Sonebhadra बालू खान पर रोक, अगली सुनवाई तक स्टे, सुप्रीम कोर्ट से न्याय की उम्मीद-विकास शाक्य

मीडिया हाउस न्यूज एजेंसी 27ता.सोनभद्र/लखनऊ-सोन नदी मे बालू खनन रोक लगाने मामले पर एन जी टी के आदेश को चुनौती देने वाले अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने ग्रीष्म अवकाश की छुट्टी के बाद अगली तिथि तक अवकाश बेंच ने स्टे दिया है। अपना पक्ष मजबूती से रखा जायेगा।सुप्रीम कोर्ट से न्याय की उम्मीद है उक्त बातें पर्यावरण की लड़ाई लड़ रहे विकाश शाक्य एडवोकेट ने कही।
श्री शाक्य ने बताया की अभी तक चंद्रशेखर चौरसिया, एन डी फार्मा प्राइवेट लिमिटेड, वर्धमान कंपनी, मास्टरजीनी सर्विसेज प्रा. लिमिटेड की ओर से एन जी टी के बालू खनन रोक वाले आदेश को चुनौती अपील याचिका पर सुप्रीम कोर्ट मे सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ दवे, मयंक पांडेय, आशीष कुमार पांडेय ने बहस की। विरसामुंडा फाउंडेशन के ओर से अभिषेक चौबे एडवोकेट, मनीष तिवारी एडवोकेट, आर के तंवर और निहार रंजन सिंह एडवोकेट ने बहस मे अपना पक्ष रखा। बहस सुनने के बाद न्यायलय ने गर्मी के अवकाश के बाद अगली सुनवाई तक स्टे दिया है। कुछ अन्य पट्टा धारको की भूमिका वर्तमान मामले मे अलग है जिससे समानता का लाभ नही मिलेगा। पर्यावरण संरक्षण की लड़ाई सर्वोच्च न्यायालय से जितने की उम्मीद जताई है। श्री शाक्य ने जिला प्रशासन से उम्मीद जताया कि सुप्रीम कोर्ट के अग्रिम आदेश तक खनन होता तो वह सेंचुरी और सोन नदी की धारा को किसी भी प्रकार से अवरुद्ध तथा प्रभावित ना करें।

पर्यावरण-प्रदूषण-खनन से जुड़ा मामला व फैसला मा.एनजीटी, मा.सुप्रीम कोर्ट ही लेगा.! तो विभागीय अधिकारियों के तैनादी का क्या मतलब.?
सोनभद्र/लखनऊ-सूत्रों की माने तो जनपद सोनभद्र में वैध अवैध खनन, पर्यावरण, प्रदूषण, भू-जल दोहन चर्चा का विषय बन गया है कि जिस प्रकार से बालू खनन क्षेत्र में पर्यावरण की सुरक्षा हेतु एनजीटी मा.सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है, जुर्माना लगाया है, ठीक उसी प्रकार से बिल्ली मारकुंडी पत्थर खनन क्षेत्र में मानक के विपरीत हो रहे भू-खनन, अवैध खनन, अनियंत्रित विस्फोट, क्रशर प्लांटों द्वारा हो रहे भयंकर प्रदूषण, भूजल दोहन, दूषित जल करने वालों पर भी पर भी सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। मानक के विपरीत खनन, भूजल दोहन, वायु प्रदूषण के वजह से क्षेत्र की स्थिति काफी दैनिय हो गई है लोगों के स्वास्थ्य एवं सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है। पूरा खनन क्षेत्र डेंजर जोन में तब्दील हो गया है.! सुरक्षा मानकों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। विभागीय अधिकारी सब कुछ जानते हुए भी मौन है.! लोगों की माने तो जब पर्यावरण प्रदूषण अवैध खनन भू-जल दोहन आदि मामलों से संबंधित सारा फैसला मा.एनजीटी, मा.सुप्रीम कोर्ट ही लेगा.? तो संबंधित विभागों में तैनात अधिकारियों कर्मचारियों का क्या मतलब.? जो अज्ञात व चर्चा का विषय है.?

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