मंगोलिया का लगभग 80 प्रतिशत भूभाग बर्फ से ढका

उलानबटोर, 3 फरवरी (आईएएनएस)। राष्ट्रीय मौसम विज्ञान और पर्यावरण निगरानी एजेंसी ने सोमवार को बताया कि मंगोलिया का लगभग 80 प्रतिशत भूभाग बर्फ से ढका हुआ है।

मौसम निगरानी एजेंसी ने एक बयान में कहा, “31 जनवरी तक देश का लगभग 80 प्रतिशत क्षेत्र 60 सेमी मोटी बर्फ से ढका हुआ है।”

मंगोलिया अपनी कठोर सर्दियों के लिए जाना जाता है, जो काफी हद तक साइबेरियाई उच्च दबाव प्रणाली से प्रभावित होता है।

पिछली सर्दियों में, इस एशियाई देश ने दशकों में सबसे अधिक ठंड का अनुभव किया, यहां 1975 के बाद से सबसे अधिक रिकॉर्ड बर्फबारी हुई। लगभग 90 प्रतिशत क्षेत्र 100 सेमी मोटी बर्फ से ढका था, जिससे भयंकर स्थिति उत्पन्न हो गई, जो मंगोलिया के लिए एक प्राकृतिक आपदा है। अत्यधिक ठंड और भारी बर्फबारी के कारण पशुधन को भोजन तक पहुंच नहीं मिल पाता है, जिससे बड़े पैमाने पर पशुओं की मृत्यु हो जाती है।

समाचार एजेंसी श‍िन्‍हुआ के अनुसार, पिछली सर्दियों में भयंकर तूफान ‘दजुड’ के कारण लाखों पशुधन नष्ट हो गए, जिससे देश के चरवाहों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचा।

‘दजुड’ एक मंगोलियन शब्द है, जो एक भयावह सर्दी का वर्णन करता है। इसमें पशु, चरागाहों के जम जाने या बर्फ से ढक जाने के कारण मर जाते हैं, तथा खानाबदोश चरवाहों की आजीविका को खतरा पैदा हो जाता है।

पिछले सप्ताह, मंगोलियाई सरकार ने कहा कि उसने 2025 के वसंत ऋतु के दौरान राष्ट्रीय राजधानी के निवासियों के लिए निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए कम से कम 10,000 टन पशुधन मांस का भंडार करने का निर्णय लिया है।

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बुधवार को सरकार के प्रेस कार्यालय की ओर से जारी एक बयान के अनुसार, आरक्षित मांस की आपूर्ति, वितरण, बिक्री, गुणवत्ता और सुरक्षा की निगरानी के लिए संबंधित अधिकारियों को नियुक्त किया गया है।

कठोर वसंत ऋतु के दौरान, जब खानाबदोश पशुधन कम हो जाता है और चरवाहों के पास बेचने के लिए पशु कम हो जाते हैं, तो शहरी क्षेत्रों में मांस की कीमतें बढ़ जाती हैं, जिससे संभावित कमी हो जाती है।

उलानबटोर में मंगोलिया की 3.5 मिलियन आबादी का लगभग आधा हिस्सा निवास करता है, तथा पशुओं का मांस मंगोलियाई लोगों का मुख्य भोजन है।

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के अनुसार, दुनिया के अंतिम बचे खानाबदोश देशों में से एक मंगोलिया में 2024 के अंत तक 57.6 मिलियन पशुधन होंगे।

–आईएएनएस

एकेएस/सीबीटी

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