CPCB-20 चयनित शहरों में मानव स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के प्रभाव का आकलन करने के लिए परियोजनाएं मंजूर-अश्विनी कुमार चौबे
AKGupta.मीडिया हाउस न्यूज एजेन्सी नई दिल्ली-पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने राष्ट्रीय पर्यावरण स्वास्थ्य प्रोफाइल अध्ययन के अंतर्गत देश भर के 20 चयनित शहरों में मानव स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के प्रभाव का आकलन करने के लिए परियोजनाएं मंजूर की हैं। राष्ट्रीय पर्यावरण स्वास्थ्य प्रोफाइल अध्ययन पर्यावरणीय कारकों का एक व्यापक मूल्यांकन है जो वायु प्रदूषण सहित एक विशिष्ट क्षेत्र के भीतर जन-स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है जिसमें शामिल हैं:
- चयनित तटीय और दक्षिण भारतीय शहरों में गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं के लिए पारे के स्तरों और उसके जोखिम का अनुमान।
- इलेक्ट्रॉनिक कचरे के ज्वलन के कारण पॉलीक्लोराइनेटेड बाइफिनाइल्स, डाइऑक्सिन और फ्यूरान जैसे डाइऑक्सिन की जैव-उपलब्धता।
- तिरुचिरापल्ली शहर के लिए सह-लाभकारी कारकों के साथ वायु प्रदूषण का आकलन।
- दिल्ली में किशोरों के स्वास्थ्य पर यातायात उत्सर्जन का प्रभाव।
- राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में दिवाली के दौरान पटाखे फोड़ने से स्वास्थ्य पर प्रभाव।
- आवासीय क्षेत्रों के निकट फसल अवशेष जलाने के कारण श्वसन स्वास्थ्य पर वायु गुणवत्ता का प्रभाव, जिससे श्वसन स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- उत्तरी और पूर्वी भारत में ग्रामीण घरों में बायोमास ईंधन जलाने से निकलने वाले धुएं के लंबे समय तक संपर्क में रहने से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव।
जलवायु परिवर्तन पर वायु प्रदूषण के प्रभाव के संबंध में कोई अध्ययन नहीं किया गया है।
“राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम” (एनसीएपी) जनवरी 2019 में लॉन्च किया गया है जो वायु प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण और उपशमन के लिए एक दीर्घकालिक, समयबद्ध राष्ट्रीय स्तर की रणनीति है। एनसीएपी के अंतर्गत आधार वर्ष 2017 की तुलना में 24 राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों के 131 शहरों में 2024 तक पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) सांद्रता में 20 से 30 प्रतिशत की कमी के लक्ष्यों को प्राप्त करने की परिकल्पना की गई है। इसके बाद, 2025-26 तक पीएम सांद्रता के संदर्भ में 40 प्रतिशत तक की कमी या राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों (एनएएक्यूएस) को प्राप्त करने के लिए लक्ष्य को संशोधित किया गया है। वायु गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कुछ कदम अनुलग्नक-I में दिए गए हैं।
पर्यावरण, वन एवं जलवायु मंत्रालय की नगरवन योजना के अंतर्गत उत्तराखंड राज्य को 20 हेक्टेयर क्षेत्र में शहरी वनों के रूप में नगर वन/नगर वाटिकाओं के सृजन के लिए 80.5 लाख रुपये की राशि स्वीकृत की गई है। इसके अतिरिक्त, वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए नगर कार्य योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए उत्तराखंड को 53.69 करोड़ रुपये की राशि जारी की गई थी।
