्यवस्थागत कठिनाइयों के तथा सुरक्षाओं की सावधानियों के चलते उस पावन अवसर पर अयोध्या में बहुत मर्यादित संख्या ही उपस्थित रह सकेगी। श्रीराम अपने देश के आचरण की मर्यादा के प्रतीक हैं, कर्तव्य पालन के प्रतीक हैं, स्नेह व करुणा के प्रतीक हैं। अपने-अपने स्थान पर ही ऐसा वातावरण बने। राम मंदिर में श्रीरामलला के प्रवेश से प्रत्येक ह्रदय में अपने मन के राम को जागृत करते हुए मन की अयोध्या सजे व सर्वत्र स्नेह, पुरुषार्थ तथा सद्भावना का वातावरण उत्पन्न हो ऐसे, अनेक स्थानों पर परन्तु छोटे छोटे आयोजन करने चाहिए।जिन्होंने देश की स्वतंत्रता की अलख अपने जीवन के यौवनकाल से ही जगाना प्रारंभ किया, गरीबों के अन्नदान कार्यक्रम हेतु जिनका सुलगाया हुआ पहला चूल्हा आज भी तमिलनाडु में प्रदीप्त है और अपना काम कर रहा है, ऐसे तमिल संत श्रीमद् रामलिंग वल्ललार का 200वाँ वर्ष अभी इसी महीने सम्पन्न हो गया। स्वतंत्रता के साथ-साथ समाज की आध्यात्मिक सांस्कृतिक जागृति तथा सामाजिक विषमता के सम्पूर्ण निर्मूलन के लिए वे जीवनभर कार्य करते रहे।मणिपुर की वर्तमान स्थिति को देखते हैं तो यह बात ध्यान में आती है । लगभग एक दशक से शांत मणिपुर में अचानक यह आपसी फूट की आग कैसे लग गई? क्या हिंसा करने वाले लोगों में सीमापार के अतिवादी भी थे? अपने अस्तित्व के भविष्य के प्रति आशंकित मणिपुरी मैतेयी समाज और कुकी समाज के इस आपसी संघर्ष को सांप्रदायिक रूप देने का प्रयास क्यों और किसके द्वारा हुआ? वर्षों से वहाँ पर सबकी समदृष्टि से सेवा करने में लगे संघ जैसे संगठन को बिना कारण इसमें घसीटने का प्रयास करने में किसका निहित स्वार्थ है? इस सीमा क्षेत्र में नागाभूमि व मिजोरम के बीच स्थित मणिपुर में ऐसी अशांति व अस्थिरता का लाभ प्राप्त करने में किन विदेशी सत्ताओं को रुचि हो सकती है? क्या इन घटनाओं की कारण परंपराओं में दक्षिण पूर्व एशिया की भू- राजनीति की भी कोई भूमिका है? देश में मजबूत सरकार के होते हुए भी यह हिंसा किन के बलबूते इतने दिन बेरोकटोक चलती रही है? गत 9 वर्षों से चल रही शान्ति की स्थिति को बरकरार रखना चाहने वाली राज्य सरकार होकर भी यह हिंसा क्यों भड़की और चलती रही? आज की स्थिति में जब संघर्षरत दोनों पक्षों के लोग शांति चाह रहे हैं, उस दिशा में कोई सकारात्मक कदम उठता हुआ दिखते ही कोई हादसा करवा कर, फिर से विद्वेष व हिंसा भड़काने वाली ताकतें कौन सी हैं?समस्या के समाधान के लिए बहुआयामी प्रयासों की आवश्यकता रहेगी। इस हेतु जहां राजनैतिक इच्छाशक्ति, तदनुरूप सक्रियता एवं कुशलता समय की मांग है, वहीं इसके साथ-साथ दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थिति के कारण उत्पन्न परस्पर अविश्वास की खाई को पाटने में समाज के प्रबुद्ध नेतृत्व को भी एक विशेष भूमिका निभानी होगी। संघ के स्वयंसेवक तो समाज के स्तर पर निरंतर सबकी सेवा व राहतकार्य करते हुए समाज की सज्जनशक्ति का शांति के लिए आह्वान कर रहे हैं। सबको अपना मानकर, सब प्रकार की कीमत देते हुए समझाकर, सुरक्षित, व्यवस्थित, सद्भाव से परिपूर्ण और शान्त रखने के लिए ही संघ का प्रयास रहता है। इस भयंकर व उद्विग्न करने वाली परिस्थिति में भी ठंडे दिमाग से हमारे कार्यकर्ताओं ने जिस प्रकार वहाँ सबकी संभाल के प्रयास किए उस पर तथा उन स्वयंसेवकों पर हमें गर्व है।