जैन मिलन मंदिर में माफीनामे के साथ तपोबल का महापर्व पर्युषण संपन्न

मिच्छामी दुक्कड़म’… जाने-अनजाने में हुईं गलतियों के लिए जैन धर्मावलंबियों ने एक-दूसरे से मांगी क्षमा

आत्मशोधन एवं आत्मोत्थान का महापर्व है पर्युषण : उपासिका वीणा बोथरा

नौ दिनों तक बना रहा आध्यात्मिक माहौल, लोगों ने सीखा सफल जीवन का मर्म

मीडिया हाउस न्यूज एजेंन्सी 20ता०बोकारो। मिच्छामी दुक्कड़म’, यानी ‘मेरे द्वारा जाने-अनजाने की गई गलतियों के लिए मुझे क्षमा करें’। इसी वाणी से एक-दूसरे से क्षमापना के साथ जैन धर्मावलंबियों के पर्युषण महापर्व का बुधवार को विधिवत समापन हो गया। नगर के सेक्टर- 2 स्थित जैन मिलन केंद्र (जैन मंदिर) में बड़ी संख्या में उपस्थित श्रावकों ने सालभर के दौरान मन, कर्म, वचन, काया आदि के माध्यम से किसी भी प्रकार की जाने-अनजाने में हुई भूलों के लिए एक-दूसरे से माफी मांगी। पर्युषण के अंतिम दिन सभी व्यक्ति एक-दूसरे से क्षमा मांगते हैं। यह दिन क्षमा दिवस के नाम से जाना जाता है, जो ‘अहिंसा परमोधर्म’ के सिद्धांत पर आधारित है। इसमें जैन धर्मावलंबी न केवल मनुष्य, बल्कि जीव-जन्तुओं, पशु-पक्षियों से भी क्षमा मांगते हैं। इसके पूर्व, चास के माणकचंद छालाणी भवन से आगंतुक जैन उपासिकाद्वय श्रीमती वीणा बोथरा एवं श्रीमती ममता बोथरा जैन मंदिर पहुंचीं। इस अवसर पर बड़ी संख्या में जैन श्वेतांबर तेरापंथी समाज के लोग बड़ी संख्या में उपस्थित थे। अपने संबोधन में उपासिका श्रीमती वीणा बोथरा ने कहा कि क्षमा मांगना एवं करना यह दोनों ही धर्मों में श्रेष्ठ माने जाते हैं। पर्युषण महापर्व मात्र जैनों का पर्व नहीं है, यह एक सार्वभौमिक पर्व है। पूरे विश्व के लिए यह एक उत्तम और उत्कृष्ट पर्व है, क्योंकि इसमें इंसान अपने मन को मांजने का उपक्रम करता है, आत्मा की उपासना करता है, ताकि जीवन के पापों एवं गलतियों को सुधारा जा सके, जीवन को पवित्र, शांतिमय, अहिंसक एवं सौहार्दपूर्ण बनाया जा सके। वास्तव में, पर्युषण पर्व प्रतिक्रमण का प्रयोग है। पीछे मुड़कर स्वयं को देखने का ईमानदार प्रयास है। वर्तमान की आंख से अतीत और भविष्य को देखते हुए कल क्या थे और कल क्या होना है, इसका विवेकपूर्ण निर्णय लेकर एक नए सफर की शुरुआत की जाती है। पर्युषण आत्मा में रमण का पर्व है, आत्मशोधन व आत्मोत्थान का पर्व है।उपासिका ममता बोथरा ने कहा कि पर्युषण संस्कारों को सुदृढ़ बनाने और अपसंस्कारों को तिलांजलि देने का अपूर्व अवसर है। इस पर्व के आठ दिन इतने महत्वपूर्ण हैं कि इनमें व्यक्ति स्वयं के द्वारा स्वयं को देखने का प्रयत्न करता है। ये आठ दिन नैतिकता और चरित्र की चौकसी का काम करते हैं और इंसान को प्रेरित करते हैं कि वे भौतिक और सांसारिक जीवन जीते हुए भी आध्यात्मिकता को जीवन का हिस्सा बनाएं। आठ दिनों तक खाद्य संयम, ध्यान, स्वाध्याय, जप, तप, सामायिक, उपवास, क्षमा आदि विविध प्रयोगों द्वारा आत्म-मंथन करते हैं। एक-दूसरे से क्षमा के आदान-प्रदान से मनोमालिन्य दूर होता है और सहजता, सरलता, कोमलता, सहिष्णुता के भाव विकसित होते हैं। संयम, सादगी, सहिष्णुता, अहिंसा, हृदय की पवित्रता से हर व्यक्ति अपने को जुड़ा हुआ पाता है। उल्लेखनीय है कि कुलदीप गली, चास स्थित माणकचंदजी छालाणी भवन में पर्युषण महापर्व के अवसर पर आचार्य श्रीमहाश्रमणजी के निर्देशन में श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथ सभा, चास-बोकारो के तत्वावधान में प्रवचन कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस क्रम में लगातार नौ दिनों तक आध्यात्मिक वातावरण बना रहा। कोलकाता से पधारीं उपासिका श्रीमती वीणा बोथरा एवं इस्लामपुर से उनके साथ पहुंची श्रीमती ममता बोथरा ने अपने प्रवचन के माध्यम से लोगों को सफल जीवन के मर्म समझाए। आयोजन की सफलता में तेरापंथ युवक परिषद एवं तेरापंथ महिला मंडल की सदस्याओं ने सक्रिय भूमिका निभाई।

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