अनुलग्नक-I
- राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम:
- पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा जनवरी 2019 में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) लॉन्च किया गया है। इसका उद्देश्य सभी हितधारकों को शामिल करके 24 राज्यों में 131 शहरों (गैर-प्राप्ति वाले शहरों और मिलियन प्लस शहरों) में वायु गुणवत्ता में सुधार करना है।
- एनसीएपी में वर्ष 2024 तक वर्ष 2017 में बेसलाइन पर पीएम सांद्रता में 20-30 प्रतिशत की कमी की परिकल्पना की गई है। 2025-26 तक पीएम 10 के स्तर में 40 प्रतिशत तक की कमी या राष्ट्रीय मानकों (60μg /m3) की उपलब्धि प्राप्त करने के लिए लक्ष्य को संशोधित किया गया है।
- सभी 131 शहरों द्वारा सिटी एक्शन प्लान (सीएपी) तैयार किए गए हैं और शहरी स्थानीय निकायों द्वारा कार्यान्वित किए जा रहे हैं।
- शहर विशिष्ट स्वच्छ वायु कार्य योजनाएं मिट्टी और सड़क धूल, वाहन, घरेलू ईंधन, नगरीय ठोस अपशिष्ट जलाने, निर्माण सामग्री और उद्योगों जैसे शहर विशिष्ट वायु प्रदूषण स्रोतों को लक्षित करती हैं।
- इन 131 शहरों को सिटी एक्शन प्लान के कार्यकलापों के कार्यान्वयन के लिए निष्पादन आधारित वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है।
- इसके अतिरिक्त, सीएपी के कार्यान्वयन के लिए केंद्र सरकार की विभिन्न योजनाओं जैसे स्वच्छ भारत मिशन एसबीएम (शहरी), कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिए अटल मिशन (एएमआरयूटी), स्मार्ट सिटी मिशन, किफायती परिवहन के लिए सतत विकल्प (एसएटीएटी), हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों के तेजी से अपनाने और मैन्युफैक्चरिंग (फेम-II), नगर वन योजना तथा राज्य/केन्द्र शासित प्रदेश सरकारों और नगर निगम, शहरी विकास प्राधिकरणों और औद्योगिक विकास प्राधिकरणों जैसी एजेंसियों से प्राप्त संसाधनों के समन्वय के माध्यम से वित्त पोषण जुटाया जा रहा है।
- वायु प्रदूषण की जन शिकायतों का समय पर समाधान करने के लिए सभी 131 शहरों द्वारा लोक शिकायत निवारण पोर्टल (पीजीआरपी)/हेल्पलाइन विकसित की गई है।
- सभी 131 शहरों द्वारा वायु आपात स्थिति में कार्रवाई करने के लिए आपातकालीन अनुक्रिया प्रणाली (ईआरएस/जीआरएपी) विकसित की गई है।
- 131 शहरों में से 88 शहरों ने वित्त वर्ष 2017-18 की बेसलाइन के संबंध में वित्त वर्ष 2022-23 में वार्षिक पीएम 10 सांद्रता के संदर्भ में वायु गुणवत्ता में सुधार दिखाया है।
2.0 वाहनों के उत्सर्जन के नियंत्रण के लिए उपाय:
- राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में 1 अप्रैल, 2018 से और देश के बाकी हिस्सों में 1 अप्रैल, 2020 से बीएस-4 से बीएस-6 ईंधन मानकों को अपनाया गया।
- दक्षिण दिल्ली नगर निगम (एसडीएमसी) द्वारा दिल्ली में प्रवेश करने वाले वाणिज्यिक वाहनों से पथकर और पर्यावरण क्षतिपूर्ति शुल्क वसूलने के लिए आरएफआईडी (रेडियो फ्रीक्वेंसी पहचान) प्रणाली लागू की गई है।
- अप्रैल, 2020 से देश भर में बीएस 6 अनुपालन वाहनों की शुरुआत।
