भाषा हमारी संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है – प्रो.संजय श्रीवास्तव

अवनीश श्रीवास्तव
मीडिया हाउस 12ता.मोतिहारी l महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय बिहार में मानविकी एवं भाषा संकाय के द्वारा भारतीय भाषा दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘भारतीय कविता में राष्ट्रीय चेतना और सुब्रह्मण्य भारती’ विषय पर बुद्ध परिसर स्थित आचार्य बृहस्पति सभागार में मंगलवार को संगोष्ठी का आयोजन हुआ। कार्यक्रम के मुख्य संरक्षक और विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. संजय श्रीवास्तव ने अपने सारगर्भित उद्बोधन में कहा कि भाषा हमारे भावों के अभिव्यक्ति का माध्यम है। समाज की जटिल प्रक्रियाओं का अध्ययन एक सशक्त भाषा के माध्यम से हम कर सकते हैं। भाषा हमारी संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है। नृजातियता का आधार भाषा है, जो उसका आधारभूत लक्षण है। भाषा समाज में राजनीति ध्रुवीकरण करने का भी कार्य करती है। भाषाओं में हम समानता देख सकते हैं । हमें भाषाई विवाद से और अंतर्विरोधों से उभरने की जरूरत है। भाषाओं से हम एकता को भी प्रेरणा लेनी होगी और बहुभाषी समाज का उत्तरोत्तर विकास करना होगा। संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी से पधारे आचार्य प्रो. विनय कुमार सिंह ने अपने उद्बोधन में कहा कि हमारा देश धन से, धर्म से और ज्ञान से परिपूर्ण रहा है, यही कारण है कि सुब्रह्मण्य भारती अपनी कविताओं में सदैव ज्ञान और चेतना की बात करते हैं। वे राष्ट्रीय चेतना के कवि हैं, जो भारत को जोड़ते हैं। इनकी प्रेरणा से हमें पूरे भारत को देखना होगा, जिससे देश का विकास हो। वे तिलक से स्वराज, टैगोर से राष्ट्रवाद, महर्षि अरविंद से वे सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, सिस्टर निवेदिता से वे नारी का सम्मान और गांधी से सत्य व अहिंसा ग्रहण करते हैं। वे मातृभाषा पर भी जोर देते हैं, जिसे आज हम छोड़ चुके हैं। जबकि सुख और आनंद की बात तभी होगी, जब हम अपने कर्म के प्रति सच्चे होंगे। भारत की भूमि सदैव मानवता को जन्म देती है और विश्व की भूमि मनुष्य को जन्म देती है। ये सारे भाव हमें भारती की कविताओं से सीखने को मिलते है।कार्यक्रम में छपरा के जयप्रकाश विश्वविद्यालय से पधारे हिंदी विभाग के आचार्य प्रो.सिद्धार्थ शंकर ने कहा कि इस प्रकार के आयोजन से हम यह जान पाते हैं कि भाषाएं अलग – अलग हैं, लेकिन हमारी सोच एक है। क्योंकि इसमें राष्ट्र की संकल्पना होती है उसका विस्तार होता है। सुब्रह्मण्य भारती की कविताओं में देश की सांस्कृतिक धरोहर चिंतन के रूप में विद्यमान है।संगोष्ठी में विशिष्ट वक्तव्य देते हुए शिक्षाशास्त्र संकाय के अधिष्ठाता प्रो. आशीष श्रीवास्तव ने कहा कि ज्ञान पक्ष, भाव पक्ष, और क्रिया पक्ष का समन्वय शिक्षा का उद्देश्य होता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में बहुभाषी अध्ययन-अध्यापन पर विशेष ध्यान है। जो हमें सुब्रह्मण्य भारती के चिंतन से प्राप्त होती है। संगोष्ठी में स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए मानविकी एवं भाषा संकाय के अधिष्ठाता प्रो.