ललन की लालू से बढ़ी नजदीकी तो परेशान हुए नीतीश
मीडिया हाउस न्यूज एजेंसी 7ता.बिहार | सरकार ने जिस हड़बड़ी में जातिगत सर्वे कराया और आनन-फानन उसके आंकड़े जारी किए, उससे यही लगता है कि क्या सच में बिहार में विधानसभा के चुनाव समय से पहले होंगे। कैबिनेट की मंगलवार को हुई बैठक में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए न्यायिक सेवा में 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रस्ताव भी नीतीश ने पास करा लिया। यह भी उनका एक चुनावी कदम माना जा रहा है। अगर जल्दी ही नियोजित शिक्षकों को सरकारी शिक्षक का दर्जा देने का फैसला भी सरकार ले ले तो आश्चर्य की बात नहीं होगी।अब जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह की आरेजेडी के प्रति हमदर्दी की भनक नीतीश को लग गई है। कहा जाता है कि नीतीश इससे काफी खफा हैं।आरजेडी ने जेडीयू को तोड़ कर अपनी सरकार बनाने का टास्क ललन सिंह को दिया है। यही वजह है कि अशोक चौधारी और ललन सिंह के विवाद में नीतीश ने चुप्पी साध ली है। जेडीयू छोड़ कर नेताओं के जाते रहने से नीतीश पहले से ही परेशान हैं। अब वे और जोखिम लेने की स्थिति में नहीं हैं। इसीलिए अपनी पार्टी को बचाने के लिए वे किसी भी वक्त महागठबंधन छोड़ सकते हैं। भाजपा से इन दिनों उनकी बढ़ती नजदीकी को भी इसी कड़ी में देखा जा रहा है।अगर आरजेडी से नीतीश कुमार का तालमेल नहीं बैठ रहा है तो उनके पास विकल्प क्या हैं। प्रथमदृष्टया दो विकल्प उनके सामने हैं। पहला यह कि वे महागठबंधन छोड़ कर एनडीए में वापसी करें। इससे 2025 तक उन्हें निष्कंटक राज करने का मौका मिल जाएगा। दूसरा विकल्प यह है कि वे विधानसभा भंग कर दें और चुनाव की प्रतीक्षा करें। चुनाव होने तक वे केयरटेकर के तौर पर काम करते रहें। ऐसे में इस बात की भी संभावना बनेगी कि नीतीश के विधानसभा भंग होते ही राज्य में राष्ट्रपति शासन लग जाए।