- भारी उद्योग विभाग भारत में फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ (हाइब्रिड एंड) इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (फेम-II इंडिया) योजना के अंतर्गत ई-वाहनों पर सब्सिडी प्रदान कर रहा है।
- कंप्रेस्ड बायो-गैस (सीबीजी) उत्पादन संयंत्रों की स्थापना और ऑटोमोटिव ईंधन में उपयोग के लिए बाजार में सीबीजी उपलब्ध कराने के लिए एक पहल के रूप में किफायती परिवहन की दिशा में सतत विकल्प (एसएटीएटी) शुरू किया गया है।
- गैर-निर्धारित यातायात को डायवर्ट करने के लिए एक्सप्रेसवे और राजमार्गों का संचालन।
3.0 औद्योगिक उत्सर्जन के नियंत्रण के उपाय:
- ताप विद्युत संयंत्रों के लिए एसओ2 और एनओएक्स उत्सर्जन मानकों के संबंध में अधिसूचना जारी कर दी गई है।
- 24 अक्टूबर, 2017 से एनसीआर राज्यों में ईंधन के रूप में पेट कोक और फर्नेस ऑयल के उपयोग पर प्रतिबंध और 26 जुलाई, 2018 से देश में आयातित पेट कोक के उपयोग पर प्रतिबंध, अनुमति प्राप्त प्रक्रियाओं में उपयोग के अपवाद के साथ।
4.0 पराली जलाने से होने वाले उत्सर्जन के नियंत्रण के उपाय:
- पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली राज्यों में फसल अवशेषों के यथास्थान प्रबंधन के लिए कृषि यंत्रीकरण को बढ़ावा देने संबंधी केन्द्रीय क्षेत्र की स्कीम के अंतर्गत व्यक्तिगत किसानों को 50 प्रतिशत सब्सिडी और कस्टम हायरिंग केन्द्रों की स्थापना के लिए 80 प्रतिशत सब्सिडी के साथ यथास्थान फसल अवशेष प्रबंधन के लिए कृषि मशीनों और उपकरणों को बढ़ावा दिया जाता है। 2022 में इस योजना को कृषि यंत्रीकरण पर उप-मिशन (एसएमएएम) के साथ विलय कर दिया गया है और एसएमएएम को राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) के साथ मिला दिया गया है।
- राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आस-पास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने 17.09.2021 को दिल्ली के 300 किलोमीटर के दायरे में स्थित कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांट्स को कोयले (5-10 प्रतिशत तक) के साथ बायोमास आधारित छर्रों, टोरेफाइड पेलेट/ब्रिकेट (धान के पुआल पर फोकस के साथ) को को-फायर करने का निर्देश दिया।
- राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आस-पास के क्षेत्रों में कोयला आधारित कैप्टिव थर्मल पावर प्लांट्स को 30.09.2023 तक कम से कम 5 प्रतिशत बायोमास पेलेट और 31.12.2023 तक कम से कम 10 प्रतिशत बायोमास पेलेट को को-फायर करने का निर्देश दिया गया है।
1.0 वायु गुणवत्ता निगरानी और नेटवर्क
- राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 2015 में लान्च किया गया था। दैनिक वायु गुणवत्ता बुलेटिन के माध्यम से जनता को सूचना प्रसारित की जा रही है।
- परिवेशी वायु गुणवत्ता नेटवर्क: देश में 1447 परिवेशी वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों (516 निरंतर और 931 मैनुअल) का नेटवर्क है जो 28 राज्यों और 7 केंद्र शासित प्रदेशों के 516 शहरों को कवर करता है।
- केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा एक केन्द्रीय नियंत्रण कक्ष संचालित किया जाता है जिसमें पीएम सांद्रता, निगरानी केन्द्रों के लाइव वायु गुणवत्ता आंकड़े, लाइव वायु गुणवत्ता सूचकांक जैसी विभिन्न सूचनाओं की घंटे-दर-घंटे ट्रैकिंग उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त दिल्ली-एनसीआर के लिए वायु गुणवत्ता पूर्वानुमान भी उपलब्ध है।