समाज विरोधी कुछ लोग अपने आपको सांस्कृतिक मार्क्सवादी या वोक यानी जगे हुए कहते हैं। परंतु मार्क्स को भी उन्होंने 1920 दशक से ही भुला रखा है। विश्व की सभी सुव्यवस्था, मांगल्य, संस्कार, तथा संयम से उनका विरोध है। मुठ्ठी भर लोगों का नियंत्रण सम्पूर्ण मानवजाति पर हो, इसलिए अराजकता व स्वैराचरण का पुरस्कार, प्रचार व प्रसार करते हैं। माध्यमों तथा अकादमियों को हाथ में लेकर देशों की शिक्षा, संस्कार, राजनीति व सामाजिक वातावरण को भ्रम व भ्रष्टता का शिकार बनाना उनकी कार्यशैली है। ऐसे वातावरण में असत्य, विपर्यस्त तथा अतिरंजित वृत्त के द्वारा भय, भ्रम तथा द्वेष आसानी से फैलता है। आपसी झगड़ों में उलझकर असमंजस व दुर्बलता में फंसा व टूटा हुआ समाज, अनायास ही इन सर्वत्र अपनी ही अधिसत्ता चाहने वाली विध्वंसकारी ताकतों का भक्ष्य बनता है। अपनी परम्परा में इस प्रकार किसी राष्ट्र की जनता में अनास्था, दिग्भ्रम व परस्पर द्वेष उत्पन्न करने वाली कार्यप्रणाली को मंत्र विप्लव कहा जाता है।मंत्र विप्लव का सही उत्तर तो समाज की एकता से ही प्राप्त होना है। हर परिस्थिति में यह एकता का भान ही समाज के विवेक को जागृत रखनेवाली वस्तु है। संविधान में भी इस भावनिक एकता की प्राप्ति एक मार्गदर्शक तत्व के नाते उल्लेखित है। हर देश में इस एकता के भाव को पैदा करने वाला अपना-अपना धरातल अलग-अलग रहता है। कहीं, पर उस देश की भाषा, कहीं पर उस देश के निवासियों का समान पूजा या विश्वास, कहीं पर सबका समान व्यापारिक स्वार्थ, कहीं पर एक प्रबल केंद्रीय सत्ता बंधन देश के लोगों को एक सूत्र में बाँधकर रखता है। परंतु मानव निर्मित कृत्रिम आधारों पर अथवा समान स्वार्थ के आधार पर बनी हुई एकता की डोर टिकाऊ नहीं होती। हमारे देश में तो इतनी विविधता है कि इस देश का एक देश के नाते अस्तित्व समझने के लिए भी लोगों को समय लगता है। परंतु हमारा यह देश एक राष्ट्र के नाते, एक समाज के नाते, विश्व के इतिहास के सारे उतार चढ़ाव पार कर आज भी अपने भूतकाल के सूत्र से अविछिन्न सम्पर्क बनाए रखकर जीवित खड़ा है।मंत्र विप्लव का सही उत्तर तो समाज की एकता से ही प्राप्त होना है। हर परिस्थिति में यह एकता का भान ही समाज के विवेक को जागृत रखनेवाली वस्तु है। संविधान में भी इस भावनिक एकता की प्राप्ति एक मार्गदर्शक तत्व के नाते उल्लेखित है। हर देश में इस एकता के भाव को पैदा करने वाला अपना-अपना धरातल अलग-अलग रहता है। कहीं, पर उस देश की भाषा, कहीं पर उस देश के निवासियों का समान पूजा या विश्वास, कहीं पर सबका समान व्यापारिक स्वार्थ, कहीं पर एक प्रबल