प्रसून दत्त सिंह ने कहा भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय द्वारा तमिल कवि सुब्रह्मण्य भारती के जन्मदिवस को भारतीय भाषा दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया हैं। भाषा हृदय का विषय होता है, भाषा संस्कृति की साधन होती है, भाषा संस्कृति को संरक्षित संवर्धित करने का माध्यम होती ह। हमारे वेद और शास्त्रों का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद भारतीयों के प्रति उनके मनोभावों में बदलाव लाया। भारतीय भाषाओं ने एक दूसरे की भाषा व संस्कृति को संवर्धित किया है। इस भाव को लेकर हम सभी भाषाओं का सम्मान करें। यह सुब्रह्मण्य भारती की कविताओं से हम समझ सकते है। कार्यक्रम में विषय प्रवर्तन करते हुए हिंदी विभाग के सहायक आचार्य डॉ. गोविंद प्रसाद वर्मा ने कहा संगोष्ठी की विषय में तीन बीज शब्द हैं, भारतीय कविता, राष्ट्रीय चेतना और सुब्रह्मण्य भारती। विविधता में एकता इसका एक रूप है तो वहीं एकता में विविधता भी इसका दूसरा रुप है। चेतना हमारी संस्कृति का मूल है, यह भाषाओं में विद्यमान है। सुब्रह्मण्य भारती को केंद्र में रखकर भारतीय भाषाओं को जानना – सीखना समझना हमारा मुख्य ध्येय हैं क्योंकि भारती उत्तर-दक्षिण के सेतु हैं। स्वभाषा, स्वदेश और स्वधर्म उनकी कविताओं में चरितार्थ होती है।तकनीकी सत्र के दौरान नित्यानंद श्रीवास्तव ने कहा कि भारतीय भाषा दिवस मनाने का उद्देश्य भाषाई आधार पर देश की एकता और मजबूत करना है। भाषाई विविधता हमारी सांस्कृतिक समृद्धि का परिचायक है। तमिल कवि सुब्रमण्य भारती ने देश की राष्ट्रीयता को मजबूत किया। डाॅ. बलजीत श्रीवास्तव ने बताया कि हिंदी कवियों ने अपनी कविता के माध्यम से भारती स्वाधीनता आंदोलन में राष्ट्रीय भावना का प्रसार किया। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में हिंदी कविता ऊर्जा का स्रोत रही। यदि इन कविताओं का आज भी पढ़ें तो हमारी राष्ट्रप्रेम की भावना बलवती होती है। संगोष्ठी में कुलपति सहित सभी गणमान्य अतिथियों ने दीप प्रज्वलन एवं पुष्पांजलि करते कार्यक्रम का शुभारंभ किया।
मंच पर पधारे सभी गणमान्य अतिथियों को अंगवस्त्र, पुष्पगुच्छ, स्मृति-चिन्ह और पादप देकर सम्मानित किया गया।कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन संगोष्ठी के संयोजक और हिंदी विभाग के सह – आचार्य डॉ. श्याम नंदन ने किया। मंच का सफल संचालन संस्कृत विभाग के सह – आचार्य डाॅ. बबलू पाल ने किया।इस मौके पर वाणिज्य संकाय के अधिष्ठाता प्रो. शिरीष मिश्र,पुस्तकालय विज्ञान संकाय के अधिष्ठाता प्रो.रंजीत चौधरी, हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अंजनी कुमार श्रीवास्तव, सह-आचार्य डॉ. गरिमा तिवारी, डॉ. आशा मीणा, संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. श्याम कुमार झा, सह-आचार्य डॉ.विश्वेश वागमी, डॉ. विश्वजीत वर्मन,अंग्रेजी विभागाध्यक्ष डॉ.विमलेश कुमार सिंह,सह-आचार्य कल्याणी हजारी, डॉ.दीपक, मीडिया विभाग के सह – आचार्य डॉ.परमात्मा मिश्र, डॉ.अनुपम वर्मा, डाॅ.नरेन्द्र सिंह, डाॅ.पंकज कुमार सिंह, डॉ.सपना सहित कई विभागों के शोधार्थी और छात्र – छात्रा उपस्थित रहे।

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