- एक्यूआई की निगरानी अन्य मानकों के साथ की जाती है और विश्लेषण के बाद एक्यूआई बुलेटिन के रूप में वेबसाइट पर प्रकाशित की जाती है। इसके लिए लिंक दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण नियंत्रण के लिए तत्काल कार्रवाई पर विचार करने और निर्णय लेने के लिए सीएक्यूएम को उपलब्ध कराए गए हैं।
2.0 वाहनों के ईंधन भरने के उत्सर्जन के नियंत्रण के लिए उपाय
- दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में प्रति माह 100 केएल गैसोलिन बेचने वाले नए और मौजूदा पेट्रोल पंपों और 1 लाख से 10 लाख के बीच की आबादी वाले शहरों में 300 केएल प्रति माह की बिक्री करने वाले नए और मौजूदा पेट्रोल पंपों में वाष्प रिकवरी सिस्टम (वीआरएस) की स्थापना।
- उपर्युक्त मानकों के अनुसार वीआरएस स्थापित करने के लिए मेसर्स आईओसीएल, मेसर्स बीपीसीएल, मेसर्स एचपीसीएल, मेसर्स आरआईएल, मेसर्स शेल और मेसर्स नायरा को निदेश जारी किए गए।
3.0 औद्योगिक उत्सर्जन के नियंत्रण के लिए उपाय
- निगरानी व्यवस्था को मजबूत करने और स्व-नियामक तंत्र के माध्यम से प्रभावी अनुपालन के लिए सीपीसीबी ने अत्यधिक प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों की सभी 17 श्रेणियों को ओसीईएमएस स्थापित करने का निर्देश दिया। उद्योगों की 17 श्रेणियों के अंतर्गत 4,315 इकाइयां हैं, जिनमें से 3,734 इकाइयों ने ओसीईएमएस स्थापित किया है और 581 इकाइयों के लिए बंद करने के निर्देश अभी भी लागू हैं।
- पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 की अनुसूची-I: ‘विभिन्न उद्योगों से पर्यावरणीय प्रदूषकों के उत्सर्जन या निर्वहन के लिए मानक’ के तहत उद्योग विशिष्ट निर्वहन मानकों को अधिसूचित करता है। अब तक, 79 औद्योगिक क्षेत्रों (56 क्षेत्रों के लिए उत्सर्जन मानकों सहित) के लिए उद्योग विशिष्ट पर्यावरणीय मानकों को अधिसूचित किया गया है। औद्योगिक क्षेत्र, जिनके लिए विशिष्ट मानक उपलब्ध नहीं हैं, पर्यावरण संरक्षण नियम, 1986 की अनुसूची-VI के अंतर्गत अधिसूचित सामान्य मानक लागू होंगे।
- दिल्ली-एनसीआर में लाल श्रेणी के वायु प्रदूषणकारी उद्योगों में ऑनलाइन सतत उत्सर्जन निगरानी प्रणाली (ओसीईएमएस) की स्थापना।
- दिल्ली में औद्योगिक इकाइयों में पीएनजी/स्वच्छ ईंधन का प्रयोग शुरू हुआ और एनसीआर में परिचालन इकाइयां पीएनजी/बायोमास से संचालित हो रही हैं।
- दिल्ली और एनसीआर में सभी चालू ईंट भट्टों को जिग-जैग तकनीक में बदलना।
- सीपीसीबी ने 800 किलोवाट की सकल यांत्रिक शक्ति तक के डीजल विद्युत उत्पादन सेट इंजनों के लिए रेट्रो-फिट उत्सर्जन नियंत्रण उपकरणों (आरईसीडी) के उत्सर्जन अनुपालन परीक्षण के लिए प्रणाली और प्रक्रिया जारी की है।
4.0 पराली जलाने से होने वाले उत्सर्जन को नियंत्रित करने के उपाय
- 2018 में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने फसल अवशेष प्रबंधन मशीनरी की खरीद और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली तथा पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश राज्यों में कस्टम हायरिंग सेंटर (सीएचसी) की स्थापना के लिए सब्सिडी प्रदान करने के लिए योजना शुरू की। वर्ष 2018-2022 के दौरान उक्त योजना के अंतर्गत दिल्ली और अन्य राज्यों को जारी की गई कुल कुलराशि 2440.07 करोड़ रुपये है, जिसका उपयोग करके व्यक्तिगत किसानों और सीएचसी को 2 लाख से अधिक फसल अवशेष मशीनरी वितरित की गई हैं और 39,000 से अधिक सीएचसी स्थापित किए गए हैं।
सीपीसीबी ने धान की पराली आधारित पेलेटाइजेशन और टॉरेफैक्शन संयंत्रों की स्थापना के लिए एकमुश्त वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए दिशा-निर्देश तैयार किए हैं, जो आपूर्ति श्रृंखला के मुद्दों और उत्तरी क्षेत्र में कृषि क्षेत्रों में धान की पराली को खुले में जलाने के मुद्दे को हल करने में मदद कर सकते हैं। सीपीसीबी द्वारा अधिकतम 28 लाख रुपये या 1 टीपीएच पेलिटाइजेशन प्लांट के संयंत्र और मशीनरी के लिए विचार की गई पूंजीगत लागत का 40 प्रतिशत, जो भी कम हो, एकमुश्त वित्तीय सहायता के रूप में दी जाएगी, जो प्रति प्रस्ताव अधिकतम 1.4 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता के अधीन होगी। इसी प्रकार, 1 टीपीएच टोरेफैक्शन प्लांट के संयंत्र और मशीनरी के लिए विचार की गई पूंजीगत लागत का अधिकतम 56 लाख रुपये या पूंजीगत लागत का 40 प्रतिशत, जो भी कम हो, सीपीसीबी द्वारा एकमुश्त वित्तीय सहायता के रूप में दिया जाएगा, जो प्रति प्रस्ताव अधिकतम 2.8 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता के अधीन होगा। दिशानिर्देशों के माध्यम से उपयोग के लिए 50 करोड़ रुपये का कोष निर्धारित किया गया है। अब तक कुल 09 संयंत्र स्वीकृत किए गए हैं (पंजाब में 7, हरियाणा में 1 और उत्तर प्रदेश में 1) और एक प्रस्ताव सैद्धांतिक रूप से अनुमोदित किया गया है।
- केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने दिशा-निर्देशों में एक परिशिष्ट भी जारी किया है जिसके अंतर्गत पंजाब, हरियाणा, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और उत्तर प्रदेश तथा राजस्थान के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र जिलों के नगर निगमों, नगर परिषदों और जिला परिषदों को धान की पराली आधारित ब्रिकेटिंग संयंत्रों की स्थापना के लिए एकमुश्त वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। सीएक्यूएम द्वारा पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश की राज्य सरकारों को पराली जलाने को खत्म करने और नियंत्रित करने के लिए ढांचे व संशोधित कार्य योजना को कठोरता से और प्रभावी ढंग से लागू करने के निर्देश जारी किए गए हैं।
- 10.11.2023 से सीपीसीबी के 33 वैज्ञानिकों को पंजाब के 22 जिलों और हरियाणा के 11 जिलों में धान की पराली जलाने की घटनाओं की रोकथाम की दिशा में निगरानी और प्रवर्तन कार्यों को तेज करने के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र एवं आस-पास के क्षेत्रों (सीएक्यूएम) में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग की सहायता के लिए उड़न दस्तों के रूप में तैनात किया गया था। उड़न दस्ते अपने-अपने जिलों में पराली जलाने की रोकथाम और नियंत्रण के लिए राज्य सरकार/संबंधित प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के नोडल अधिकारियों/अधिकारियों के साथ समन्वय कर रहे हैं और अपनी दैनिक रिपोर्ट सीएक्यूएम को भेज रहे हैं। धान की कटाई का मौसम समाप्त होने के मद्देनजर सभी टीमों को हाल ही में वापस बुलाया गया है।