केंद्रीय सत्ता बंधन देश के लोगों को एक सूत्र में बाँधकर रखता है। परंतु मानव निर्मित कृत्रिम आधारों पर अथवा समान स्वार्थ के आधार पर बनी हुई एकता की डोर टिकाऊ नहीं होती। हमारे देश में तो इतनी विविधता है कि इस देश का एक देश के नाते अस्तित्व समझने के लिए भी लोगों को समय लगता है। परंतु हमारा यह देश एक राष्ट्र के नाते, एक समाज के नाते, विश्व के इतिहास के सारे उतार चढ़ाव पार कर आज भी अपने भूतकाल के सूत्र से अविछिन्न सम्पर्क बनाए रखकर जीवित खड़ा है।समाज की स्थाई एकता अपनेपन से निकलती है, स्वार्थ के सौदों से नहीं। हमारा समाज बहुत बड़ा है। बहुत विविधताओं से भरा है। कालक्रम में कुछ विदेश की आक्रामक परंपराएँ भी हमारे देश में प्रवेश कर गईं, फिर भी हमारा समाज इन्हीं तीन बातों के आधार पर एक समाज बनकर रहा। इसलिए हम जब एकता की चर्चा करते हैं, तब हमें यह ध्यान रखना होगा कि यह एकता किसी लेन-देन के कारण नहीं बनेगी। जबरदस्ती बनाई तो बार बार बिगड़ेगी।हमारे देश में विद्यमान सभी भाषा, प्रान्त, पंथ, संप्रदाय, जाति, उपजाति इत्यादि विविधताओं को एक सूत्र में बाँधकर एक राष्ट्र के रूप में खड़ा करने वाले तीन तत्व (मातृभूमि की भक्ति, पूर्वज गौरव, व सबकी समान संस्कृति) हमारी एकता का अक्षुण्ण सूत्र हैं।आज के वातावरण में समाज में कलह फैलाने के चले हुए प्रयासों को देखकर बहुत लोग स्वाभाविक रूप से चिंतित हैं। अपने आपको हिन्दू कहलाने वाले, पूजा के कारण जिन्हें मुसलमान, ईसाई कहा जाता है, ऐसे भी लोग मिलते हैं। उनका मानना है कि फितना, फसाद व कितान को छोड़कर सुलह, सलामती व अमन पर चलना ही श्रेष्ठता है। इन चर्चाओं में ध्यान रखने की पहली बात यही है कि, संयोग से एक भूमि में एकत्र आए विभिन्न समुदायों के एक होने की बात नहीं है। हम समान पूर्वजों के वंशज, एक मातृभूमि की संतानें, एक संस्कृति के विरासतदार, परस्पर एकता को भूल गए। हमारे उस मूल एकत्व को समझकर उसी के आधार पर हमें फिर जुड़ जाना है।समस्या के समाधान के लिए बहुआयामी प्रयासों की आवश्यकता रहेगी। इस हेतु जहां राजनैतिक इच्छाशक्ति, तदनुरूप सक्रियता एवं कुशलता समय की मांग है, वहीं इसके साथ-साथ दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थिति के कारण उत्पन्न परस्पर अविश्वास की खाई को पाटने में समाज के प्रबुद्ध नेतृत्व को भी एक विशेष भूमिका निभानी होगी। संघ के स्वयंसेवक तो समाज के स्तर पर निरंतर सबकी सेवा व राहतकार्य करते हुए समाज की सज्जनशक्ति का शांति के लिए आह्वान कर रहे हैं। सबको अपना मानकर, सब प्रकार की कीमत देते हुए समझाकर, सुरक्षित, व्यवस्थित, सद्भाव से परिपूर्ण और शान्त रखने के लिए ही संघ का प्रयास रहता है। इस भयंकर व उद्विग्न करने वाली परिस्थिति में भी ठंडे दिमाग से हमारे कार्यकर्ताओं ने जिस प्रकार वहाँ सबकी संभाल के प्रयास किए उस पर तथा उन स्वयंसेवकों पर हमें गर्व है।

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