कहीं भी मानवाधिकार उल्लंघन हमें मंजूर नहीं

मीडिया हाउस न्यूज एजेन्सी लखनऊ-अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के अवसर पर इजराइल द्वारा लगातार फिलीस्तीनी लोगों पर किए जा रहे हमले, बंग्लादेश में हिन्दुओं का उत्पीड़न, मणीपुर में मैतेई-कुकी हिंसा में 60,000 लोगों का विस्थापन, भारत में जगह-जगह उपासना स्थल अधिनियम की अवहेलना करते हुए हिन्दू-मुस्लिम विवाद खड़ा कर अल्पसंख्यकों को असुरक्षित बनाने को लेकर तमाम मानवाधिकार उल्लंघन की घटनाओं पर हम क्षोभ व्यक्त करते हैं और उम्मीद करते हैं कि इन घटनाओं पर रोक लगेगी।
जैसे जैसे दक्षिणपंथी शक्तियों का उभार हो रहा है दुनिया में चारों तरफ अशांति दिखाई पड़ती रह रही। इजराइल-फिलीस्तीन के संघर्ष के इतिहास में शायद 1948 के बाद जब साढ़े 7 लाख फिलीस्तीनियों को अपना देश छोड़ कर जाना पड़ा था अभी तक की सबसे भयंकर तबाही फिलीस्तीनी जनता झेल रही है। 7 अक्टूबर को हमास के इजराइल पर हमले के बाद से इजाराइल रुका नहीं है। लगातार हो रहे हमलों में आधिकारिक रूप से करीब 45,000 फिलीस्तीनी मारे गए हैं जिसमें 18,000 तो सिर्फ बच्चे हैं। बच्चों के अस्पतालों व शरणार्थी शिविरों पर हमले युद्ध अपराध की श्रेणी में आते हैं। अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय ने इजराइल के प्रधान मंत्री बेंजामिन नेतनयाहू के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी किया है किंतु इजराइल को कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा क्योंकि दुनिया के ताकतवर मुल्क इजराइल के साथ खड़े हैं। हम मांग करते हैं कि इजराइल की संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता खत्म की जाए। फरवरी 2022 में शुरू हुआ रूस-यूके्रन युद्ध भी रुकने का नाम नहीं ले रहा। युद्ध से दोनों देशों में नुकसान हुआ है। हम मांग करते हैं कि यह युद्ध तुरंत रोका जाए।
बंग्लादेश में कट्टरपंथी इस्लामी ताकतों के उभार के साथ वहां के अल्पसंख्यक हिन्दुओं के साथ अत्याचार बढ़ गए हैं। हम बंग्लादेश की सरकार से मांग करते हैं किे वहां हिन्दुओं के रहने के लिए सुरक्षित माहौल बनाए। भारत में मणिपुर में मैतेई-कुकी संघर्ष में 250 से ऊपर जानें जा चुकी हैं एवं करीब 60,000 लोग विस्थापित हैं जिनमें से ज्यादातर राहत शिविरों में दिन बिता रहे हैं। राहत शिविरों से लोग वापस अपने गांव लौटना चाहते हैं किंतु मणिपुर अथवा केन्द्र सरकार पूरी तरह से वहां हिंसा रोक पाने में नाकाम रही है। हम मांग करते हैं कि मुख्यमंत्री को बरखास्त कर तुरंत वहां राष्ट्रपति शासन लगाया जाए।
भारत में मुसलमानों को लगातार निशाना बनाकर साम्प्रदायिक राजनीति द्वारा देश का माहौल बिगाड़ा जा रहा है। अभी बहराइच की घटना लोग भूले भी नहीं थे कि सम्भल में जामा मस्जिद के नीचे मंदिर की सम्भावना को लेकर न्यायालय द्वारा सर्वेक्षण की इजाजत दे कर आनन फानन में सर्वे कराने से जो माहौल तनावपूर्ण बना उसमें पुलिस द्वारा भीड़ पर गोली चलाने से पांच लोगों की जानें चली गईं। अब कई जगह पर यह सिलसिला चल पड़ा है कि हिन्दुत्ववादी कार्यकर्ता मस्जिदों व मजारों के नीचे मंदिर के अवशेष खोजने लग हैं। यह प्रक्रिया कहां जा कर रुकेगी मालूम नहीं। साम्प्रदायिक राजनीति से देश का माहौल बिगाड़ा जा रहा है। हमारी मांग है कि उपासना स्थल अधिनियम, 1991, को कड़ाई से लागू कर इस तरह के विवादों को हवा देने का मौका ही न दिया जाए। राजनीति में धर्म के इस्तंमाल पर रोक लगनी चाहिए।