5.0 एमएसडब्ल्यू और सी एंड डी अपशिष्ट:
- सीपीसीबी द्वारा प्रकाशित दिशा-निर्देश (पर उपलब्ध)
- मार्च, 2017 में निर्माण और विध्वंस (सी एंड डी) कचरे का पर्यावरण प्रबंधन।
- नवंबर 2017 में ‘निर्माण सामग्री और सी एंड डी कचरे को संभालने में धूल शमन उपायों संबंधी दिशानिर्देश’।
- खुले में जलने और लैंडफिल की आग को दूर करने के लिए जैव-खनन एवं जैव-उपचार द्वारा विरासत अपशिष्ट का निपटान।
- सीपीसीबी ने सभी एसपीसीबी/पीसीसी को 20,000 वर्ग मीटर से अधिक क्षेत्र वाली निर्माण परियोजनाओं/स्थलों पर एंटी-स्मॉग गन की तैनाती और पर्याप्त धूल शमन उपायों के कार्यान्वयन के लिए निर्देश जारी किए हैं।
- सीपीसीबी ने एमएसडब्ल्यू डंप साइटों पर आग की घटनाओं के संदर्भ में एसडब्ल्यूएम नियम, 2016 के कार्यान्वयन के लिए ई (पी) अधिनियम की धारा 5 के तहत सभी एसपीसीबी/पीसीसी को निर्देश जारी किए हैं।
- ये सभी दिशा-निर्देश और निदेश एसपीसीबी/पीसीसी द्वारा कार्यान्वित किए जाने के लिए सीपीसीबी की वेबसाइट पर उपलब्ध हैं।
6.0 तकनीकी उपाय
- सीपीसीबी द्वारा पर्यावरण संरक्षण प्रभार (ईपीसी) निधियों के तहत आईआईटी, एनईईआरआई आदि जैसे प्रमुख संस्थानों के सहयोग से अनुसंधान परियोजनाएं चलाई जा रही हैं जो दिल्ली एनसीआर की वायु गुणवत्ता में सुधार की दिशा में केंद्रित कार्रवाई करने के लिए वैज्ञानिक इनपुट प्रदान करती हैं। ऐसी ही एक परियोजना के परिणामों के आधार पर राज्य बोर्डों को सलाह जारी की गई है कि वे कच्ची सड़कों, भारी यातायात वाली सड़कों और निर्माण स्थलों पर धूल को नियंत्रित करने के लिए पानी के साथ-साथ धूल दबाने वाले यंत्र का उपयोग करें, क्योंकि धूल दबाने वाले यंत्र के उपयोग के 6 घंटे बाद तक धूल की सांद्रता में लगभग 30 प्रतिशत की कमी देखी गई थी।
- सीपीसीबी एक दैनिक रिपोर्ट जारी करता है जिसमें दिल्ली और एनसीआर शहरों के एक्यूआई, तुलनात्मक एक्यूआई स्थिति, पीएम एकाग्रता के वर्षवार रुझान, दिन के लिए हॉटस्पॉट, एएफई गणना, पराली जलाने का योगदान और मौसम संबंधी पूर्वानुमान शामिल हैं। यह रिपोर्ट आईएमडी, एसएएफएआर, आईएआरआई आदि जैसे विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त जानकारी के आधार पर तैयार की जाती है और सीपीसीबी की वेबसाइट के माध्यम से प्रसारित की जाती है।
- करीबी निगरानी और जमीनी स्तर का कार्यान्वयन
- केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड वर्ष 2017 से सर्दियों के मौसम में वायु प्रदूषण संबंधी गतिविधियों के जमीनी परिदृश्य की जांच करने और आवश्यक कार्रवाई के लिए उन्हें कार्यान्वयन एजेंसियों के पास भेजने के लिए सीपीसीबी की समर्पित टीमों को लगातार तैनात कर रहा है।
- सीपीसीबी के 40 अधिकारियों को 03.12.2021 से दिल्ली एनसीआर के विभिन्न क्षेत्रों में उद्योगों, निर्माण स्थलों आदि का गुप्त निरीक्षण करने के लिए उड़न दस्तों के रूप में तैनात किया गया है। सीपीसीबी की रिपोर्टों के आधार पर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और समीपवर्ती क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) द्वारा आगे की कार्रवाई की जाती है जिसमें बंद करने के निर्देश जारी करना भी शामिल है।
8.0 नियमित हितधारक परामर्श, सार्वजनिक और मीडिया आउटरीच
- दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए समीक्षा बैठकों के माध्यम से शमन उपायों के आकलन और वायु प्रदूषण का मुकाबला करने के लिए सरकारी निकायों, सार्वजनिक एजेंसियों, शहरी स्थानीय निकायों के साथ निरंतर बातचीत और समन्वय। आज की तारीख तक 41 समीक्षा बैठकें बुलाई गई हैं।
- सार्वजनिक पहुंच के लिए ट्विटर और फेसबुक अकाउंट बनाए गए हैं और शिकायत निवारण समीर ऐप और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म (ट्विटर और फेसबुक) पर शिकायतों की बारीकी से निगरानी कर रहा है। समीर और सोशल मीडिया की शिकायतों को प्रवर्तन एजेंसियों के माध्यम से हल किया जाता है और निवारण स्थिति को संबंधित एजेंसियों के साथ साझा किया जा रहा है।
- सीपीसीबी की वेबसाइट पर समर्पित मीडिया कॉर्नर नवीनतम घटनाक्रमों और की गई कार्रवाई की जानकारी देता है।
9.0 विनियामक कार्रवाइयां
- विभिन्न स्त्रोतों से प्रदूषण के नियंत्रण के लिए उपाय निर्धारित करने वाले निदेश जैसे डीजी सेटों में आरईसीडी प्रणाली/दोहरी र्इंधन किट का कार्यान्वयन, उद्योगों में स्वच्छ र्इंधन का उपयोग, परिवहन क्षेत्र में ईवी/सीएनजी/बीएस-4 डीजल र्इंधन को अपनाना, सी एंड डी स्थलों पर धूल नियंत्रण उपायों का कार्यान्वयन आदि सीएक्यूएम द्वारा जारी किए गए हैं, जिसमें सीपीसीबी भी एक सदस्य है और उसने सीएक्यूएम को तकनीकी जानकारी प्रदान की है। इसके अलावा, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण को रोकने के लिए नीति भी तैयार की गई है।
- माननीय उच्चतम न्यायालय के 02 दिसंबर, 2016 के आदेश के अनुसरण में विभिन्न वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) श्रेणियों के तहत कार्यान्वयन के लिए ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (जीआरएपी) तैयार किया गया था।
- सीपीसीबी ने एक संशोधित जीआरएपी तैयार किया, जिसके आधार पर सीएक्यूएम द्वारा 05.08.2022 को एक संशोधित जीआरएपी प्रकाशित किया गया है, जो 01.10.2022 से लागू हो गया है। जीआरएपी को 06.10.2023 को फिर से संशोधित किया गया। सीपीसीबी जीआरएपी के तहत विभिन्न प्रावधानों को लागू करने के लिए जिम्मेदार उप-समिति का सदस्य भी है।
10.0 अन्य कार्रवाई
- सड़क धूल उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए, सीपीसीबी ईपीसी निधियों के तहत सड़कों के निर्माण/मरम्मत और एंटी-स्मॉग गन और मैकेनिकल रोड स्वीपर की खरीद के लिए एनसीआर यूएलबी को वित्त पोषित कर रहा है।डीजी सेट उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए, सीपीसीबी ईपीसी निधियों के तहत दिल्ली-एनसीआर में सरकारी अस्पतालों में डीजी सेटों के रेट्रोफिटमेंट/उन्नयन का वित्तपोषण कर रहा है।
यह जानकारी आज राज्यसभा में केन्द्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने एक प्रश्न के लिखित उत्तर में दी।