महाराजाधिराज स्वर्गीय सर कामेश्वर सिंह की पुण्यतिथि के अवसर पर मिथिला विश्वविद्यालय के पदाधिकारियों द्वारा माल्यार्पण

मीडिया हाउस न्यूज एजेंसी 2ता.दरभंगा ।ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के प्रभारी कुलसचिव डा कामेश्वर पासवान के नेतृत्व में महाराजाधिराज स्वर्गीय सर कामेश्वर सिंह बहादुर की पुण्यतिथि के अवसर पर मिथिला विश्वविद्यालय परिसर स्थित महाराज की आदमकद प्रतिमा पर पदाधिकारियों, शिक्षकों, कर्मचारियों एवं छात्र- छात्राओं ने पुष्प एवं मालार्पण कर श्रद्धांजलि दी। इस अवसर पर प्रो पीसी मिश्रा, प्रो शाहिद हसन, प्रो उमेश कुमार, डा आर एन चौरसिया, डा विनोद बैठा, डा शगुप्ता खानम, डा सुनीता कुमारी, डा सुबोध यादव, सरोज राय, डा रश्मि कुमारी, शिवनारायण राय, डा गुंजन कुमारी, डा अमित कुमार सिन्हा, अविनाश कुमार, अमित कुमार झा, सुरेन्द्र सिंह, अक्षय कुमार झा सहित से एक सौ से अधिक व्यक्ति उपस्थित थे।

प्रभारी कुलसचिव डा कामेश्वर पासवान ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि महाराज सर कामेश्वर सिंह दरभंगा- महाराज रामेश्वर सिंह के सुपुत्र थे। इनका देहावसान 1 अक्टूबर, 1962 को हुआ था। गत वर्ष ही मिथिला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सुरेन्द्र प्रताप सिंह के कर कमल द्वारा मिथिला एवं संस्कृत विश्वविद्यालय चौरंगी के पास महाराज कामेश्वर सिंह की आदमकद प्रतिमा का अनावरण हुआ था। महाराज कामेश्वर सिंह अपनी दानशीलता के लिए प्रसिद्ध थे। वे 1933 से 1946 तक तथा 1947 से 1952 तक भारत की संविधान सभा के सदस्य रहे। ये 1952 से 58 तक राज्यसभा के संसद सदस्य के रूप में चुने गए थे और 1960 में पुनः निर्वाचित होकर अपनी मृत्यु पर्यंत 1962 तक राज्यसभा के सदस्य रहे। वे 1929 से 62 तक मैथिल महासभा के अध्यक्ष के साथ ही अखिल भारतीय फुटबाल महासंघ के संरक्षक भी थे। उन्होंने मिथिला सहित अन्य क्षेत्रों में भी शिक्षा, अस्पताल तथा उद्योग आदि के विकास के लिए अनेक सराहनीय कार्य किये थे। उनके नाम पर आज महाराजा कामेश्वर सिंह अस्पताल, महाराजा सर कामेश्वर सिंह पुस्तकालय तथा कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय, दरभंगा आदि कार्यरत हैं। संस्कृत- प्राध्यापक डा आर एन चौरसिया ने कहा कि कामेश्वर सिंह कलयुग के दानवीर कर्ण थे, जिनकी दानशीलता देश- विदेश में प्रसिद्ध रही है। अपनी 55 वर्ष के जीवनकाल में वे समाजहित के अनगिनत कार्य किये। उन्होंने दरभंगा में मिथिला स्नातकोत्तर संस्कृत अध्ययन एवं शोध संस्थान की स्थापना के लिए भवन सहित 60 एकड़ जमीन तथा आम- लीची का एक बगीचा भी दिया था। पटना विश्वविद्यालय को 1930 में वे स्थानीय भाषा को प्रोत्साहित करने के लिए 1 लाख 20 हजार रुपए का बड़ा दान दिया था। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के लिए अंग्रेजों की इच्छा के विरुद्ध कांग्रेस को भारत छोड़ो आंदोलन के लिए लाखों रुपए का दान भी दिया था।इस अवसर पर छात्र- छात्राओं के द्वारा महाराज की मूर्ति- परिसर की साफ- सफाई भी की गई।

अंडर 19 खेल प्रतियोगिता का फाइनल मैच क्रीड़ा भवन में संपन्न हुआ

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *