भारतीय सांस्कृतिक परंपरा में ‘ऋषि अगस्त्य का योगदान’ पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित l

मीडिया हाऊस न्यूज एजेंसी अवनीश श्रीवास्तव
मोतिहारी l महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय में ‘भारतीय सांस्कृतिक परंपरा में ऋषि अगस्त्य का योगदान’ विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी ‘काशी तमिल संगमम् 3.0’, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत आयोजित की गई थी और विवि के महात्मा बुद्ध परिसर स्थित आचार्य बृहस्पति सभागार में संपन्न हुई। इस अवसर पर विवि के कुलपति प्रो. संजय श्रीवास्तव मुख्य संरक्षक रहे, जबकि संगोष्ठी के संरक्षक ‘अधिष्ठाता, मानविकी एवं भाषा संकाय’ प्रो. प्रसून दत्त सिंह थे। संगोष्ठी के संयोजक डॉ. गरिमा तिवारी एवं सह – संयोजक डॉ. गोविंद प्रसाद वर्मा, डॉ. श्याम नंदन, डॉ. आशा मीणा तथा डॉ. बबलू पाल थे। ऋषि अगस्त्य: भारतीय संस्कृति के शिल्पकार संगोष्ठी का शुभारंभ द्वीप प्रज्वलन एवं वैदिक मंत्रोच्चार के साथ हुआ। मंच संचालन डॉ. बबलू पाल ने किया, जब कि विषय प्रवर्तन मानवीकी एवं भाषा संकय के संख्याध्यक्ष प्रो. प्रसून दत्त सिंह द्वारा किया गया। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति अपनी विशिष्टता के लिए जानी जाती है और ऐसे विमर्शों के माध्यम से विद्यार्थियों को अपनी जड़ों से जोड़ने का कार्य किया जा रहा है। ऋषि अगस्त्य ने उत्तर और दक्षिण भारत के सांस्कृतिक समन्वय का कार्य किया, जो आगे चलकर स्वामी विवेकानंद ने भी किया। मुख्य अतिथि का सारगर्भित संबोधन मुख्य अतिथि प्रो. वैद्यनाथ मिश्रा (पूर्व अध्यक्ष, जयप्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा) ने ऋषि अगस्त्य को समाज सुधारक एवं वैज्ञानिक दृष्टि रखने वाला ऋषि बताया। उन्होंने कहा कि ‘अगस्त संहिता’ एक वैज्ञानिक ग्रंथ है, जिसका अध्ययन एवं अनुसंधान आज भी प्रासंगिक है। उन्होंने ऋषि परंपरा के सामाजिक और सांस्कृतिक पक्षों को उजागर करते हुए कहा कि ऋषि अगस्त्य ने ज्ञान-विज्ञान और समाज सुधार दोनों क्षेत्रों में अमूल्य योगदान दिया। विशिष्ट अतिथियों के विचार विशिष्ट अतिथि शैलेन्द्र (कार्यकारी संपादक, न्यूज कॉरिडोर, दिल्ली) ने संगोष्ठी के आयोजन को अत्यंत महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति को समझने के लिए ऋषि परंपरा को जानना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि ऋषि केवल तपस्वी नहीं थे, बल्कि साहित्य, वेद, आयुर्वेद और शोध में भी गहरी रुचि रखते थे। वे अध्यात्म और कर्म दोनों को समान महत्व देते थे, जो भारतीय दर्शन का मूल तत्व है। डॉ. पंकज मिश्रा (सहायक आचार्य, सेंट स्टीफंस कॉलेज, नई दिल्ली) ने अपने संबोधन में कहा कि महर्षि अगस्त्य ने दक्षिण भारत में अपनी प्रयोगशाला स्थापित कर भारतीय एकता में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने कहा कि जब व्यक्ति समाज को कुछ देता है, तभी राष्ट्र ‘सत्यम्, शिवम्, सुंदरम्’ की ओर अग्रसर होता है। समापन एवं धन्यवाद ज्ञापन संगोष्ठी का अध्यक्षीय उद्बोधन प्रो. प्रसून दत्त सिंह ने दिया। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति मूल रूप से ऋषि संस्कृति है, जिसमें शासकों को भी राजर्षि बनने की प्रेरणा दी गई है। विद्यार्थियों को ऐसे विषयों पर चिंतनशील होने और ऋषियों के ज्ञान का अनुसरण करने की प्रेरणा दी गई। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. गरिमा तिवारी ने दिया। संगोष्ठी में परीक्षा नियंत्रक डॉ. के. के. उपाध्याय, प्रो. सरिता तिवारी, प्रो. बिमलेश, गांधी चिंतक श्री संजय जी, डॉ. अंजनी श्रीवास्तव, डॉ. पंकज कुमार सिंह, डॉ. श्याम कुमार झा, डॉ. उपमेश तलवार, डॉ, डॉ. स्वेता, डॉ. उमेश पात्रा सहित विवि के अनेक संकाय सदस्य, शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे। यह संगोष्ठी विद्यार्थियों के लिए एक ज्ञानवर्धक अनुभव रही, जिससे उन्होंने भारतीय सांस्कृतिक परंपरा की गहराई एवं ऋषि परंपरा की व्यापकता को समझने का अवसर प्राप्त किया।

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