भारतीय सेना की पहली महिला बॉक्सर हैं 'मिनी क्यूबा' की जैस्मिन लंबोरिया

5
भारतीय सेना की पहली महिला बॉक्सर हैं 'मिनी क्यूबा' की जैस्मिन लंबोरिया
WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now

नई दिल्ली, 30 अगस्त (आईएएनएस)। ‘कोई और खेल चुन लो!’ ये शब्द हरियाणा की बॉक्सर जैस्मिन लंबोरिया के पिता के थे, जिन्होंने शुरुआती दौर में घर के बड़ों और समाज का कारण बता कर अपनी बेटी को बॉक्सिंग खेलने से मना कर दिया था। लेकिन यह युवा पहलवान नहीं मानी और इस खेल में अपना भविष्य बनाने की जिद कर बैठी। बड़ी मुश्किल और अपने भाइयों के कहने पर जैस्मिन के पिता ने अपना मन बदला।

जैस्मिन का जन्म 30 अगस्त, 2001 को हरियाणा के भिवानी में हुआ। शुरुआत में उनकी रुचि एथलेटिक्स और क्रिकेट की ओर थी, लेकिन बाद में उन्होंने मुक्केबाजी को चुना। आज उनके 23वें जन्मदिन पर चलिए उनके शुरुआती संघर्ष के बारे में जानते हैं।

उनके पिता जयवीर लंबोरिया होमगार्ड के रूप में काम करते हैं और मां हाउसवाइफ हैं, जबकि जैस्मिन के चाचा संदीप और परविंदर, दोनों ही मुक्केबाज हैं। वैसे तो जैस्मिन एक मुक्केबाज परिवार से हैं। उनके परदादा हवा सिंह एक हेवीवेट मुक्केबाज और दो बार एशियाई खेलों के स्वर्ण पदक विजेता थे। उनके दादा कैप्टन चंद्रभान लंबोरिया एक पहलवान थे लेकिन लड़की होने के कारण उनका इस खेल में अपना करियर बनाना आसान नहीं था।

भिवानी को ‘मिनी क्यूबा’ भी कहते हैं, क्योंकि हरियाणा के इस शहर ने भारत को एक से एक मुक्केबाज दिए हैं। जैस्मिन के कई रिश्तेदार और जानकार इस खेल से जुड़े हुए थे। लेकिन इनमें लड़कियां शामिल नहीं थी।

अब परेशानी भी यही थी कि जैस्मिन के साथ प्रशिक्षण करने के लिए कोई महिला मुक्केबाज नहीं मिलीं। ऐसे में संदीप उनको वापस ले आए और बॉक्सिंग अकादमी जॉइन करवा दी। लेकिन यहां भी उन्हें इस परेशानी का हल नहीं मिला, क्योंकि यहां सभी लड़के थे।

दिल्ली: मुठभेड़ में पकड़ा गया गोकलपुरी हत्या कांड का मुख्य आरोपी, पैर में लगी गोली, अस्पताल में भर्ती

हालांकि, इन चुनौतियों से जैस्मिन बिना डरे लड़ती रहीं और उन्होंने लड़कों के साथ ही ट्रेनिंग शुरू कर दी। एक इंटरव्यू में जैस्मिन ने बताया कि शुरुआती दौर में वह लड़कों के सामने बहुत मुश्किल से ही टिक पाती थीं, लेकिन भारी मुक्कों को झेलते हुए उनका डिफेंस काफी मजबूत हो गया। धीरे-धीरे अटैक भी अच्छा होता गया और कुछ दिनों में लेवल-प्लेइंग फील्ड पर आ गईं। फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

साल 2019 में जैस्मिन 18 साल की थीं। इस दौरान उन्होंने कई घरेलू चैंपियनशिप जीती थीं, लेकिन किसी बड़े खिलाड़ी के साथ नहीं खेली थीं। उनके करियर का टर्निंग पॉइंट था, जब उन्होंने एशियन चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीतने वाली मनीषा मौन को हराया था। यह वह जीत थी, जिसका अंदाजा किसी ने नहीं लगाया था।

उनके नाम वर्ष 2021 दुबई में आयोजित एशियन बॉक्सिंग चैंपियनशिप में कांस्य पदक और वर्ष 2021 में बॉक्सिंग इंटरनेशनल टूर्नामेंट में रजत पदक जीता था और बर्मिंघम राष्ट्रमंडल खेलों में कांस्य पदक अपने नाम किया। बर्मिंघम कॉमनवेल्थ में दमदार प्रदर्शन के दम पर उन्हें सेना की तरफ से सीधे प्रस्ताव आया था जिसे उसने तुरंत स्वीकार कर लिया था। जैस्मिन भारतीय सेना की पहली महिला बॉक्सर बन गई हैं। पेरिस ओलंपिक में भी उन्होंने 57 किलोग्राम भार वर्ग में भारत का प्रतिनिधित्व किया था।

–आईएएनएस

एएमजे/केआर